पुष्पम प्रिया चौधरी, फोटो- सोशल मीडिया
Bihar Assembly Election 2025: बिहार की राजनीति हमेशा से जटिल रही है, जहां जातिगत पहचान, सशक्त नेतृत्व और आर्थिक संसाधन प्रमुख भूमिका निभाते हैं। पुष्पम प्रिया चौधरी ने दरभंगा में की नगर विधानसभा सीट पर ‘द प्लूरल्स पार्टी’ से अपना नामांकन दाखिल किया है और वहीं से जीत हासिल करके विधानसभा में जाना चाहती हैं।
बिहार की राजनीति में एक नाम खूब चर्च में रहता है- पुष्पम प्रिया चौधरी एक राजनीतिक परिवार से संबंध रखती हैं। उनके पिता विनोद कुमार चौधरी जद(यू) के दरभंगा से पूर्व विधान पार्षद रह चुके हैं। इसके साथ ही साथ उनके दादा प्रोफेसर उमाकांत चौधरी नीतीश कुमार के काफी करीबी सहयोगी में गिने जाते थे।
प्लूरल्स पार्टी की स्थापना 8 मार्च 2020 को हुई थी, जिसमें पुष्पम प्रिया चौधरी को मुख्यमंत्री पद की उम्मीदवार के रूप में पेश किया गया था। उन्होंने अपनी पार्टी के एजेंडे को शिक्षा, पारदर्शिता और लैंगिक संतुलन पर केंद्रित किया। 2020 के चुनाव में, पार्टी ने 148 सीटों पर चुनाव लड़ा, जिसमें कुछ उम्मीदवारों ने पार्टी पंजीकरण में देरी के कारण निर्दलीय के रूप में भी नामांकन दाखिल किया।
पुष्पम प्रिया चौधरी ने स्वयं दो सीटों बांकीपुर और बिस्फी से चुनाव लड़ा। हालांकि, वह दोनों सीटों पर खास प्रभाव डालने में असफल रहीं। बांकीपुर में, उन्हें केवल 5,189 वोट मिले (10वें स्थान पर), जबकि बिस्फी में वह 6वें स्थान पर रहीं। हालांकि चुनाव में पार्टी द्वारा कुल प्राप्त मत 209,417 थे।
2025 के चुनावों के लिए, TPP ने सभी 243 सीटों पर चुनाव लड़ने की घोषणा की है, जिसमें आधे टिकट महिलाओं के लिए आरक्षित किए गए हैं। वह अपनी विशिष्ट ‘ऑल-ब्लैक’ पोशाक में दिखी हैं और कसम खाई है कि चुनाव जीतने पर ही वह अपना काला मास्क हटाएंगी।
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2020 के बिहार चुनाव ने स्पष्ट किया था कि राज्य की राजनीति में स्थापित दलों का वित्तीय दबदबा बरकरार है, जहां करोड़ों रुपये का खर्च मुख्य रूप से उम्मीदवारों और स्टार प्रचारकों की यात्रा पर केंद्रित होता है। वहीं, पुष्पम प्रिया चौधरी जैसे नए नेता अपने “प्लूरल्स” के सिद्धांत के साथ पारंपरिक पहचान-आधारित राजनीति को चुनौती देने का प्रयास कर रहे हैं। हालांकि, बिहार में एक प्रगतिशील, गैर-पारंपरिक राजनीति की राह अभी लंबी और कठिन प्रतीत होती है, जहाँ बड़े वित्तीय संसाधनों वाले दलों का प्रभुत्व कायम है।