जीत कर भी हार गए नीतीश कुमार? पलटा 20 साल का इतिहास, भाजपा ने छीनी बड़ी ताकतें
Bihar Cabinet Portfolio Allocation: बिहार की राजनीति में एक ऐसा उलटफेर हुआ है जिसने पिछले दो दशकों के इतिहास को पूरी तरह से बदल कर रख दिया है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने रिकॉर्ड दसवीं बार शपथ तो ले ली, लेकिन इस बार उनकी यह जीत एक अजीब सी हार का अहसास तो उन्हें करा ही रही होगी। पिछले दो दशकों से जिस गृह विभाग को नीतीश कुमार अपनी सबसे बड़ी ताकत मानते थे और उसे कभी किसी सहयोगी को नहीं सौंपा था, वह इस बार उनके हाथों से फिसल गया है या यह भी कहा जा सकता है कि छीन लिया गया। यह बदलाव बिहार के सियासी गलियारों में चर्चा का सबसे बड़ा विषय तो बन ही गया है और इसके साथ ही इसे भाजपा की सबसे बड़ी रणनीतिक जीत के तौर पर देखा जा रहा है।
नीतीश कुमार के द्वारा सीएम पद की शपथ लेने के अगले दिन ही हुए विभागों के बंटवारे ने सबको चौंका दिया है क्योंकि पहली बार गृह विभाग मुख्यमंत्री के पास न होकर उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी की झोली में गया है। सम्राट चौधरी अब राज्य की कानून-व्यवस्था की कमान संभालेंगे, जो अब तक सीधे नीतीश कुमार के नियंत्रण में रहती थी वो अब नहीं रहेगी। इसके साथ ही दिलीप जायसवाल को उद्योग विभाग की जिम्मेदारी सौंपी गई है। फिलहाल केवल 18 मंत्रियों के विभागों की स्थिति साफ हुई है। शपथ लेने वाले कुल 27 नेताओं में उत्साह तो है, लेकिन शक्ति संतुलन का यह नया गणित स्पष्ट बता रहा है कि इस बार नियम बदल चुके हैं।
अगर हम इतिहास के पन्नों को पलटें तो पाएंगे कि साल 2000 से लेकर अब तक, जब-जब नीतीश कुमार मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठे, गृह विभाग का जिम्मा उन्होंने हमेशा अपने कंधों पर रखा। चाहे उनके साथ डिप्टी सीएम सुशील कुमार मोदी रहे हों या फिर तेजस्वी यादव, पुलिस और प्रशासन पर नियंत्रण हमेशा सुशासन बाबू का ही रहा। 2005 से लेकर 2014 का लंबा कार्यकाल हो या फिर 2015 के बाद का दौर, गृह मंत्रालय नीतीश कुमार का पर्याय बन चुका था। लेकिन 2025 में बनी इस नई सरकार में भाजपा ने वह कर दिखाया जो पिछले 20 वर्षों में गठबंधन की राजनीति में कभी नहीं हुआ था।
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बात सिर्फ गृह विभाग तक सीमित नहीं है, बल्कि इस बार के गठबंधन में भाजपा ने अपनी शर्तों को बेहद मजबूती से मनवाया है। गृह विभाग के साथ-साथ विधानसभा अध्यक्ष यानी स्पीकर का महत्वपूर्ण पद भी भाजपा ने अपने पास ही रखा है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह नीतीश कुमार के लिए एक बड़ा झटका है। तकनीकी रूप से मुख्यमंत्री की कुर्सी पर नीतीश कुमार ही हैं, लेकिन सरकार का असली रिमोट कंट्रोल और पावर सेंटर अब काफी हद तक बदल चुका है। जो शर्तें नीतीश कुमार पिछले बीस सालों से टालते आ रहे थे, इस बार परिस्थितियों ने उन्हें वो शर्तें मानने पर मजबूर कर दिया है।