बिहार के पूर्व सीएम जगन्नाथ मिश्र (डिजाइन फोटो)
Siyasat-E-Bihar: बिहार में राजनैतिक दंगल का बिगुल बज चुका है। सियासी दलों ने अखाड़े में पहलवानों को उतारना शुरू कर दिया है। कौन-जीतेगा कौन हारेगा इसका फैसला तो 6 और 11 नवबंर को जनता करेगी। वहीं, 14 नवंबर के बाद यह तय होगा कि बिहार की गद्दी पर कौन बैठेगा? ऐसे में नया सीएम कौन होगा, कौन नहीं? इससे हटकर हम आपको पुराने सीएम की एक दिलचस्प कहानी सुनाते हैं। हमारी स्पेशल सीरीज ‘सियासत-ए-बिहार’ की इस किस्त में कहानी सूबे के उस मुखिया की है जिससे इंदिरा गांधी के बेटे खफा हो गए थे…और उन्हें कुर्सी से उतरना पड़ा था।
यह कहानी 1980 के दशक की है। तब एक पूर्व सीएम ने कहा था कि बिहार की सियासी नब्ज पर केवल दो लोग पकड़ रखते हैं। इसमें पहला नाम कर्पूरी ठाकुर का थो तो दूसरा जगन्नाथ मिश्र का। मिश्रा पहली बार अप्रैल 1975 में बिहार के तख्त पर विराजमान हुए और कांग्रेस की सियासत की धुरी बन गए। वो सीएम रहें या न रहें बिहार में शक्ति संतुलन सदैव उनके पाले में रहा। इसके बावजूद भी वे इंदिरा गांधी की कृपा पर आश्रित थे। इमरजेंसी के दंश का दर्द जनता भूलने लगी। बिहार में कांग्रेस की फिर वापसी हुई और जगन्नाथ मिश्र की दोबारा ताजपोशी हो गई।
वह दौर ऐसा था कि इंदिरा गांधी को खुश करने के लिए कांग्रेस पार्टी में चाटुकारिता आम बात हो गई थी। संजय गांधी के निधन के बाद 1981 में राजीव गांधी राजनीति में आए। उन्होंने बड़े राजनीतिक फैसलों में भूमिका निभानी शुरू कर दी। शुरुआत में, राजीव गांधी चाटुकारों को नापसंद करते थे और भ्रष्टाचार के सख्त खिलाफ थे। जगन्नाथ मिश्र की कार्यशैली राजीव गांधी को पसंद नहीं थी। इंदिरा गांधी के प्रिय जगन्नाथ मिश्र को राजीव गांधी की नाराजगी के कारण अगस्त 1983 में मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा।
जगन्नाथ मिश्र (सोर्स- सोशल मीडिया)
1980 में जब जगन्नाथ मिश्र सीएम बने तो शासन पर उनका दबदबा बढ़ने लगा। राज्य में पार्टी के अंदर से भी विरोध की आवाजें बंद हो गईं। इसी के चलते मिश्र खुद को शक्ति का केन्द्र समझने की ग़लती कर बैठे। 26 जुलाई को विधानसभा में कहा कि देश के खनिज का 40 फीसदी उत्पादन बिहार करता है लेकिन उससे आई रॉयल्टी का केवल 14 प्रतिशत हिस्सा ही राज्य को मिलता है। केन्द्र से अनुरोध है कि इस नीति में बदलाव लाया जाए। उन्होंने आगे कहा कि केन्द्र बिहार के खनिज का क्रेता है, और यह ठीक नहीं है कि वह उसकी रॉयल्टी की दर तय करे। मिश्र का यह बयान सीधे केन्द्र सरकार के लिए चैलंज समझा गया और मिश्र राजीव की आंखों में चुभने लगे।
जगन्नाथ मिश्र ने खुद को मजबूत करने के लिए भूमिहारों और राजपूतों के गुटों को नजरअंदाज करना शुरू कर दिया था। 1983 के फरवरी महीन में उन्होंने 11 मंत्रियों को उनकी कुर्सी से बेदखल कर दिया। जिसमें भूमिहारों के नेता और कृषि मंत्री ललितेश्वर प्रसाद शाही भी शामिल थे। शाही ने विद्रोह करते हुए दिल्ली में मिश्र के खिलाफ कैंपिंग शुरू कर दी। इंदिरा और राजीव को उनके ग़लत फैसले से रूबरू कराया। जिसका असर यह हुआ कि भूमिहार समाज से आने वाले श्यामसुंदर सिंह धीरज को बिहार की युवा कांग्रेस का अध्यक्ष नियुक्त कर दिया गया। जिन्हें कुछ दिन पहले ही मिश्र ने उप मंत्री पद से हटाया था। ललितेश्वर को राजीव गांधी का समर्थन था।
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तारीख थी 9 अगस्त 1983…सात विपक्षी दलों ने मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्र को हटाने के लिए भारत बंद का आयोजन किया। एल.पी. शाही और अन्य असंतुष्ट विधायकों के लिए यह मिश्र सरकार की कमियों को आलाकमान के सामने उजागर करने का एक अवसर था। कांग्रेस (आई) के साठ असंतुष्ट विधायकों ने दिल्ली में डेरा डाल दिया और मिश्र को हटाने के लिए अभियान छेड़ दिया। जिसके बाद जगन्नाथ मिश्र को दिल्ली बुलाया गया। राजीव गांधी भी इंदिरा गांधी के साथ बैठक में मौजूद थे। लेकिन मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्र को इस बातचीत की जानकारी नहीं दी गई।
खैर बैठक हुई और जगन्नाथ मिश्र दिल्ली से लौटे तो वे बाबा भोलेनाथ की पूजा करने देवघर गए। उन्हें लगा कि उन्हें राहत मिल गई है। लेकिन अचानक उन्हें दिल्ली से इस्तीफा देने का आदेश मिल गया। केंद्र सरकार के इस फैसले से सभी स्तब्ध रह गए। कहा जाता है कि राजीव गांधी के सुझाव पर जगन्नाथ मिश्र को हटाया गया था। इसके अलावा केंद्रीय नेतृत्व ने डॉ. मिश्र को अपनी पसंद के किसी भी विधायक को मुख्यमंत्री बनाने से रोकने की भी व्यवस्था की थी। उन्होंने स्वतंत्रता दिवस से एक दिन पहले 14 अगस्त 1983 को इस्तीफा दे दिया। बिहार विधान परिषद के सदस्य चंद्रशेखर सिंह को तब नया मुख्यमंत्री नियुक्त किया गया।