बिहार विधानसभा चुनाव 2025, (कॉन्सेप्ट फोटो)
Bihar Assembly Elections 2025: बिहार की चुनावी राजनीति में लगभग 18% आबादी वाले मुस्लिम समुदाय का वोट हमेशा से चर्चा का विषय रहा है। राजनीतिक विश्लेषक इसे सत्ता की चाबी मानते हैं। हालांकि, हाल के चुनावों के नतीजे बताते हैं कि मुस्लिम-प्रभावित क्षेत्रों में भी भारतीय जनता पार्टी (BJP) का पलड़ा भारी रहा है। यह रुझान विशेष रूप से तब और मज़बूत हो जाता है जब भाजपा नीतीश कुमार की जनता दल यूनाइटेड (JDU) के साथ गठबंधन में होती है, जिससे यह गठजोड़ लगभग अजेय हो जाता है।
राज्य में कुल 86 सीटें ऐसी हैं जहां मुस्लिम आबादी का प्रभाव निर्णायक माना जाता है। इनमें से 51 सीटों पर मुस्लिमों की हिस्सेदारी 20% से 67% तक है, जबकि 35 सीटों पर यह 18% के आस-पास है। पिछले चुनाव में कांटे की टक्कर के बावजूद, एनडीए ने इन 86 महत्वपूर्ण सीटों में से 57 पर जीत दर्ज की। 20% से अधिक मुस्लिम आबादी वाली सीटों पर तो राजग (NDA) का स्ट्राइक रेट 71% रहा, जिसने एनडीए को बहुमत के आंकड़े तक पहुंचाने में निर्णायक भूमिका निभाई।
यहां तक कि 2010 की ‘भाजपा लहर’ में भी, एनडीए ने इन 86 सीटों में से 71 सीटें जीती थीं। उस समय 51 उच्च मुस्लिम-प्रभावित सीटों में से भाजपा को 27 सीटें मिली थीं और जदयू को 13 सीटों का लाभ हुआ था।
मुस्लिम बहुल सीटों पर एनडीए की सफलता का प्रमुख कारण समानांतर ध्रुवीकरण और मुस्लिम मतों का बिखराव रहा है। विपक्षी महागठबंधन के पक्ष में मुस्लिम मतों के एकतरफा ध्रुवीकरण की आशंका के बावजूद, अल्पसंख्यक वोटों का एक समानांतर ध्रुवीकरण होता रहा है, जिसका सीधा लाभ सत्ताधारी NDA को मिला। सीमांचल (किशनगंज, कटिहार, पूर्णिया, अररिया) और पश्चिम चंपारण-मुंगेर जैसे क्षेत्रों में मुस्लिम आबादी 22% से 68% तक है, जो इन सीटों के नतीजों को प्रभावित करती है।
इन सीटों पर भाजपा तब और भी अधिक मजबूत हो जाती है जब उसे नीतीश कुमार का साथ मिलता है। 2015 में जब नीतीश ने भाजपा का साथ छोड़ दिया था, तब विपक्षी महागठबंधन को इन 86 सीटों में से अधिकांश (51 में से 34 और 35 में से 24) पर जीत मिली थी, जबकि भाजपा केवल 22 सीटें ही जीत सकी थी। इस बार, राजनीतिक परिदृश्य में नए दावेदार भी उभरे हैं।
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अब बिहार की राजनीति में सक्रिय असदुद्दीन ओवैसी की AIMIM और जनसुराज पार्टी भी इस समुदाय पर ध्यान केंद्रित कर रही हैं। एआइएमआइएम ने मुस्लिम-प्रभावित लगभग सभी सीटों पर इसी समुदाय के उम्मीदवार उतारने की रणनीति अपनाई है।