
बिहार विधानसभा चुनाव 2025, (कॉन्सेप्ट फोटो)
Sikandra Assembly Constituency: बिहार के जमुई जिले की सिकंदरा विधानसभा सीट (अनुसूचित जाति आरक्षित), जो झारखंड की सीमा से सटी है, इस बार अपने ऐतिहासिक महत्व और अद्वितीय राजनीतिक समीकरण के कारण सुर्खियों में है। यह क्षेत्र जैन धर्म के लिए एक प्रमुख तीर्थस्थल है, लेकिन चुनावी अखाड़े में यहां एनडीए के उम्मीदवार के सामने महागठबंधन के दो-दो दिग्गज उम्मीदवार खड़े हो गए हैं, जिससे मुकाबला अप्रत्याशित रूप से त्रिकोणीय और कड़ा हो गया है।
सिकंदरा सीट पर वर्तमान में केंद्रीय मंत्री जीतन राम मांझी की पार्टी हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (हम) का कब्जा है। एनडीए गठबंधन के तहत ‘हम’ ने निवर्तमान विधायक प्रफुल्ल कुमार मांझी को दोबारा मैदान में उतारा है। उनका लक्ष्य अपनी सीट बरकरार रखते हुए एनडीए की ताकत साबित करना है।
इस सीट पर सबसे बड़ा चुनावी ड्रामा महागठबंधन के भीतर है। कांग्रेस ने यहां से विनोद चौधरी को उम्मीदवार बनाया है, जबकि सहयोगी राजद ने भी बागी होते हुए उदय नारायण चौधरी के रूप में अपना उम्मीदवार उतार दिया है। महागठबंधन की यह आंतरिक फूट सीधे तौर पर एनडीए के लिए फायदेमंद हो सकती है, क्योंकि महागठबंधन के पारंपरिक वोट बैंक (यादव, मुस्लिम, दलित) के दो हिस्सों में बंटने की आशंका है। इसके अलावा, जनसुराज पार्टी से सुभाष चंद्र बोस भी मैदान में हैं, जो मुकाबले को और जटिल बना रहे हैं।
सिकंदरा विधानसभा क्षेत्र में अब तक 15 बार चुनाव हुए हैं। शुरुआती दौर में कांग्रेस ने पांच बार जीत हासिल कर अपना वर्चस्व बनाए रखा। इसके अलावा, भाकपा और जदयू ने भी दो-दो बार जीत दर्ज की। 2015 में यह सीट कांग्रेस के सुधीर कुमार ने जीती थी, लेकिन 2020 में यह ‘हम’ के पास चली गई। यह बदलाव क्षेत्र के अप्रत्याशित चुनावी मिजाज को दर्शाता है। चूंकि यह सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है, इसलिए दलित वोट, विशेषकर रविदास समुदाय के वोट, चुनावी नतीजों में निर्णायक भूमिका निभाते हैं।
सिकंदरा क्षेत्र अपनी गहरी धार्मिक आस्था के लिए प्रसिद्ध है। यहां स्थित जैन मंदिर लछुआर में भगवान महावीर की 2,600 वर्ष से अधिक पुरानी काली पत्थर की मूर्ति है। यह स्थल जैन तीर्थयात्रियों के लिए एक प्रमुख केंद्र है। कुमार गांव में स्थित मां नेतुला मंदिर एक प्रसिद्ध सिद्धपीठ है, जहां नेत्र और पुत्र प्रदाता देवी के रूप में मां अंबे की पूजा की जाती है। नेत्र विकार से पीड़ित भक्त यहां बड़ी संख्या में आते हैं।
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ये धार्मिक केंद्र स्थानीय संस्कृति को समृद्ध करते हैं, लेकिन चुनाव में जातिगत गोलबंदी और राजनीतिक समीकरण ही अंतिम परिणाम तय करते हैं। इस बार महागठबंधन की फूट का फायदा एनडीए उठाता है या बागी उम्मीदवार बाजी पलट देते हैं, यह देखना दिलचस्प होगा।






