मखदुमपुर विधानसभा, (कॉन्सेप्ट फोटो)
Makhdumpur Assembly Seat Profile: बिहार के मगध क्षेत्र में जहानाबाद जिले की मखदुमपुर विधानसभा सीट भले ही एक छोटा सा प्रखंड हो, लेकिन यह बिहार की राजनीति की नर्सरी रही है, जहाँ बड़े-बड़े दिग्गजों ने अपनी किस्मत आजमाई है। यह अनुसूचित जाति (SC) के लिए आरक्षित सीट है, जो हमेशा से सत्ता की खींचतान का केंद्र बनी रही है। 2020 के विधानसभा चुनाव का नतीजा याद आता है, जिसने राजद (RJD) को इस सीट पर फिर से जीत का परचम लहराने का मौका दिया।
मखदुमपुर सीट हमेशा से ही प्रभावशाली नेताओं का गढ़ रही है, जिससे यह Bihar Politics में एक हाई-प्रोफाइल सीट बन जाती है:
जीतनराम मांझी का प्रतिनिधित्व: मखदुमपुर विधानसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व एक बार पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी भी कर चुके हैं। उन्होंने 2010 के विधानसभा चुनाव में इस सीट का नेतृत्व किया था।
पूर्व मंत्रियों का प्रभाव: इससे पहले नीतीश कुमार की सरकार में मंत्री पद संभाल चुके कृष्णनंदन वर्मा ने 2005 के चुनाव में राजद उम्मीदवार के रूप में यहाँ जीत का परचम फहराया था। साथ ही, लालू यादव की सरकार में मंत्री रहे बागी वर्मा भी दो बार यहाँ से विधायक चुने गए थे।
यह इतिहास दर्शाता है कि मखदुमपुर की राजनीतिक हवा कब किस ओर बहती है, यह बता पाना हमेशा से मुश्किल भरा रहा है, लेकिन यहाँ की जनता ने हमेशा कदवर नेताओं को मौका दिया है।
अगर हम चुनावी इतिहास के पन्ने पलटें, तो मखदुमपुर ने अलग-अलग समय पर कई पार्टियों को सत्ता का स्वाद चखाया है:
कांग्रेस का पुराना दौर: यहां कांग्रेस ने सबसे ज्यादा 6 बार जीत दर्ज की, लेकिन यह पुराना दौर था।
क्षेत्रीय दलों का उदय: इसके बाद जनता दल के टूटने से निकली पार्टियों का वर्चस्व रहा। राजद ने 3 बार, लोजपा ने एक और जदयू ने एक बार चुनाव जीता।
राजद की मजबूत पकड़: 1995 के बाद से राजद की पकड़ मजबूत रही है, जिसने पिछले चार में से तीन चुनाव जीते हैं।
2020 के चुनाव में राजद के उम्मीदवार सतीश दास ने हिन्दुस्तानी आवाम मोर्चा (सेक्युलर) के देवेंद्र कुमार को बड़े अंतर से मात दी थी। इस मुकाबले में बहुजन समाज पार्टी तीसरे स्थान पर रही थी, जो दिखाता है कि सुरक्षित सीट होने के बावजूद यहाँ मुकाबला त्रिकोणीय रहा।
ऐतिहासिक अतीत: बराबर की गुफाएं
मखदुमपुर का सबसे बड़ा और सबसे आकर्षक पहलू इसका ऐतिहासिक अतीत है, जो बराबर की पहाड़ियों में स्थित प्राचीन बराबर गुफाओं में जीवित है। यह स्थान शहर से लगभग 11 किलोमीटर दक्षिण-पूर्व में है और इसे भारत की सबसे पुरानी चट्टानों को काटकर बनाई गई गुफाओं के रूप में जाना जाता है।
ये गुफाएं मौर्य साम्राज्य के समय की हैं और प्राचीन बौद्ध वास्तुकला और आजीवक संप्रदाय के उद्भव से जुड़ी हुई हैं। इन सात गुफाओं के समूह में ‘लोमस ऋषि गुफा’, जिसे ‘सतघरवा गुफा’ भी कहते हैं, सबसे प्रसिद्ध है। यह ऐतिहासिक विरासत मखदुमपुर को शिक्षा, संस्कृति और सत्ता की खींचतान का एक ऐसा केंद्र बनाती है जो बिहार की राजनीति को हमेशा दिलचस्प बनाए रखता है।
मखदुमपुर भले ही अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित सीट हो, लेकिन चुनावी नतीजे तय करने में यहाँ के सामाजिक समीकरण बहुत मायने रखते हैं:
एससी मतदाता बड़ी भागीदारी रखते हैं। लेकिन जीत का रास्ता इन्हीं के साथ-साथ कोरी, यादव और भूमिहार जाति के मतदाताओं से होकर गुजरता है। इन समुदायों के मतदाता चुनावों में निर्णायक भूमिका निभाते हैं और यही वजह है कि हर पार्टी अपने उम्मीदवार का चयन करते समय इन जातीय समीकरणों का खास ख्याल रखती है।
आगामी Bihar Assembly Election 2025 में, राजद के सामने अपनी मजबूत पकड़ को बरकरार रखने की चुनौती होगी, जबकि एनडीए गठबंधन (भाजपा/हम) इस सीट को वापस जीतने के लिए जातीय गोलबंदी और पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी के प्रभाव को भुनाने की कोशिश करेगा।
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मखदुमपुर विधानसभा सीट बिहार चुनाव 2025 में एक हाई-स्टेक मुकाबला पेश करने वाली है, जहाँ राजद की मजबूत पकड़ और एनडीए की वापसी की चुनौती दोनों दिखाई देंगी। बराबर की पहाड़ियों से इतिहास झाँकता है और चुनावी अखाड़े में बड़े-बड़े धुरंधर उतरते हैं। यहाँ की जनता स्थानीय विकास और बड़े नेताओं की साख के आधार पर ही इस बार अपना फैसला सुनाएगी।