
बिहार विधानसभा चुनाव 2025, (कॉन्सेप्ट फोटो)
Kurtha Assembly Constituency: बिहार के अरवल जिले में मगध के उपजाऊ मैदानों के बीच बसा कुर्था, सिर्फ एक विकास खंड नहीं, बल्कि एक ऐतिहासिक और राजनीतिक रणभूमि है। सोन नदी की जीवनदायिनी धारा के किनारे स्थित यह क्षेत्र सदियों से बदलाव का गवाह रहा है। धान, गेहूं और दलहन की हरी-भरी फसलों के बीच यहां की राजनीति में हमेशा एक गहरी समाजवादी जड़ रही है। कुर्था की भूमि जितनी उपजाऊ है, यहाँ की सियासत उतनी ही जटिल और ऐतिहासिक रही है, जो इसे Bihar Politics में एक निर्णायक सीट बनाती है।
1951 में विधानसभा क्षेत्र के रूप में स्थापित होने के बाद इस सीट पर समाजवादियों का गहरा प्रभाव रहा है। शुरुआती दशकों में सोशलिस्ट पार्टी, प्रजा सोशलिस्ट पार्टी, संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी और जनता पार्टी जैसी पार्टियों को बारी-बारी से जीत मिलती रही। इस विरासत का सबसे बड़ा नाम रहे बिहार के दिग्गज समाजवादी नेता जगदेव प्रसाद ऊर्फ जगदेव बाबू। उन्होंने कुर्था का प्रतिनिधित्व 1967 और 1969 में लगातार दो बार विधायक बनकर किया, जिससे इस क्षेत्र की पहचान राज्य की राजनीति में मजबूत हुई।
जगदेव बाबू के बाद उनके बेटे नागमणि कुशवाहा भी इस सीट से दो बार चुनाव जीते, जिससे यह क्षेत्र समाजवादी विरासत और कुशवाहा राजनीति का एक मजबूत केंद्र बना रहा।
हालांकि, समय के साथ यहां की सियासी हवा बदली। हाल के वर्षों में यह मुकाबला मुख्य रूप से राष्ट्रीय जनता दल (राजद) और जनता दल यूनाइटेड (जदयू) के बीच केंद्रित हो गया है। इन दोनों दलों ने यहाँ दो-दो बार परचम लहराया है, जबकि कांग्रेस भी दो बार जीती है। 2020 के विधानसभा चुनाव ने एक नया अध्याय लिखा। यह मुकाबला सीधे-सीधे राजद और जदयू के बीच था।
राजद के उम्मीदवार बागी कुमार वर्मा ने जदयू के सत्यदेव सिंह को हराया। बागी कुमार वर्मा ने भारी अंतर से जीत हासिल की और कुर्था की कमान अपने हाथ में ले ली। आगामी Bihar Assembly Election 2025 में बागी कुमार वर्मा के सामने यह साबित करने की चुनौती होगी कि क्या वे बदलाव की परंपरा को तोड़कर अपनी जीत दोहरा सकते हैं।
कुर्था के मतदाता जातिगत समीकरणों के प्रति बहुत जागरूक रहे हैं। यह विधानसभा क्षेत्र पूरी तरह से एक ग्रामीण सीट है, जहाँ की चुनावी रणनीतियां जातीय गोलबंदी पर टिकी होती हैं। इस ग्रामीण सीट पर भूमिहार, कुर्मी, रविदास, राजपूत और कोइरी वोटरों की निर्णायक भूमिका है। कुर्था की आबादी में कुशवाहा, यादव और भूमिहार समुदाय प्रमुख हैं, जो चुनावी रणनीतियों की दिशा तय करते हैं।
राजद की जीत अक्सर यादव और मुस्लिम वोटों के साथ पिछड़ी जातियों की गोलबंदी पर निर्भर करती है, जबकि जदयू कुर्मी-कुशवाहा आधार और भूमिहार समुदाय के समर्थन पर जोर देती है।
कुर्था का एक और पहलू इसका नक्सल इतिहास है। यह क्षेत्र मगध जोन का हिस्सा रहा है, जो 1990 और 2000 के दशक में माओवादियों के लिए एक ट्रांजिट कॉरिडोर के रूप में कार्य करता था। यह अतीत इस क्षेत्र के सामाजिक-आर्थिक पिछड़ेपन को दर्शाता है। हालांकि, 2020 के बाद स्थिति में बड़ा सुधार आया है और यहां कोई बड़ी हिंसक घटना सामने नहीं आई है। अब यहाँ की राजनीति मुख्य रूप से विकास, रोजगार और बुनियादी सुविधाओं पर केंद्रित है।
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कुर्था विधानसभा सीट बिहार चुनाव 2025 में समाजवादी विरासत, जटिल जातीय समीकरण और राजद-जदयू की सीधी टक्कर का एक शानदार उदाहरण है। बागी कुमार वर्मा के लिए यह सीट बचाना आसान नहीं होगा, क्योंकि जदयू अपनी खोई हुई पकड़ को वापस पाने के लिए पूरी ताकत लगाएगी। यहाँ का हर चुनाव सिर्फ सत्ता का खेल नहीं, बल्कि इस क्षेत्र की पहचान और विकास की दिशा तय करने का एक निर्णायक मोड़ होता है।






