करगहर विधानसभा, (कॉन्सेप्ट फोटो)
Kargahar Assembly Constituency: बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर जारी राजनीतिक सरगर्मियों के बीच करगहर विधानसभा सीट की चर्चा स्वाभाविक रूप से तेज हो गई है। रोहतास जिले के सासाराम अनुमंडल के अंतर्गत आने वाला करगहर क्षेत्र भौगोलिक रूप से पूरी तरह से ग्रामीण इलाका है।
यह 257 गांवों से मिलकर बना है, जिसका सबसे नजदीकी शहरी केंद्र जिला मुख्यालय सासाराम है। शहरी केंद्रों के अभाव के कारण, यहां की अर्थव्यवस्था और सामाजिक जीवन मुख्यतः कृषि पर आधारित है, जो इसकी पहचान को मज़बूती देता है।
करगहर की ऐतिहासिक पहचान लंबे समय तक सासाराम से जुड़ी रही है। यह इलाका न केवल प्रशासनिक रूप से बल्कि राजनीतिक रूप से भी सासाराम का एक अभिन्न हिस्सा माना जाता था। हालांकि, 2008 में परिसीमन के बाद इसे एक अलग विधानसभा क्षेत्र का दर्जा मिला। इस बदलाव के बाद 2010 में पहली बार यहां विधानसभा चुनाव हुआ, जिसने करगहर को बिहार के राजनीतिक मानचित्र पर एक स्वतंत्र पहचान दी। इससे पहले, यहां के चुनावी रुझान सासाराम विधानसभा के तहत गिने जाते थे।
करगहर की सबसे बड़ी और ज्वलंत चुनौती शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं का अभाव है। शिक्षा के मामले में यह क्षेत्र आज भी पिछड़ा हुआ है। यहां उच्च शिक्षा संस्थानों की कमी है, जिसके कारण छात्रों को अपनी पढ़ाई पूरी करने के लिए सासाराम या अन्य बड़े शहरों की ओर रुख करना पड़ता है। स्कूलों में भी संसाधनों की कमी एक बड़ी चुनौती बनी हुई है।
इसी तरह, स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति भी कमजोर है। यहां के कई पंचायतों में अब भी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (PHC) ठीक से काम नहीं कर रहे हैं, जिससे ग्रामीण आबादी को साधारण उपचार के लिए भी लंबी दूरी तय करनी पड़ती है। युवाओं को बेहतर शिक्षा और रोजगार के अवसरों के लिए अक्सर दूसरे शहरों या राज्यों में पलायन करना पड़ता है, जो यहां का एक गंभीर सामाजिक और आर्थिक मुद्दा है।
चुनाव आयोग के 2024 के आंकड़ों के अनुसार, करगहर की कुल जनसंख्या 5,67,156 है। इनमें 2,94,543 पुरुष और 2,72,613 महिलाएं हैं। वहीं, कुल मतदाताओं की संख्या 3,29,466 है। इनमें 1,72,706 पुरुष, 1,56,750 महिलाएं और 10 थर्ड जेंडर मतदाता शामिल हैं। मतदाताओं की यह संख्या Bihar Assembly Election 2025 में जीत-हार का फैसला करेगी।
सामाजिक संरचना की दृष्टि से, करगहर विधानसभा में ओबीसी, सवर्ण और दलित वोटरों का मिश्रण इसे हर चुनाव में त्रिकोणीय मुकाबले का केंद्र बना देता है। अनुसूचित जाति की भागीदारी करीब 20.41 फीसदी है। ये निर्णायक भूमिका निभाते हैं। वहीं मुस्लिम मतदाताओं की संख्या लगभग 6.4 फीसदी है, जो आम तौर पर महागठबंधन का समर्थन करते हैं। ओबीसी और सवर्ण समुदाय के लोगों की मजबूत उपस्थिति चुनावी समीकरणों को निर्णायक बनाती है। इन जटिल जातीय समीकरणों के कारण करगहर सीट पर मुकाबला हमेशा कांटे की टक्कर वाला होता है।
राजद (RJD): पार्टी का यादव-मुस्लिम समीकरण यहां मजबूत है।
जदयू (JDU): इसका कुर्मी-दलित आधार इसे टक्कर में बनाए रखता है।
भाजपा (BJP): पार्टी की सवर्ण पकड़ तीनों दलों को मजबूती देती है।
करगहर विधानसभा की सबसे बड़ी चुनौतियां शिक्षा, रोजगार और बुनियादी ढांचा हैं। ग्रामीण इलाकों में सड़क, बिजली और स्वास्थ्य सेवाएं अब भी अधूरी हैं। कृषि यहां की रीढ़ है, लेकिन सिंचाई की पर्याप्त सुविधा नहीं होने के कारण किसानों को हर साल नुकसान झेलना पड़ता है। सूखे और अनियमित बारिश की समस्या कृषि आधारित अर्थव्यवस्था पर गंभीर असर डालती है।
युवाओं में रोजगार की कमी और पलायन गंभीर समस्या है, जो बिहार चुनाव में एक बड़ा मुद्दा बनकर उभरता है। इन सबके बीच, लोग उम्मीद करते हैं कि जो भी सरकार बने वह इन बुनियादी सुविधाओं को ठीक करे और रोज़गार के अवसर पैदा करे।
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करगहर विधानसभा सीट बिहार असेंबली इलेक्शन 2025 के लिए एक महत्वपूर्ण सीट है, जहां विकास की मांग, शिक्षा का अभाव और जातीय समीकरण एक साथ टकराते हैं। Bihar Politics में यह सीट महागठबंधन और एनडीए के बीच कांटे की टक्कर का गवाह बन सकती है। स्थानीय मुद्दे और बुनियादी सुविधाओं को लेकर जनता का आक्रोश चुनावी परिणाम को निर्णायक रूप से प्रभावित करेगा।