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Bihar Assembly Elections: बिहार में विधानसभा चुनाव के दूसरे और आखिरी चरण का प्रचार थम गया है। अब इस चरण में सबकी निगाहें दलित और मुसलमान मतदाताओं पर लगी हैं। विश्लेषण के मुताबिक जनादेश की चाबी 18 फीसदी दलित मतदाताओं के हाथ में है, जो तकरीबन सौ सीटों पर परिणाम का पलड़ा इधर से उधर झुकाने की ताकत है।
इसके अलावा इसी चरण में सीमांचल समेत तीन दर्जन सीटों पर प्रभावशाली उपस्थिति रखने वाले मुसलमान समुदाय के भविष्य की राजनीति के संकेत भी छिपे हैं। बीते चुनाव के मुकाबले इस बार की परिस्थिति थोड़ी अलग है। पिछली बार एनडीए का साथ देने वाली वीआईपी अब महागठबंधन के साथ है तो अपने दम पर चुनाव लड़ने वाले चिराग इस बार एनडीए को रौशन करने में जुटे हैं।
विपक्षी महागठबंधन के इतर एआईएमआईएम के बाद जन सुराज पार्टी भी खुद को मुलसमानों का रहनुमा साबित करने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा रही है। तब कटि की टक्कर में राजग विपक्षी महागठबंधन से 17 सीटें अधिक जीत कर हांफते-कांपते बहुमत के जादुई आंकड़े को छूने में कामयाब रहा था।
बीते चुनाव में एनडीए को महागठबंधन के मुकाबले 1.6% अधिक वोट मिले थे। इसी बढ़त की बदौलत उसे महागठबंधन की 49 सीटों के मुकाबले 66 सीटों पर जीत हासिल हुई थी। एनडीए को अंग प्रदेश तिरहुत और मिथिलांचल में जबकि राजद को मगध क्षेत्र में अच्छी बढ़त हासिल हुई थी। सीमांचल में कांटे के मुकाबले और एआईएमआईएम की उपस्थिति के कारण NDA को मामूली बढ़त हासिल हुई थी।
इस चरण में सबसे अहम दलित बिरादरी है। कुल 18 फीसदी की हिस्सेदारी रखने वाली दलित बिरादरी में 13 फीसदी महादलित (इनमें 2.5 फीसदी मुसहर) और पांच फीसदी पासवान (दुसाध) बिरादरी से हैं। करीब सौ सीटें ऐसी हैं, जहां हर सीट पर इस बिरादरी के मतदाताओं की आबादी 30 से 40 हजार के बीच है।
चिराग के अपने दम पर चुनाव लड़ने के कारण जदयू को सीधे-सीधे 22 सीटों का नुकसान हुआ था। ऐसा भाजपा और राजनैतिक पंडितों का मानना है। चिराग और जीतन राम मांझी के के साथ आने से पासवान और मुसहर बिरादरी के 7.5 फीसदी मत एनडीए के पक्ष में गोलबंद होगा।
सीमांचल में दशकों तक राजद के कद्दावर नेता मुस्लिम राजनीति का चेहरा रहे। अब मुसलमानों में नए नेतृत्व को लेकर छटपटाहट साफ नजर आती है। मुस्लिम प्रभाव वाली सीटों पर बीते चुनाव में सीमांचल की 5 सीटें जीतने वाली एआईएमआईएम ने महागठबंधन के डिप्टी सीएम का उम्मीदवार नहीं बनाने को इस समुदाय के अपमान से जोड़ दिया है।
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इसके अलावा इस बार चुनाव में ताल ठोक रही नई नवेली जन सुराज पार्टी भी खुद को मुसलमानों का रहनुमा साबित करने में जुही है। एआईएमआईएम ने मुस्लिम प्रभाव वाली सभी सीटों पर मुस्लमान उम्मीदवार खड़े किए हैं। जनसुराज पार्टी ने भी मुस्लिम बाहुल्य सीटों पर इसी समुदाय को मौका दिया है।