Electric Vehicle की कीमत में कमी नहीं आ रही है। (सौ. Freepik)
नवभारत ऑटोमोबाइल डेस्क: भारत में इलेक्ट्रिक वाहनों (EVs) की बढ़ती मांग के बावजूद, इनके दाम पारंपरिक पेट्रोल-डीजल (ICE) वाहनों की तुलना में अधिक होने के कारण बड़े पैमाने पर अपनाने में बाधा आ रही है। यह अंतर सरकार की EV को लोकप्रिय बनाने और बड़े शहरों में बढ़ते प्रदूषण को नियंत्रित करने की योजना को भी प्रभावित कर सकता है।
वर्तमान में, एक औसत इलेक्ट्रिक कार की कीमत 17.89 लाख है, जबकि पेट्रोल/डीजल वाहन की औसत कीमत 12.77 लाख है। यह 40% से अधिक का मूल्य अंतर उपभोक्ताओं को EV खरीदने से हतोत्साहित कर रहा है। यही कारण है कि घरेलू यात्री वाहन बाजार में इलेक्ट्रिक वाहनों की हिस्सेदारी अभी भी मात्र 2.62% है।
हाल ही में Convergence India और 10th Smart Cities India Expo में, सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने कहा कि छह महीने के भीतर EVs और पेट्रोल वाहनों की कीमतों में कोई अंतर नहीं रहेगा और इलेक्ट्रिक कारें किफायती हो जाएंगी।
EVs की ऊंची कीमतों का प्रमुख कारण महंगे लिथियम-आयन बैटरी हैं, जो कुल लागत का बड़ा हिस्सा बनती हैं। इन बैटरियों का उत्पादन भारत में सीमित होने के कारण, अधिकतर बैटरियां आयात की जाती हैं और इन पर भारी शुल्क लगता है। हालांकि, “जैसे-जैसे बैटरी की लागत घटेगी और घरेलू उत्पादन बढ़ेगा, EVs की कीमतें धीरे-धीरे कम होंगी और ICE वाहनों के बराबर आ जाएंगी,”
वहीं, भारत में EV बाजार अभी भी छोटा है:
चीन की तुलना में भारत में EV की कीमतों में गिरावट धीमी है, लेकिन रवि भाटिया, प्रेसिडेंट, Jato Dynamics ने कहा “सकारात्मक संकेत यह है कि बैटरी इलेक्ट्रिक वाहनों (BEVs) की मॉडल रेंज बढ़ी है। 2022 में EV मॉडल्स की संख्या 19 थी, जो 2024 में बढ़कर 36 हो गई। यह उपभोक्ताओं को अलग-अलग प्राइस सेगमेंट में अधिक विकल्प देता है,”
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भारत में EV बाजार में Tata Motors अग्रणी बनी हुई है, लेकिन हाल ही में अन्य कंपनियों की एंट्री से इसकी मार्केट हिस्सेदारी पर दबाव बढ़ा है। प्रतिस्पर्धा बढ़ने से तकनीकी नवाचार और मूल्य में कमी आने की उम्मीद है। एक प्रमुख कार कंपनी के अधिकारी ने कहा “हम स्थानीय बैटरी उत्पादन और सप्लाई चेन ऑप्टिमाइजेशन पर भारी निवेश कर रहे हैं। इससे अगले दो वर्षों में लागत में 15-20% तक की कमी आएगी,”
जैसे-जैसे EVs की बिक्री बढ़ेगी और कंपनियां बड़े पैमाने पर उत्पादन करेंगी, इनकी कीमतें और घटेंगी। यह साफ संकेत देता है कि कंपनियां मुनाफे से ज्यादा बाजार हिस्सेदारी बढ़ाने पर ध्यान दे रही हैं और बढ़ती प्रतिस्पर्धा से ग्राहकों को किफायती EVs मिलने की संभावना है।