
यूनुस ने रोहिंग्या शरणार्थी शिविर का किया दौरा (फोटो- सोशल मीडिया)
Rohingya Refugee Problem Bangladesh: बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के मुखिया मोहम्मद यूनुस ने रोहिंग्या मुसलमानों के मुद्दे से हाथ खिंचने का मन बना लिया है। यूनुस ने हाल ही में बांग्लादेश में रहने वाले 13 लाख रोहिंग्या शरणार्थियों को लेकर कहा कि उनके देश में इतनी संख्या में लोगों को रखने के लिए उचित संसाधन मौजूद नहीं है। उन्होंने अंतरराष्ट्रीय समुदाय से इसका कुछ उपाय निकालने की अपील की है। उनके इस बयान से एक बार फिर लाखों रोहिंग्या शरणार्थियों का भविष्य खतरे में आ गया है।
काॅक्स बाजार में आयोजित एक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में बोलते हुए यूनुस ने रोहिंग्या शरणार्थियों के मुद्दे पर कहा कि, यह एक गंभीर समस्या है। हमारे देश में इतने लोगों का रख पाना मुश्किल है। रोहिंग्याओं को राहत पहुंचाने के लिए अंतरराष्ट्रीय समुदाय को स्थायी उयाप निकालने की आवश्यकता है।
बांग्लादेश के सूदुर में बसा कॉक्स बाजार पिछले आठ साल से दुनिया का सबसे बड़ा शरणार्थी शिविर बना हुआ है। साल 2017 में म्यांमार के रखाइन प्रांत में हिंसा भड़कने के बाद, कुछ ही दिनों में सात लाख से अधिक रोहिंग्या मुसलमान शरण की तलाश में बांग्लादेश आए थे।
जहां तत्कालीन प्रधानमंत्री शेख हसीना ने उन्हें शरण दी थी। संयुक्त राष्ट्र ने उस सैन्य कार्रवाई को नस्लीय आधार पर एक समाज के सफाया करने की कोशिश करार दिया था। यूनुस ने कहा, ‘हमारे सामने कई चुनौतियां हैं, हमारे स्त्रोत सीमित है और बाहरी मदद में कमी आई है। उन्होंने अंतरराष्ट्रीय समुदाय से अपील करते हुए रोहिंग्या संकट का कोई स्थायी उपाय खोजने को कहा।
यूनुस ने कहा कि,कॉक्स बाजार शिविरों में आधे से अधिक शरणार्थी बच्चे हैं, जो बांस से बनी तंग झोपड़ियों में मुस्किल परिस्थितियों में रहते हैं। उन्होंने बताया कि विदेशों से मिलने वाली सहायता लगातार घट रही है। इसके चलते कई स्कूल बंद हो चुके हैं और लाखों बच्चों के भविष्य पर खतरा मंडरा रहा है। इस दौरान रोहिंग्या शरणार्थियों ने हाथों में तख्तियां और पोस्टर लेकर एक रैली भी निकाली। जिन पर लिखा था, “अब और शरणार्थी जीवन नहीं”, “जनसंहार बंद करो” और “स्वदेश वापसी ही अंतिम समाधान है”।
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2025 की शुरुआत से अब तक म्यांमार से लगभग 1.5 लाख नए रोहिंग्या शरणार्थी बांग्लादेश पहुंच चुके हैं, जिससे वहां पहले से जारी मानवीय संकट और भी गहरा गया है। म्यांमार सरकार जहां अपनी सैन्य कार्रवाई को आतंकवाद विरोधी अभियान करार देती है, वहीं संयुक्त राष्ट्र इसे सुनियोजित जातीय सफाई मानता है। शरणार्थी शिविरों की स्थिति दिन-ब-दिन और भी खराब होती जा रही है।






