
एक्टिविस्ट वरीशे मोरादी की सजा रद्द, फोटो (सो. सोशल मीडिया)
Iran News In Hindi: ईरान में राजनीतिक कैदियों पर बढ़ती कार्रवाई और मौत की सजाओं को लेकर जारी बहस के बीच एक बड़ा फैसला सामने आया है। सुप्रीम कोर्ट ने महिला अधिकार कार्यकर्ता और राजनीतिक कैदी वरीशे मोरादी (जिन्हें जोवाना सनेह के नाम से भी जाना जाता है) को मिली मौत की सजा को रद्द कर दिया है।
मोरादी के वकील मुस्तफा नीली ने जानकारी दी कि सर्वोच्च न्यायालय ने जांच रिपोर्ट में कई गंभीर खामियां पाई थीं, जिसके चलते पहले दिया गया निर्णय न्यायिक मानकों पर खरा नहीं उतरता था।
अदालत ने माना कि मोरादी पर लगाए गए आरोपों को न तो सही तरीके से साबित किया गया और न ही जांच के दौरान उनके खिलाफ पेश किए गए सबूत पर्याप्त थे। इसी आधार पर सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि मामले की दोबारा सुनवाई की जाए।
फैसले के बाद केस को तेहरान की क्रांतिकारी अदालत की शाखा 15 के पास भेज दिया गया है, जिसकी अध्यक्षता जज अबोलघासेम सलावती करते हैं वही जज जिन्होंने पहली बार मोरादी को मौत की सजा सुनाई थी।
वरीशे मोरादी को 1 अगस्त 2023 को सशस्त्र विद्रोह के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। गिरफ्तारी के दौरान कथित रूप से उन्हें बुरी तरह पीटा गया और बाद में 10 नवंबर 2024 को अदालत ने उन्हें विद्रोही गतिविधियों में शामिल होने के आरोप में फांसी की सजा सुना दी। मोरादी पिछले लंबे समय से महिला अधिकारों और ISIS के खिलाफ अभियान में सक्रिय रही हैं।
उन्होंने जेल में रहते हुए अपना लिखित बचाव तैयार किया था और ईरानी जनता के नाम पत्र लिखकर कहा था। ISIS हमारा सिर काट रहा है और इस्लामी गणराज्य हमें फांसी दे रहा है। यह बयान ईरान के सामाजिक-राजनीतिक ढांचे को लेकर उनकी पीड़ा और संघर्ष को दिखाता है।
मोरादी ने अपनी सजा के खिलाफ 20 दिन की भूख हड़ताल भी की थी। जेल के अंदर उन्हें जरूरी चिकित्सा सुविधा और बुनियादी अधिकार न मिलने की शिकायतें लंबे समय से उठती रही हैं। उनकी फांसी के खतरे के खिलाफ ईरान में कई जगह विरोध प्रदर्शन हुए। 240 नागरिकों, कार्यकर्ताओं, वकीलों और राजनीतिक हस्तियों ने एक संयुक्त बयान जारी कर मोरादी की जिंदगी बचाने की अपील की थी।
उनका कहना था कि मोरादी महिला अधिकारों के लिए लड़ रही हैं और ISIS के खिलाफ सक्रिय भूमिका निभा रही थीं, ऐसे में उन्हें फांसी देना मानवीय व न्यायिक मूल्यों के खिलाफ है।
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ईरान में राजनीतिक आरोपों का सामना कर रहे कैदियों पर फांसी का खतरा लगातार मंडरा रहा है। रिपोर्ट्स के अनुसार, लगभग 70 राजनीतिक कैदी ऐसे हैं जिन्हें कभी भी मौत की सजा दी जा सकती है, जबकि 100 से अधिक लोगों पर राजनीतिक मामलों में सजा-ए-मौत का जोखिम बना हुआ है। ऐसे माहौल में मोरादी के मामले में आया यह फैसला मानवाधिकार संगठनों और सामाजिक कार्यकर्ताओं के लिए एक महत्वपूर्ण राहत के रूप में देखा जा रहा है।






