2025 में ट्रंप के पांच सबसे विवादित फैसले (सोर्स- सोशल मीडिया)
Trump 5 Most Controversial Decisions in 2025: अमेरिका के राष्ट्रपति के रूप में 2025 ट्रंप के दूसरे कार्यकाल का पहला साल रहा, लेकिन यह साल वैश्विक राजनीति और अंतरराष्ट्रीय संतुलन के लिए सबसे उथल-पुथल भरा भी साबित हुआ। जनवरी 2025 से लेकर साल भर में डोनाल्ड ट्रंप ने ऐसे कई बड़े और विवादित फैसले लिए, जिनका असर सिर्फ अमेरिका नहीं बल्कि पूरी दुनिया ने महसूस किया। यहाँ 2025 के पाँच सबसे बड़े फैसलों का विश्लेषण, जो अंतरराष्ट्रीय समुदाय के लिए झटका साबित हुए।
ट्रंप प्रशासन ने जनवरी 2025 में पहला बड़ा झटका तब दिया जब अमेरिका को पेरिस जलवायु समझौता समेत कई अंतरराष्ट्रीय पर्यावरण-संधियों से बाहर निकलने का आदेश जारी किया गया। यह कदम इसलिए भी विवादित रहा क्योंकि जलवायु परिवर्तन पर वैश्विक सहयोग की सबसे बड़ी जिम्मेदारी अमेरिका जैसे विकसित देशों पर होती है। ट्रंप ने इसे “अनावश्यक बोझ” बताते हुए हटाया, लेकिन वैज्ञानिक समुदाय और पर्यावरण संगठनों ने चेतावनी दी कि इससे वैश्विक क्लाइमेट एक्शन कई साल पीछे जा सकता है।
ट्रंप प्रशासन ने स्वास्थ्य और मानवाधिकार से जुड़े कई अंतरराष्ट्रीय निकायों के लिए अमेरिकी फंडिंग को लगभग पूरी तरह रोक दिया। इसमें WHO, UNHRC और फिलिस्तीनी नागरिकों की मदद के लिए काम करने वाली UNRWA जैसी संस्थाएं शामिल थीं। इस फैसले का असर उन देशों पर पड़ा जो अमेरिकी फंडिंग पर निर्भर थे। आलोचकों ने कहा कि वैश्विक स्वास्थ्य और राहत व्यवस्थाओं में अमेरिका की इस वापसी ने मानवीय संकटों को और बढ़ाया।
फरवरी 2025 में ट्रंप ने अंतरराष्ट्रीय व्यापार पर टैरिफ से सबसे बड़ा प्रहार किया। उन्होंने कनाडा और मेक्सिको से आयात होने वाले सामानों पर 25% तक का नया टैरिफ लागू किया। चीन सहित कई एशियाई देशों के लिए 10% बेसलाइन टैक्स की घोषणा की गई। भारत पर भी 25% अतिरिक्त टैरिफ का एलान हुआ, जिससे वैश्विक बाजारों में अस्थिरता बढ़ गई। इस कदम के बाद कई देशों ने प्रतिशोधी कार्रवाई का संकेत दिया और अंतरराष्ट्रीय व्यापार में असुरक्षा बढ़ गई। अमेरिका की अदालतों ने भी इन आदेशों पर सवाल उठाए, जिससे मामला और विवादित हो गया।
2025 की सबसे चौंकाने वाली घटनाओं में से एक था ट्रंप का गाजा को “अमेरिकी प्रशासन” के अंतर्गत लाने का प्रस्ताव। रिपोर्टों के मुताबिक इसमें बड़े पैमाने पर पुनर्रचना और लाखों पालेस्तीनी निवासियों के विस्थापन जैसी बातें शामिल थीं। यह प्रस्ताव दुनियाभर में तीखी आलोचना के केंद्र में रहा। मध्य-पूर्व देशों ने इसे “अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन” बताया, जबकि कुछ पश्चिमी देशों ने भी इसे अव्यावहारिक और अस्थिरता बढ़ाने वाला कदम कहा।
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ट्रंप प्रशासन ने H-1B वीजा कार्यक्रम में कई कड़े बदलाव किए, जिनमें वीजा की संख्या घटाना, आवेदन प्रक्रिया को जटिल बनाना, और अमेरिकी श्रमिकों को प्राथमिकता देने के लिए ‘Buy American, Hire American’ नीति लागू करना शामिल था। इसके अलावा, H-4 वीजा धारकों को काम करने से रोकने की कोशिश की गई। इन बदलावों का भारतीय पेशेवरों और विदेशी कंपनियों पर नकारात्मक असर पड़ा, जिससे वीजा प्राप्त करना कठिन हुआ।