ट्रंप ब्रिज से ईरान को घेरने उतरे अमेरिका-इजरायल
ईरान के साथ बढ़ते तनाव के बीच अमेरिका और इजरायल ने आर्मेनिया के साथ मिलकर एक नए परिवहन मार्ग (कॉरिडोर) की योजना बनाई है, जो सीधे तौर पर ईरान की सुरक्षा रणनीति के लिए चुनौती बन सकता है। इस मार्ग का नाम “ट्रंप ब्रिज ट्रांसपोर्टेशन कॉरिडोर” रखा गया है। यह न केवल अजरबैजान को उसके नखिचवान इलाके से जोड़ेगा, बल्कि ईरान की उत्तरी सीमा के पास अमेरिका के लिए एक स्थायी सैन्य अड्डे का भी काम करेगा।
यह एक 42 किलोमीटर लंबा रास्ता है, जो आर्मेनिया के स्यूनिक (Zangezur) क्षेत्र से होकर गुजरेगा। इसके जरिए अजरबैजान अपने मुख्य हिस्से और नखिचवान (एक अलग-थलग पड़ा इलाका) के बीच सीधा संपर्क स्थापित कर पाएगा।
हालांकि, इस परियोजना का असल मकसद केवल परिवहन सुविधा नहीं, बल्कि सुरक्षा और रणनीतिक नियंत्रण हासिल करना है।अमेरिका इस कॉरिडोर को 99 साल की लीज पर नियंत्रित करेगा और इसका निर्माण व संचालन एक अमेरिकी प्राइवेट मिलिट्री कंपनी (PMC) द्वारा किया जाएगा। यह मार्ग ईरान की सीमा के नजदीक होगा, जिससे यह क्षेत्र रणनीतिक रूप से अत्यंत संवेदनशील बन जाएगा।
यह कॉरिडोर ईरान की उत्तरी सीमा पर निगरानी का नियंत्रण अमेरिका के हाथों में सौंप देगा। इसके तहत, अमेरिकी प्राइवेट मिलिट्री कंट्रैक्टर्स (PMC) के 1,000 से अधिक सशस्त्र सुरक्षाकर्मी वहां तैनात किए जाएंगे, जिन्हें हथियारों के इस्तेमाल और बल प्रयोग की पूरी स्वतंत्रता होगी। यह मार्ग भविष्य में अमेरिका या इजरायल द्वारा छोटे पैमाने की सैन्य कार्रवाई के लिए एक आधार के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है। साथ ही, इस स्थान से ड्रोन अटैक, इलेक्ट्रॉनिक नजरबंदी, साइबर जासूसी और उपग्रहों के जरिए जानकारी जुटाने जैसी गतिविधियां भी अंजाम दी जा सकती हैं।
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ट्रंप ब्रिज एक हाई-सिक्योरिटी साइलेंट ज़ोन है, जिसे जरूरत पड़ने पर किसी भी समय युद्ध कमांड सेंटर, ड्रोन ऑपरेशन बेस या स्पेशल फोर्सेस के लॉन्च प्वाइंट में बदला जा सकता है। अगर इजरायल और ईरान के बीच तनाव और बढ़ता है, तो यह कॉरिडोर रियल-टाइम निगरानी और रणनीतिक हस्तक्षेप का केंद्र बन सकता है। यह ईरान की सीमाओं पर लगातार मानसिक दबाव बनाए रखने में सक्षम है और किसी संभावित हमले की स्थिति में महत्वपूर्ण सपोर्ट बेस की भूमिका निभा सकता है।
यह सिर्फ एक सड़क नहीं, बल्कि एक रणनीतिक मोर्चा है, जो ईरान को चारों ओर से घेरे में लेने की योजना का हिस्सा है। अमेरिका की ओर आर्मेनिया का झुकाव मध्य एशिया में शक्ति संतुलन को बदल सकता है। अब युद्ध केवल मिसाइलों से नहीं, बल्कि कॉरिडोर, निजी सैन्य कंपनियों और क्षेत्रीय गठबंधनों से लड़े जाएंगे।