अमेरिका में भारत मामलों के वरिष्ठ एक्सपर्ट रिचर्ड रोसो (सोर्स- IANS)
Strategic AI Defense Partnership: भारत और अमेरिका के बीच रणनीतिक और व्यापारिक रिश्तों के लिए साल 2025 उतार-चढ़ाव भरा रहा है। दोनों देशों ने सुरक्षा और तकनीकी मोर्चों पर हाथ मिलाया है, लेकिन व्यापारिक शुल्कों और कृषि क्षेत्र को लेकर असहमति भी बनी रही। वाशिंगटन स्थित विशेषज्ञ रिचर्ड रोसो ने IANS को दिए इंटरव्यू में कहा कि अब माहौल पहले की तुलना में अधिक शांत और रचनात्मक है। आने वाले वर्ष 2026 की पहली तिमाही इन रिश्तों को एक नई दिशा देने में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली है।
अमेरिका में भारत मामलों के वरिष्ठ एक्सपर्ट रिचर्ड रोसो ने हाल ही में इंटरव्यू में कहा कि भारत और अमेरिका के संबंधों ने साल 2025 में कूटनीतिक तेजी और व्यापारिक मतभेद दोनों देखे हैं। साल की शुरुआत में क्वाड देशों की बैठक और राष्ट्राध्यक्षों की मुलाकातों ने एक सकारात्मक आधार रखा था।
हालांकि, रूस से भारत द्वारा तेल की खरीद जारी रखने और कुछ भू-राजनीतिक मुद्दों पर वाशिंगटन की चिंताओं ने रिश्तों में हल्की कड़वाहट भी पैदा की। रोसो का मानना है कि अब वह तीखी बयानबाजी कम हो गई है और दोनों देश एक मजबूत आर्थिक नींव रखने की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं।
रिचर्ड रोसो के अनुसार, अमेरिकी कंपनियों के लिए भारत हमेशा से एक चुनौतीपूर्ण बाजार रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यकाल के दौरान कुछ ऐसी नीतियां अपनाई गईं जिनसे विदेशी उत्पादों के आयात पर असर पड़ा, जिसे लेकर राष्ट्रपति ट्रंप के समय से ही अमेरिका का नजरिया थोड़ा सख्त रहा है।
हालांकि, पिछले कुछ समय में भारत की व्यापार नीति में बदलाव भी आया है। ऑस्ट्रेलिया और यूएई के साथ हुए मुक्त व्यापार समझौते (FTA) और आयात शुल्क में की गई कुछ कटौती यह दर्शाती है कि भारत अब वैश्विक व्यापार के लिए अधिक लचीला रुख अपना रहा है।
भारत और अमेरिका के बीच एक पूर्ण व्यापार समझौता न हो पाने के पीछे कृषि क्षेत्र सबसे बड़ी बाधा बना हुआ है। अमेरिकी प्रशासन चाहता है कि भारत अपने बुनियादी कृषि उत्पादों के बाजार को अमेरिकी किसानों के लिए खोले। दूसरी ओर, भारत के लिए यह एक अत्यंत संवेदनशील सामाजिक और राजनीतिक मुद्दा है।
भारत में करोड़ों लोग खेती पर निर्भर हैं और उनके पास रोजगार के अन्य विकल्प सीमित हैं। रोसो ने भारत के पक्ष का समर्थन करते हुए कहा कि भारतीय अर्थव्यवस्था में सुधार संतुलित होने चाहिए ताकि ग्रामीण आबादी पर इसका नकारात्मक प्रभाव न पड़े।
आर्थिक मोर्चे पर रोसो ने भारत के भविष्य को लेकर बहुत सकारात्मक अनुमान लगाए हैं। उन्होंने कहा कि मध्य सदी तक भारत 20 से 25 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनकर अमेरिका और चीन को सीधी टक्कर देगा। यही कारण है कि अमेरिकी कंपनियां भारत के आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) सेक्टर में अरबों डॉलर का निवेश कर रही हैं।
यह निवेश अल्पकालिक लाभ के लिए नहीं बल्कि एक दीर्घकालिक रणनीतिक सोच का हिस्सा है। भारत का सेवा क्षेत्र पहले से ही दुनिया में अपनी धाक जमा चुका है और अब AI के माध्यम से वह तकनीक की अगली लहर का नेतृत्व करने को तैयार है।
मोदी सरकार के तीसरे कार्यकाल की शुरुआत को रोसो ने थोड़ा धीमा बताया, लेकिन उन्होंने स्वीकार किया कि पिछले कुछ महीनों में सुधारों की गति तेज हुई है। जीएसटी (GST) ढांचे में बदलाव और बीमा क्षेत्र में 100 प्रतिशत विदेशी निवेश (FDI) की अनुमति जैसे कदम वैश्विक निवेशकों के लिए बड़े संकेत हैं।
साल 2026 की पहली तिमाही इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि इस दौरान अमेरिकी राष्ट्रपति की भारत यात्रा, क्वाड नेताओं का शिखर सम्मेलन और फरवरी में होने वाला AI इम्पैक्ट समिट (AI Impact Summit) प्रस्तावित है। ये कार्यक्रम दोनों देशों के बीच व्यापारिक और तकनीकी सहयोग को नई ऊंचाइयों पर ले जा सकते हैं।
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पिछले एक दशक में भारत ने अपनी सुरक्षा क्षमताओं को काफी मजबूत किया है, जिसमें अमेरिका की बड़ी भूमिका रही है। रोसो ने कहा कि सुरक्षा के मोर्चे पर दोनों देश अब एक-दूसरे के सबसे करीब हैं। रक्षा तकनीक का हस्तांतरण और हिंद-प्रशांत क्षेत्र में बढ़ता सहयोग इस साझेदारी का मुख्य आधार है।
राजनीतिक स्तर पर भले ही छोटी-मोटी असहमति बनी रहे, लेकिन रक्षा और व्यापार के आंकड़े यह साबित करते हैं कि भारत और अमेरिका की यह जोड़ी आने वाले दशकों में वैश्विक व्यवस्था को प्रभावित करने वाली तीन सबसे बड़ी शक्तियों में से एक होगी।