रूस की अब पूरे यूरोप पर नजरें, फोटो (सोर्स - सोशल मीडिया)
नवभारत इंटरनेशनल डेस्क: रूस-यूक्रेन युद्ध को लेकर अब पूरी दुनिया की यही उम्मीद है कि यह खूनखराबा जल्द से जल्द खत्म हो। अमेरिकी पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भी युद्धविराम के लिए पुतिन और जेलेंस्की के बीच संवाद स्थापित करने की कोशिश कर रहे हैं। दूसरी ओर, यूरोपीय देश पहले ही कई बार रूस के खिलाफ सख्त कदम उठाने की वकालत कर चुके हैं। लेकिन अब यूरोप के सामने एक और गंभीर खतरा मंडरा रहा है। जर्मनी के एक वरिष्ठ सैन्य अधिकारी ने आगाह किया है कि रूस 2029 तक पूरे यूरोप पर बड़ा हमला कर सकता है और इसके लिए राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन पहले से ही रणनीतिक तैयारी कर रहे हैं।
जर्मन सेना के इंस्पेक्टर जनरल कार्स्टन ब्रेउर का कहना है कि रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन 2029 तक नाटो देशों पर व्यापक सैन्य हमला करने की स्थिति में आ सकते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि आने वाले एक साल में रूसी सेना की संख्या बढ़कर 30 लाख तक पहुंच सकती है। यह विस्तार केवल यूक्रेन के खिलाफ जंग के लिए नहीं, बल्कि पूरे यूरोप में एक बड़े सैन्य अभियान की तैयारी को दर्शाता है। ब्रेउर ने चेतावनी दी कि पुतिन का असली उद्देश्य नाटो को कमजोर कर उसे बिखेरना है।
फिलहाल रूस इतिहास के सबसे बड़े सैन्य भर्ती अभियान को अंजाम दे रहा है। हाल ही में करीब 1.60 लाख युवाओं को जबरन सेना में शामिल किया गया है, जो कि 2011 के बाद की सबसे बड़ी संख्या है। यह कदम केवल यूक्रेन युद्ध में हुए सैनिकों के नुकसान की भरपाई के लिए नहीं, बल्कि भविष्य में संभावित किसी बड़े युद्ध की तैयारी के तौर पर भी देखा जा रहा है। ब्रेउर के अनुसार, इन सभी घटनाक्रमों से यूरोप के सामने एक गंभीर और सीधा खतरा उभर रहा है।
रूस न केवल अपने मानव संसाधनों में वृद्धि कर रहा है, बल्कि सैन्य उपकरणों के उत्पादन की रफ्तार भी तेजी से बढ़ा रहा है। ब्रेउर के अनुसार, हर साल करीब 1,500 टैंकों का निर्माण किया जा रहा है या पुराने टैंकों को स्टोरेज से निकालकर युद्ध के लिए तैयार किया जा रहा है। साथ ही, रूस अपने हथियार भंडारण को भी तेजी से भर रहा है। यह स्पष्ट इशारा करता है कि क्रेमलिन की युद्ध नीति केवल यूक्रेन तक सीमित नहीं रहना चाहती।
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इन खतरों को गंभीरता से लेते हुए यूरोपीय देश भी अपनी सैन्य तैयारियों को मजबूत कर रहे हैं। जर्मनी ने द्वितीय विश्व युद्ध के बाद पहली बार लिथुआनिया में 5,000 सैनिकों की स्थायी तैनाती की घोषणा की है। वहीं, फ्रांस ने अपने नागरिकों के लिए 20 पन्नों की एक मार्गदर्शिका जारी की है, जिसमें युद्ध जैसी स्थिति में जीवित रहने के उपाय बताए गए हैं। इसमें रिजर्व सेना में शामिल होने, आपातकालीन किट तैयार रखने और नागरिक सुरक्षा में सहयोग देने जैसे सुझाव शामिल हैं।
कुछ यूरोपीय देशों ने रूस से संभावित खतरे को देखते हुए संयुक्त सुरक्षा व्यवस्था स्थापित करने का निर्णय लिया है। जिनमें बाल्टिक राष्ट्र लातविया, लिथुआनिया और क्रोएशिया ने अपनी रूसी सीमा पर एक साझा सुरक्षा रेखा बनाने की योजना बनाई है। इस सुरक्षा रेखा में लगभग 600 बंकर, टैंकों को रोकने के लिए खाइयाँ, जंगलों में अवरोध, ‘ड्रैगन टीथ’ अवरोधक और रॉकेट सिस्टम शामिल होंगे। यूरोप के कई देश अब अनिवार्य सैन्य सेवा (conscription) की नीति पर भी विचार कर रहे हैं।
ब्रिटेन में भी इस मुद्दे को लेकर चर्चा तेज हो गई है। विशेषज्ञों का मानना है कि रूस की बढ़ती आक्रामकता यह संकेत देती है कि यदि यूरोप समय रहते तैयार नहीं हुआ, तो 2029 तक हालात तीसरे विश्व युद्ध की ओर बढ़ सकते हैं। पुतिन की रणनीति अब केवल सीमित सैन्य कार्रवाई तक सीमित नहीं दिख रही, बल्कि यह पूरे यूरोप पर प्रभाव जमाने की कोशिश का हिस्सा प्रतीत हो रही है।
इसके अतिरिक्त, पोलैंड और अन्य बाल्टिक देशों ने एंटी-पर्सनल माइंस पर लगी अंतरराष्ट्रीय संधि से खुद को अलग कर लिया है, जिससे वे किसी भी स्थिति में रूस की सेना को रोकने के लिए सभी प्रकार के हथियारों का प्रयोग कर सकें।