मदर टेरेसा (फोटो- सोशल मीडिया)
Mother Teresa Birth Anniversary: दुनिया में कुछ लोग जन्म से ही दूसरों के लिए जीने आते हैं। मदर टेरेसा उन्हीं में से एक थीं। लेकिन उनकी यह राह इतनी आसान नहीं थी। उनका बचपन सामान्य था, मगर पिता की अचानक मौत ने उनकी सोच और जीवन का रास्ता हमेशा के लिए बदल दिया। आइए उनके जन्मदिन के मौके पर आपको उनके बचपन से लेकर संत बनने तक कहानी बताते हैं।
मदर टेरेसा (फोटो- सोशल मीडिया)
मदर टेरेसा का असली नाम एग्नेस गोंझा बोयाजियू था। 26 अगस्त 1910 को उनका जन्म आज के उत्तर मैसेडोनिया के स्कोप्जे शहर में हुआ। उनके पिता एक बिजनेसमैन थे, जिनका परिवार स्थानीय समाज में सम्मानित था। बचपन में एग्नेस बेहद चंचल और पढ़ाई में तेज थीं। हालांकि उस समय भी वो गरीबों की सेवा करने में रूची रखती था। लेकिन तब उन्होंने नहीं सोचा था कि वो आगे चलकर संत बनेगी।
जब वह मात्र आठ साल की थीं, उनके पिता का अचानक निधन हो गया। इस हादसे ने उनके जीवन को गहराई से झकझोर दिया। पिता की गैर-मौजूदगी ने परिवार को आर्थिक और मानसिक दोनों रूप से कमजोर कर दिया। यही वह समय था जब एग्नेस ने समझा कि दुनिया का दुख बहुत गहरा है, और किसी को इन दुखों को कम करना होगा। बड़ी होते-होते उनके मन में मिशनरी बनने की इच्छा प्रबल होती गई। 18 साल की उम्र में उन्होंने सब कुछ पीछे छोड़कर ननों के संगठन “सिस्टर्स ऑफ लोरेटो” से जुड़ने का फैसला किया। यहीं से उन्होंने भारत आने का निश्चय किया। 1929 में वह कोलकाता पहुंचीं और सेंट मैरी स्कूल में बच्चों को पढ़ाना शुरू किया।
मदर टेरेसा की बचपन और युवावस्था की तस्वीर (फोटो- सोशल मीडिया)
एक शिक्षक से लेकर मदर बनने की उनकी यात्रा आसान नहीं थी। उन्होंने जब कोलकाता की झुग्गी बस्तियों में भूख, बीमारी और बेबसी देखी, तो मन विचलित हो उठा। 1946 में उन्हें “कॉल विदिन द कॉल” (Call within the Call) का अनुभव हुआ। उन्हें लगा कि भगवान ने उन्हें गरीबों और बेसहारों की सेवा के लिए भेजा है।
गरीबों की सेवा में समर्पित कर दिया था जीवन (फोटो- सोशल मीडिया)
1948 में उन्होंने लोरेटो कॉन्वेंट छोड़कर साधारण सफेद-नीली किनारी वाली साड़ी पहन ली। इसके साथ ही उन्होंने “मिशनरीज ऑफ चैरिटी” की नींव रखी। यह संगठन अनाथों, बीमारों, बेघर और असहाय लोगों की सेवा में समर्पित रहा। धीरे-धीरे यह संस्था पूरे भारत और फिर दुनिया में फैल गई।
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मदर टेरेसा की निस्वार्थ सेवा ने पूरी दुनिया को प्रभावित किया। उन्हें 1979 में नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इसके अलावा उन्हें भारत रत्न समेत कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय सम्मान मिले। 5 सितंबर 1997 को उनका निधन हो गया, लेकिन उनकी विरासत आज भी करोड़ों लोगों को सेवा और करुणा की राह पर चलने के लिए प्रेरित करती है। 4 सितंबर 2016 को वेटिकन ने उन्हें संत घोषित कर दिया।