एक जमाने तक मॉडर्न था ईरान, फोटो (सो.सोशल माडिया)
1979 की इस्लामिक क्रांति से पहले ईरान आज की तस्वीर से बिल्कुल अलग था। उस समय ईरानी विश्वविद्यालयों में बड़ी संख्या में महिलाएं शिक्षा प्राप्त करती थीं। क्रांति से पहले ईरान ने दुनिया को कई प्रतिभाशाली वैज्ञानिक, कलाकार और लेखक दिए थे। उदाहरण के तौर पर, 1926 में ईरान में जन्मी डॉ. अजर अनदामी एक प्रख्यात वैज्ञानिक थीं, जिन्होंने तेहरान में रहकर हैजा के टीके की खोज में महत्वपूर्ण योगदान दिया। वहीं 1913 में जन्मी डॉ. हुमा शैबानी ईरान की पहली महिला सर्जन बनीं।
लेकिन इस्लामिक क्रांति के बाद स्थिति बदल गई। 1986 में जन्मी डॉ. नीलोफर बयानी, जो एक संरक्षण जीवविज्ञानी, वैज्ञानिक और सामाजिक कार्यकर्ता थीं, को इस्लामिक सरकार ने गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया। ये उदाहरण दिखाते हैं कि कैसे ईरान में महिलाओं की भूमिका और अधिकार क्रांति के बाद बदल गए।
1979 के बाद ईरान में महिलाओं की स्थिति एकदम से बदल गई। अयातुल्लाह खोमैनी के नेतृत्व में सख्त इस्लामिक कानून लागू किए गए, जिसमें महिलाओं की भूमिका को घर तक सीमित कर दिया गया। उनके अनुसार, औरतों का मुख्य कार्य पति की सेवा करना, बच्चे पैदा करना और परिवार संभालना था।
शिक्षा के क्षेत्र में भी बड़े बदलाव हुए। अंग्रेजी और फ्रेंच जैसी विदेशी भाषाओं को “गैर-इस्लामी” मानते हुए स्कूलों में पढ़ाने पर रोक लगा दी गई। मिश्रित स्कूलों (कोएड) को बंद कर दिया गया। विदेशी संगीत, फिल्में, कपड़े और किताबों पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया। लड़कियों की शादी की उम्र 18 साल से घटाकर महज 13 साल कर दी गई। महिलाओं के लिए कड़े नियम बनाए गए, जिनका उल्लंघन करने पर उन्हें जेल या कोड़ों की सजा दी जाने लगी। इन सख्त कानूनों ने ईरानी महिलाओं की आजादी को गंभीर रूप से प्रभावित किया।
क्रांति से पहले विश्वविद्यालय के लैब में लड़कियां
मोहम्मद रजा पहलवी, जिन्हें रजा शाह के नाम से भी जाना जाता है वो ईरान के अंतिम शाह थे। जिन्होंने 1941 से 1979 तक शासन किया। 1979 में अयातुल्लाह खोमैनी के नेतृत्व में हुई इस्लामिक क्रांति के कारण उन्हें देश छोड़कर भागना पड़ा।
रजा पहलवी का ईरान आज के ईरान से बिल्कुल अलग था। उन्होंने ईरान को आधुनिक बनाने में अहम भूमिका निभाई, जिस तरह तुर्की में कमाल अतातुर्क ने की थी। उनका मानना था कि पुराने मूल्यों के साथ आधुनिक दुनिया में प्रगति नहीं की जा सकती। उनके शासनकाल में प्रशासन पर धर्म का कोई प्रभाव नहीं था। धार्मिक मामले लोगों के निजी विश्वास तक सीमित थे, शासन उनसे प्रभावित नहीं होता था।
रजा पहलवी ने ईरान में अंग्रेजी और फ्रेंच माध्यम के स्कूलों की स्थापना को बढ़ावा दिया। स्कूलों को सह-शिक्षा (को-एड) के रूप में चलाया गया और लड़कियों की शिक्षा पर विशेष ध्यान दिया गया।
1967 में ईरान ने महिलाओं के अधिकारों को मजबूत करने के लिए एक नया वूमेन पर्सनल लॉ पेश किया। इस कानून के तहत लैंगिक समानता को बढ़ावा देने वाले कई प्रगतिशील प्रावधान लागू किए गए, जैसे:
इस्लामी क्रांति से पहले ईरान की महिलाओं की जिंदगी
ईरान लंबे समय तक आधुनिकता और विकास के पथ पर आगे बढ़ता रहा, लेकिन एक दिन अचानक उसने पीछे मुड़कर देखा और पुराने मूल्यों की ओर लौटने लगा। अयातुल्लाह खुमैनी के नेतृत्व में हुई इस्लामिक क्रांति ने देश को झटके से अतीत में धकेल दिया, जैसे रातों-रात ईरान 200 साल पीछे चला गया हो। इस क्रांति के बाद शाह मोहम्मद रजा पहलवी को सत्ता से हटा दिया गया और उन्हें देश छोड़कर भागना पड़ा।
इस्लामिक क्रांति के आने के बाद लड़कियों की शादी की उम्र 18 से घटाकर 13 साल कर दी गई। फिर 1982 में इसे और कम करके महज 9 साल कर दिया गया, जिससे बाल विवाह को कानूनी मान्यता मिल गई।
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खुमैनी ने मेल गार्जियनशिप कानून लागू किया, जिसने महिलाओं से अधिकार छीन लिए। इस नए मेल गार्जियनशिप कानून के मुताबिक हर लड़की और महिला का एक पुरुष अभिभावक होना अनिवार्य था, जिसके मर्जी के बगैर वो न कॉलेज में एडमिशन ले सकती थीं, न ही विवाह कर सकती थीं, न ही यात्रा, न बैंक अकाउंट खुलवा सकती थीं और न ही अबॉर्शन करवा सकती थीं।
क्रांति के बाद विरोध प्रदर्शन करने के लिए निकलीं महिलाएं
इसके साथ ही महिलाओं को हिजाब अनिवार्य कर दिया गया और किसी भी तरह के सौंदर्य प्रसाधन के इस्तेमाल पर पूरी तरह प्रतिबंध लग गया। इन कानूनों ने ईरानी महिलाओं की व्यक्तिगत आजादी को गंभीर रूप से सीमित कर दिया और उन्हें पुरुषों की अनुमति पर निर्भर बना दिया।