जापान और फिजी में 5.1 तीव्रता के भूकंप के झटके महसूस किए (सोर्स- सोशल मीडिया)
Japan Fiji Earthquake Light: जापान और फिजी जैसे भूकंप-प्रवण क्षेत्रों में एक बार फिर धरती कांप उठी है। जहां तीन दिन पहले जापान 7.5 तीव्रता के शक्तिशाली भूकंप से जूझ रहा था, वहीं शुक्रवार को इन दोनों क्षेत्रों में 5.1 तीव्रता के झटके महसूस किए गए। नेशनल सेंटर फॉर सिस्मोलॉजी (NCS) के अनुसार, टोक्यो के निकट और फिजी में ये भूकंप आए। इन हालिया घटनाओं के साथ ही, उत्तरी जापान में भूकंप से पहले आसमान में एक रहस्यमय चमकीली नीली रोशनी दिखाई दी, जिसने वैज्ञानिक समुदाय में दिलचस्पी बढ़ा दी है।
शुक्रवार, 12 दिसंबर की सुबह जापान में एक बार फिर भूकंप के झटके महसूस किए गए। नेशनल सेंटर फॉर सिस्मोलॉजी के अनुसार, यह भूकंप रिक्टर पैमाने पर 5.1 तीव्रता का था। भूकंप भारतीय समयानुसार सुबह 3:39 बजे आया।
एजेंसी ने बताया कि भूकंप का केंद्र जापान की राजधानी टोक्यो से 680 किलोमीटर उत्तर-उत्तरपूर्व (NNE) में था और यह सतह से 62 किलोमीटर की गहराई में उत्पन्न हुआ। यह हालिया झटका उस शक्तिशाली 7.5 तीव्रता वाले भूकंप के बाद आया है जिसने जापान में आम जन-जीवन को बुरी तरह प्रभावित किया था।
हाल ही में, उत्तरी जापान के आओमोरी इलाके में एक दिलचस्प प्राकृतिक घटना देखने को मिली। 7.6 तीव्रता का शक्तिशाली भूकंप आने से ठीक पहले आसमान में एक चमकीली नीली रौशनी दिखाई दी। कई लोगों ने इस दुर्लभ दृश्य को अपने मोबाइल फोन कैमरों में कैद किया। इस घटना को भूकंप रोशनी (Earthquake Light – EQL) नामक एक दुर्लभ प्राकृतिक घटना माना जाता है।
वैज्ञानिकों का मानना है कि जब पृथ्वी की परत पर भूकंपीय तनाव (Seismic Stress) बढ़ता है, तो इससे विद्युत आवेश (Electric Charge) उत्पन्न होता है। यह आवेश फिर जमीन के ऊपर की हवा को आयनित (Ionize) कर देता है, जिसकी वजह से आसमान में यह रहस्यमय रोशनी दिखाई देती है।
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जापान के साथ ही, प्रशांत महासागर में स्थित द्वीपीय देश फिजी को भी शुक्रवार की सुबह भूकंप ने दहलाया। नेशनल सेंटर फॉर सिस्मोलॉजी के अनुसार, फिजी के निकट भी रिक्टर पैमाने पर 5.1 तीव्रता वाले भूकंप के झटके महसूस किए गए। यह भूकंप भी भारतीय समयानुसार लगभग उसी समय, 3:38 बजे, आया।
एजेंसी ने जानकारी दी कि इसका केंद्र फिजी की राजधानी सुवा से 356 किलोमीटर पूर्व (E) में था। हालांकि, यह भूकंप सतह से बहुत अधिक गहराई में, यानी 553 किलोमीटर की गहराई में आया, जो अक्सर सतह पर कम नुकसान पहुंचाता है।