सांकेतिक तस्वीर
Bangladesh ISKCON: बांग्लादेश का राजनीतिक माहौल इन दिनों अत्यधिक अस्थिर और तनावपूर्ण बनता जा रहा है, खासकर फरवरी 2026 में होने वाले संसदीय चुनावों से पहले। कट्टरपंथी समूहों ने अपनी गतिविधियां तेज कर दी हैं, और अब उनका निशाना सिर्फ भारत नहीं, बल्कि इस्कॉन (ISKCON) भी बन चुका है। जमात-ए-इस्लामी, हिज़्बुत तहरीर और हिफाजत-ए-इस्लाम से जुड़े छात्र संगठनों ने पूरे देश में विरोध रैलियां शुरू कर दी हैं। ये संगठन इस्कॉन पर भारतीय एजेंट होने का आरोप लगाते हुए इसके खिलाफ प्रतिबंध की मांग कर रहे हैं।
राजधानी ढाका से लेकर चटगांव तक, इन संगठनों के कार्यकर्ता मस्जिदों के बाहर विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं और जनता से भारतीय प्रभाव को खत्म करने की अपील कर रहे हैं। इन अभियानों का स्वरूप न केवल धार्मिक, बल्कि राजनीतिक भी है, क्योंकि बांग्लादेश में अवामी लीग पर लगे प्रतिबंध के बाद सत्ता का समीकरण पूरी तरह बदल चुका है।
हिफाजत-ए-इस्लाम बांग्लादेश के नेताओं ने चटगांव में आयोजित एक बड़े सम्मेलन में इस्कॉन को एक चरमपंथी हिंदुत्व संगठन करार दिया। रैली की अध्यक्षता संगठन के केंद्रीय नायब-ए-अमीर मौलाना अली उस्मान ने की, जिन्होंने इस्कॉन पर समाज में अशांति फैलाने का आरोप लगाया।
24 Oct, SUST — after Jumma a march against ISKCON shouted “catch one ISKCON, slaughter” and “we’ll slaughter 100.” Such calls are dangerous; resolve grievances legally. Gazipur, Bangladesh. pic.twitter.com/a7z4TG6yCw — Bangladesh Agniveer 🇧🇩 (@BDAgniveer) October 25, 2025
उन्होंने कहा कि जैसे अवामी लीग पर राजनीतिक अपराधों के कारण कार्रवाई की गई, वैसे ही इस्कॉन पर भी प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए। उनका कहना था कि बांग्लादेश में शांति और सांप्रदायिक सद्भाव तभी संभव है जब इस्कॉन जैसे संगठनों को कानून के तहत लाया जाए।
इस्कॉन, जो भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति पर आधारित एक अंतरराष्ट्रीय धार्मिक संस्था है, बांग्लादेश में लंबे समय से सामाजिक और सांस्कृतिक गतिविधियों में सक्रिय रही है। अब इसे भारतीय सांस्कृतिक प्रभाव फैलाने वाला संगठन मानते हुए निशाना बनाया जा रहा है।
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बांग्लादेश में पिछले एक साल में हिंदू समुदाय के खिलाफ हिंसा की घटनाएं बढ़ी हैं। धार्मिक उन्माद और कट्टरपंथी समूहों के हमलों ने हिंदू मंदिरों, घरों और व्यापारिक प्रतिष्ठानों को निशाना बनाया। इन हमलों में कई हिंदू नागरिकों को शारीरिक और मानसिक रूप से चोटें आईं। सरकार की कार्रवाई की कमी और सांप्रदायिक तनाव ने स्थिति को और बिगाड़ा, जिससे हिंदू समुदाय असुरक्षित महसूस करने लगा। ये घटनाएं बांग्लादेश में धार्मिक सद्भाव के लिए एक गंभीर चुनौती बन गई हैं।