ईरान में निशाने पर 80 हजार मस्जिदें, (डिजाइन फोटो)
Masoud Pezeshkian Statement: ईरान में राजनीतिक तापमान एक बार फिर बढ़ गया है। राष्ट्रपति मसूद पेजेशकियन ने देश की 80 हजार मस्जिदों और मौलवियों की जिम्मेदारी पर गंभीर सवाल उठाए हैं। मुस्लिम बहुल और कट्टर इस्लामिक व्यवस्था वाले ईरान में मस्जिदों की भूमिका बेहद अहम मानी जाती है। यही कारण है कि राष्ट्रपति के इस बयान ने सियासत में हलचल पैदा कर दी है।
पेजेशकियन ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि अगर सरकार किसी कारणवश कमजोर हो जाती है या मुश्किल हालात में होती है, तो मस्जिदों और वहां बैठे मौलवियों को आगे आकर जनता की मदद करनी चाहिए। उन्होंने सवाल उठाया कि अगर मान लें कि सरकार कुछ नहीं कर रही, तो मस्जिदों में बैठे मौलवी क्या कर रहे हैं? मस्जिदें लोगों की भलाई के लिए बनाई जाती हैं, सिर्फ फरमान जारी करने के लिए नहीं।
राष्ट्रपति ने कहा कि ईरान में लगभग 80 हजार मस्जिदें हैं, और अगर हर मस्जिद सिर्फ एक परिवार को भी गोद ले ले, तो देश की सामाजिक और आर्थिक स्थिति में भारी बदलाव देखे जा सकते हैं। उनके मुताबिक, मस्जिदों का नेटवर्क इतना मजबूत है कि वह जमीनी स्तर पर बड़ा परिवर्तन ला सकता है।
पेजेशकियन ने यह भी बताया कि उनकी सरकार बनने के बाद हालात और भी जटिल हो गए। उनके राष्ट्रपति बनते ही हमास के शीर्ष कमांडर याह्या सिनवार की मौत और उसके बाद ईरान-इजरायल तनाव ने माहौल और खराब कर दिया। अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों ने देश की अर्थव्यवस्था को और कमजोर किया है। ऐसे में सरकार कई फैसले तुरंत नहीं ले पा रही, लेकिन देश की सामाजिक संस्थाओं को अपनी भूमिका निभानी चाहिए।
ईरान में राजनीति दो धड़ों में बंटी हुई है कट्टरपंथी और सुधारवादी। मसूद पेजेशकियन एक सुधारवादी नेता माने जाते हैं और लंबे समय से कट्टरपंथियों के निशाने पर हैं। इजरायल संघर्ष के बाद उनके खिलाफ हमले और तेज हो गए, यहां तक कि कई कट्टरपंथी नेताओं ने उनसे पद छोड़ने तक की मांग कर डाली।
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मौलवी, जो ईरान की धार्मिक व्यवस्था का अहम हिस्सा हैं, अधिकतर कट्टरपंथी खेमे से जुड़े माने जाते हैं। ऐसे में 80 हजार मस्जिदों पर पेजेशकियन के सीधे हमले को कट्टरपंथियों के प्रभुत्व को चुनौती के रूप में देखा जा रहा है। यह बयान ऐसे समय में आया है जब पेजेशकियन अपने ऊपर बढ़ते दबाव को कम करना चाहते हैं और सुधारवादी एजेंडा मजबूत करना चाहते हैं।