भारत और मालदीव के बीच रिश्ते (सोर्स- सोशल मीडिया)
India Maldives Diplomatic Ties: भारत और मालदीव के बीच के संबंध केवल कूटनीतिक सीमाओं तक ही सीमित नहीं हैं, बल्कि इनकी जड़ें इतिहास, भूगोल और संस्कृति में बहुत गहरी हैं। हाल के समय में मोहम्मद मुइज्जू के शासन के दौरान रिश्तों में कुछ तल्खी जरूर आई, लेकिन आर्थिक और सामाजिक जरूरतें दोनों देशों को करीब बनाए रखती हैं।
हिंद महासागर में स्थित मालदीव के लिए भारत हमेशा से एक भरोसेमंद पड़ोसी और संकट के समय सबसे पहले मदद पहुंचाने वाला ‘फर्स्ट रिस्पॉन्डर’ रहा है। व्यापार से लेकर पर्यटन तक, दोनों देशों का भविष्य एक-दूसरे के सहयोग पर काफी हद तक टिका हुआ है।
हिंद महासागर में मालदीव की रणनीतिक स्थिति उसे भारत का एक स्वाभाविक और अनिवार्य साझेदार बनाती है। लक्षद्वीप से मात्र 300 किलोमीटर की दूरी पर स्थित यह द्वीपीय देश समुद्री व्यापार मार्गों की सुरक्षा और क्षेत्रीय स्थिरता के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। भारत ने हमेशा मालदीव की समुद्री सुरक्षा और तटरक्षक क्षमता बढ़ाने में सक्रिय सहयोग दिया है। चाहे 1988 का तख्तापलट प्रयास हो या सुनामी जैसी प्राकृतिक आपदाएं, भारत ने बिना किसी देरी के मालदीव की मदद की है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि दोनों देशों का सुरक्षा ढांचा आपस में जुड़ा हुआ है।
भारत और मालदीव के बीच के सामाजिक संबंध अत्यंत पुराने हैं। मालदीव की भाषा ‘धिवेही’ पर संस्कृत और भारतीय भाषाओं का गहरा प्रभाव साफ झलकता है। इसके साथ ही वहां के जनजीवन में बॉलीवुड फिल्मों और भारतीय संगीत की लोकप्रियता जगजाहिर है। पर्यटन के मोर्चे पर भी भारत मालदीव के लिए रीढ़ की हड्डी के समान है।
मालदीव की अर्थव्यवस्था का एक बड़ा हिस्सा पर्यटन पर निर्भर है और भारतीय पर्यटकों की भारी संख्या वहां की GDP को मजबूती प्रदान करती है। हालांकि पिछले कुछ समय के विवादों का असर पर्यटन पर पड़ा है, लेकिन UPI और रुपे कार्ड जैसी आधुनिक सुविधाओं ने इस रिश्ते को नई दिशा दी है।
व्यापार के क्षेत्र में भारत मालदीव के सबसे बड़े सहयोगियों में से एक बनकर उभरा है। दोनों देशों के बीच व्यापार का सफर 1981 में शुरू हुआ था, जो आज निरंतर ऊंचाइयों को छू रहा है। आंकड़ों के अनुसार, साल 2022 में द्विपक्षीय व्यापार 500 मिलियन डॉलर था, जो वित्तीय वर्ष 2024-25 में बढ़कर 680 मिलियन डॉलर तक पहुंच गया है।
भारत मालदीव को जरूरी खाद्यान्न, दवाइयां, सीमेंट और इंजीनियरिंग सामान निर्यात करता है। वर्तमान में दोनों देश एक मुक्त व्यापार समझौते पर भी चर्चा कर रहे हैं, जिससे भविष्य में व्यापारिक रिश्ते और अधिक प्रगाढ़ होने की संभावना है।
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मुइज्जू सरकार के दौरान चीन के बढ़ते प्रभाव ने निश्चित रूप से कुछ चुनौतियां पेश की हैं, लेकिन भारत और मालदीव के जमीनी संबंध इतने गहरे हैं कि उन्हें पूरी तरह नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। मालदीव के स्वास्थ्य, शिक्षा और निर्माण क्षेत्र में हजारों भारतीय प्रवासी अपनी सेवाएं दे रहे हैं।
भारत की ‘नेबरहुड फर्स्ट’ नीति के तहत मालदीव हमेशा प्राथमिकता पर रहेगा। आने वाले समय में दोनों देशों को आपसी मतभेदों को भुलाकर साझा विकास और सुरक्षा के मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करना होगा ताकि हिंद महासागर क्षेत्र में शांति और समृद्धि बनी रहे।