मैक्रों और डोनाल्ड ट्रंप, फोटो (सो.सोशल मीडिया)
Emmanuel Macron Foreign Policy: यूरोप और अमेरिका के बीच लंबे समय से चले आ रहे पारंपरिक गठजोड़ में बदलाव के संकेत दिखने लगे हैं। खासकर फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों की हालिया कार्रवाइयों ने यह सवाल गहरा कर दिया है कि क्या पेरिस अब वाशिंगटन से सचमुच दूरी बना रहा है? कई कूटनीतिक घटनाओं और बयानों ने इस चर्चा को और गर्म कर दिया है।
मैक्रों का तीन दिन का चीन दौरा यूरोप की भविष्य की विदेश नीति की दिशा को काफी हद तक स्पष्ट करता है। इस यात्रा के दौरान उन्होंने ट्रेड, निवेश, एविएशन और ऊर्जा क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने पर जोर दिया।
हालांकि सबसे महत्वपूर्ण पहलू यह था कि मैक्रों रूस पर दबाव बढ़ाने के लिए चीन को साथ लाना चाहते हैं, ताकि यूक्रेन में संभावित सीजफायर का रास्ता खुल सके। इस कदम ने यह स्पष्ट कर दिया कि फ्रांस अब यूक्रेन मुद्दे पर अमेरिका की नीति को अक्षरशः नहीं अपना रहा। मैक्रों खुले तौर पर कह चुके हैं कि यूरोप को अमेरिका पर निर्भर रहने के बजाय अपनी स्वतंत्र कूटनीतिक पहचान विकसित करनी चाहिए।
जर्मन अखबार डेर श्पीगल की लीक हुई रिपोर्ट ने यूरोपीय राजनीति में हलचल मचा दी। रिपोर्ट के अनुसार, एक गोपनीय बातचीत में मैक्रों ने दावा किया कि अमेरिका भविष्य में यूक्रेन को बिना ठोस सुरक्षा गारंटी के भूमि छोड़ने के लिए दबाव डाल सकता है।
उन्होंने यह भी कहा कि ट्रंप प्रशासन के प्रभावशाली चेहरे जैसे स्टीव विटकॉफ और जेरेड कुशनर पर भरोसा नहीं किया जा सकता। मैक्रों के इस बयान को अमेरिका के प्रति बढ़ते अविश्वास के रूप में देखा गया।
अमेरिकी राजदूत चार्ल्स कुशनर द्वारा फ्रांस में यहूदी-विरोध (एंटीसेमिटिज़्म) को खतरनाक स्तर पर बताना और मैक्रों सरकार को कठघरे में खड़ा करना दोनों देशों के रिश्ते में अप्रत्याशित तनाव ले आया।
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उन्होंने वॉल स्ट्रीट जर्नल में खुले पत्र के जरिए फ्रांस पर कार्रवाई ना करने का आरोप लगाया और मैक्रों से इजरायल की आलोचना कम करने की अपील की। फ्रांस ने इसे अपनी स्वायत्तता में हस्तक्षेप माना और अमेरिकी राजदूत को तलब करने का फैसला किया। यह विवाद स्पष्ट रूप से दिखाता है कि दोनों देशों के बीच विश्वास घट रहा है।
मैक्रों सरकार ने हाल ही में फिलिस्तीन को स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में मान्यता देने की प्रक्रिया आगे बढ़ाई है। यह कदम मध्य पूर्व में अमेरिकी नीति से बिल्कुल विपरीत दिशा में जाता है, जहां वाशिंगटन खुलकर इजरायल के पक्ष में खड़ा है। फ्रांस ने कहा है कि फिलिस्तीन की मान्यता अब सिर्फ “समय का सवाल” है। इससे साफ संकेत मिलता है कि पेरिस अब अपनी मिडिल ईस्ट पॉलिसी में अमेरिका के इशारों पर चलने को तैयार नहीं है।