रूस-यूक्रेन युद्ध और अमेरिका में ट्रंप की वापसी के बाद यूरोप बढ़ा रहा सैन्य शक्ति (सोर्स-सोशल मीडिया)
European Conscription Return 2025: रूस के आक्रमण और अमेरिका की बदलती विदेश नीति ने पूरे यूरोप को अपनी सुरक्षा के प्रति सतर्क कर दिया है। अब तक अमेरिका और नाटो के भरोसे रहने वाला यूरोप अब अपनी खुद की विशाल सेना खड़ी करने की ओर बढ़ रहा है।
डोनाल्ड ट्रंप की वापसी के बाद यूरोपीय देशों को अहसास हो गया है कि उन्हें अपनी रक्षा के लिए खुद ही निवेश करना होगा। जर्मनी से लेकर पोलैंड तक, हर देश अब अपनी सेना का आकार दोगुना करने और युवाओं को अनिवार्य रूप से भर्ती करने की योजना पर काम कर रहा है।
दशकों तक शांतिपूर्ण रहने वाला जर्मनी अब अपनी सेना का सबसे बड़ा कायाकल्प कर रहा है। नवंबर 2025 में पारित नई योजना के तहत, जर्मनी अपने सक्रिय सैनिकों की संख्या 1.8 लाख से बढ़ाकर 2.6 लाख करना चाहता है। इसके साथ ही रिजर्व सैनिकों की संख्या को भी 2 लाख तक पहुंचाया जाएगा।
2026 से यहां 18 वर्ष के युवाओं के लिए पंजीकरण अनिवार्य होगा और यदि स्वैच्छिक भर्ती कम रही, तो ‘अनिवार्य सैन्य सेवा’ लागू करने का विकल्प भी रखा गया है। जर्मनी का रक्षा बजट 2029 तक तीन गुना बढ़कर 152 अरब यूरो होने का अनुमान है।
फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने ‘स्वैच्छिक युवा सैन्य सेवा’ की घोषणा की है, जो 2026 के मध्य से शुरू होगी। इसका लक्ष्य 2035 तक सालाना 50,000 युवाओं को सैन्य प्रशिक्षण देना है।
वहीं, ब्रिटेन भी 2029 तक अपनी सेना में पूर्णकालिक सैनिकों की संख्या बढ़ाने पर ध्यान दे रहा है। ब्रिटेन फिलहाल आधुनिकीकरण और मिसाइल उत्पादन क्षमताओं को बढ़ाने पर निवेश कर रहा है ताकि भविष्य की चुनौतियों का सामना किया जा सके।
डेनमार्क ने 2025 से महिलाओं के लिए भी सैन्य पंजीकरण अनिवार्य कर दिया है और सेवा की अवधि 4 महीने से बढ़ाकर 11 महीने कर दी गई है। फिनलैंड भी अपनी सैन्य शक्ति 10 लाख तक ले जाने के लिए आयु सीमा 65 वर्ष करने पर विचार कर रहा है।
स्वीडन, जिसने 2017 में ही अनिवार्य भर्ती शुरू कर दी थी, अब पेशेवर अधिकारियों की कमी को दूर करने के लिए विशेष भत्ते और सुविधाएं दे रहा है।
पोलैंड वर्तमान में नाटो की सबसे तेजी से बढ़ती सैन्य शक्ति है। उसने 2026 तक 4 लाख नागरिकों को बुनियादी सुरक्षा और साइबर युद्ध का प्रशिक्षण देने का लक्ष्य रखा है। रोमानिया ने भी वेतन में भारी बढ़ोतरी के साथ पायलटों और मिसाइल ऑपरेटरों की भर्ती तेज कर दी है।
इन पूर्वी यूरोपीय देशों का मानना है कि रूस का अगला निशाना वे हो सकते हैं, इसलिए वे अपनी रक्षा क्षमताओं को ‘युद्ध स्तर’ पर विकसित कर रहे हैं।
यह भी पढ़ें: UP में बड़े किसान आंदोलन की तैयारी…राकेश टिकैत ने सरकार को दिया अल्टीमेटम, जानिए क्या हैं मांगें?
इटली के रक्षा मंत्रालय ने ‘हाइब्रिड युद्ध’ (Cyber and Information warfare) के खतरों से निपटने के लिए एक विशेष नागरिक-सैन्य इकाई बनाने की रिपोर्ट पेश की है।
इसका उद्देश्य न केवल बॉर्डर की रक्षा करना है, बल्कि देश के डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर को चीन और रूस के संभावित साइबर हमलों से बचाना भी है। यूरोप के अन्य देश जैसे नीदरलैंड और बेल्जियम भी अपने आरक्षित सैनिकों की क्षमता को तीन गुना तक बढ़ाने की दिशा में काम कर रहे हैं।