याकूब शेख, फोटो (सो. सोशल मीडिया)
Pakistan News In Hindi: पाकिस्तान में हाल ही में गठित नई राजनीतिक पार्टी सेंट्रल मुस्लिम लीग (CML) इन दिनों व्यापक चर्चा में है। पार्टी के नेता कारी मुहम्मद याकूब शेख ने एक सार्वजनिक भाषण में न केवल पाकिस्तानी सेना का खुलकर समर्थन किया, बल्कि अफगानिस्तान की तालिबान सरकार को भी कड़ा संदेश दिया।
याकूब शेख ने कहा कि अफगान तालिबान को यह स्पष्ट रूप से घोषित करना चाहिए कि पाकिस्तान की ओर से एक भी गोली नहीं चलाई जाएगी। उन्होंने यह भी जोड़ा कि देश के उलेमा और मशायख पाकिस्तान की रक्षा के लिए पूरी मजबूती से सेना के साथ खड़े रहेंगे।
याकूब शेख का नाम इससे पहले भी कई बार विवादों में आ चुका है। वर्ष 2012 में अमेरिका ने उसे लश्कर-ए-तैयबा और जमात-उद-दावा से जुड़ी गतिविधियों के चलते अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंध सूची में शामिल किया था।
रिपोर्ट के अनुसार, याकूब शेख ने खुद को एक राजनीतिक चेहरा देने के उद्देश्य से सेंट्रल मुस्लिम लीग का गठन किया है। उनके हालिया बयानों के बाद यह बहस तेज हो गई है कि क्या प्रतिबंधित आतंकी संगठन अब राजनीति के रास्ते दोबारा सक्रिय होने की कोशिश कर रहे हैं।
लश्कर-ए-तैयबा का नाम अफगानिस्तान में भी लंबे समय से सामने आता रहा है। पिछले करीब 20 वर्षों से इस संगठन के लड़ाके अफगानिस्तान के पूर्वी इलाकों, खासकर कुनार और नूरिस्तान प्रांतों में सक्रिय बताए जाते हैं।
कुनार के रहने वाले और तालिबान के साथ लड़ चुके पूर्व उग्रवादी मोहम्मद यासीन के मुताबिक, लश्कर-ए-तैयबा के लड़ाके अलग-अलग नामों से जाने जाते थे और उनके कुछ कमांडर तालिबान के साथ मिलकर काम करते थे। जैश अल-हदा और जैश अल-सलाफिया जैसे गुट उनके प्रतिनिधि माने जाते थे हालांकि इनकी संख्या सीमित बताई जाती है।
विशेषज्ञों का मानना है कि याकूब शेख जैसे जिहादी विचारधारा से जुड़े लोग पाकिस्तान-अफगानिस्तान तनाव के बीच पाकिस्तानी सेना का समर्थन तो कर सकते हैं लेकिन अफगानिस्तान के अंदर उनकी पकड़ बहुत मजबूत नहीं है। अफगान सरकार के एक पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा अधिकारी के अनुसार, लश्कर-ए-तैयबा के कई सदस्यों को गिरफ्तार किया गया था। उन्होंने तालिबान कमांडरों के साथ मिलकर अफगान सरकार और विदेशी सेनाओं के खिलाफ लड़ाई लड़ी लेकिन उनकी संख्या और प्रभाव सीमित रहा।
लश्कर-ए-तैयबा की स्थापना 1990 में हुई थी और इसका मुख्य उद्देश्य जम्मू-कश्मीर में भारतीय शासन को चुनौती देना बताया जाता है। यह संगठन अमेरिका, ब्रिटेन, संयुक्त राष्ट्र समेत कई देशों द्वारा आतंकी घोषित है। वर्ष 2000 में लाल किले पर हमला और 2008 के मुंबई आतंकी हमले में इसके सदस्यों की भूमिका सामने आ चुकी है।
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इसके अलावा हिज्ब-उल-मुजाहिदीन, जैश-ए-मोहम्मद, अल-बद्र, हरकत-उल-मुजाहिदीन और अंसार गजवत अल-हिंद जैसे कई आतंकी संगठनों के भी अफगानिस्तान से पुराने संबंध रहे हैं। जैश-ए-मोहम्मद 2001 के जम्मू-कश्मीर विधानसभा हमले और 2019 के पुलवामा आतंकी हमले के लिए जाना जाता है, जबकि अंसार गजवत अल-हिंद को कश्मीर में अल-कायदा से जुड़ा संगठन माना जाता है। ऐसे में सेंट्रल मुस्लिम लीग की राजनीतिक मौजूदगी को लेकर क्षेत्रीय सुरक्षा पर नई चिंताएं उभर रही हैं।