15 वें ब्रिक्स समिट के दौरान पीएम मोदी (फोटो- सोशल मीडिया)
ब्राजील के रियो डी जेनेरियो में रविवार से शुरू हो रहे BRICS शिखर सम्मेलन में इस बार बड़ा बदलाव देखने को मिल रहा है। चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग पहली बार इस मंच से दूर रहेंगे और रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन भी सम्मेलन में वर्चुअली ही जुड़ेंगे। इन दोनों शक्तिशाली नेताओं की अनुपस्थिति ने भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए एक बड़ा कूटनीतिक अवसर तैयार कर दिया है, जहां वे इस बहुपक्षीय मंच पर प्रमुख भूमिका निभा सकते हैं।
जानकारों के अनुसार, शी जिनपिंग की जगह इस बार चीन के प्रधानमंत्री ली कियांग प्रतिनिधित्व करेंगे। ब्रिक्स की बढ़ती भूमिका के बावजूद यह पहली बार है जब शी इस मंच से नदारद रहेंगे। वहीं, पुतिन की गैरहाजिरी का कारण अंतरराष्ट्रीय अदालत (ICC) के आदेश हैं, जिसके चलते ब्राजील उन्हें गिरफ्तार करने को बाध्य होता। ऐसे में मोदी की उपस्थिति ब्रिक्स की चर्चा का केंद्र बन गई है।
भारत को मिलेगा कूटनीतिक बढ़त
शी और पुतिन जैसे बड़े नेताओं की अनुपस्थिति में मोदी के पास ब्रिक्स सदस्य देशों के साथ द्विपक्षीय संबंध मजबूत करने का अवसर है। ब्राजील के राष्ट्रपति लूला डा सिल्वा के साथ उनकी स्टेट विजिट तय है, जो 8–9 जुलाई को ब्रासीलिया में होगी। भारत इस मंच पर वैश्विक शासन और डॉलर निर्भरता जैसे अहम मुद्दों पर अपने विचार स्पष्ट रूप से रख सकेगा। BRICS में अब 10 सदस्य देश हो चुके हैं और यह समूह G7 का विकल्प बनने की दिशा में तेजी से बढ़ रहा है।
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विरोधाभासों से जूझ रहा है BRICS
हालांकि BRICS का विस्तार हुआ है, लेकिन इसमें शामिल नए देशों की राजनीतिक विचारधाराएं अलग-अलग हैं। ईरान, सऊदी अरब और यूएई जैसे देश जहां पश्चिम-विरोधी रुख रखते हैं, वहीं ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका जैसे लोकतांत्रिक देश इससे असहज महसूस करते हैं। भारत की यूएनएससी स्थायी सदस्यता को लेकर चीन का विरोध और ग्रीन पॉलिसी पर मतभेद भी संगठन की एकजुटता पर सवाल खड़े करते हैं।