बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना व मोहम्मद यूनुस (सोर्स - सोशल मीडिया)
ढाका: बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना पर दबाव बढ़ाने के लिए कार्यवाहक प्रधानमंत्री मोहम्मद यूनुस ने एक नया कदम उठाया है। उन्होंने पिछले चुनावों की निष्पक्षता और पारदर्शिता की जांच के लिए एक समिति गठित कर दी है। यह समिति बांग्लादेश में लोकतंत्र की स्थिति का विश्लेषण करने के लिए काम शुरू कर चुकी है। विपक्ष लंबे समय से आरोप लगाता रहा है कि शेख हसीना ने गैर-कानूनी तरीकों से चुनाव जीता था। अब यूनुस इस मामले की जांच करा रहे हैं।
बांग्लादेश में शेख हसीना के कार्यकाल के दौरान हुए तीन आम चुनावों (2014, 2018 और 2024) की निष्पक्षता की जांच के लिए एक समिति का गठन किया गया है। ये चुनाव लंबे समय से विवादों में घिरे रहे हैं। विपक्षी दलों का कहना है कि सत्तारूढ़ अवामी लीग ने इन चुनावों को प्रभावित करने के लिए प्रशासन, सुरक्षा एजेंसियों और चुनाव आयोग का दुरुपयोग किया।
समीक्षा समिति की प्रथम बैठक में शमीम हसनैन शांत भाव से सभी की बातें सुन रहे थे। उनके सामने कागजातों का ढेर लगा हुआ था। गवाहों के बयान, मतदान केंद्रों के सीसीटीवी रिकॉर्डिंग, गैर-सरकारी संगठनों की रिपोर्ट्स और अंतरराष्ट्रीय पर्यवेक्षकों के दस्तावेजों को भी बारीकी से जाँचा जा रहा था। मुख्य सवाल यह था कि क्या वास्तव में बांग्लादेश के पिछले चुनावों में धांधली की गई थी।
समिति में विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञ शामिल थे जिनमें एक पत्रकार, एक पूर्व चुनाव आयुक्त, एक मानवाधिकार कार्यकर्ता और एक विश्वविद्यालय के प्रोफेसर। सभी का उद्देश्य एक ही तथ्यों का पता लगाना और भविष्य के चुनावी प्रक्रिया को पारदर्शी बनाने के लिए सुझाव देना था।
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ढाका के एक पुराने इलाके की एक बुजुर्ग महिला ने प्रधानमंत्री शेख हसीना के विरोध में अपना अनुभव साझा किया। उन्होंने बताया, “2018 के चुनाव में मेरे बेटे को वोट डालने नहीं दिया गया। पुलिस वालों ने उससे कहा ‘तुम्हारा वोट तो सुबह हो चुका है।’ उनकी आंखों में दर्द साफ झलक रहा था, मगर वह डरी हुई नहीं लग रही थीं। चुनाव समिति की जांच में पता चला कि कई मतदान केंद्रों पर वोटिंग शुरू होने से पहले ही बैलेट बॉक्स भरे हुए पाए गए थे। वहीं 2024 के चुनाव में सोशल मीडिया पर फैले वीडियोज़ से पता चला कि कुछ अधिकारी खुद ही मतपत्रों में वोट भर रहे थे।
आम लोगों का कहना है कि यह केवल चुनाव तक सीमित मुद्दा नहीं है, बल्कि यह राष्ट्र की मूलभूत पहचान से जुड़ा प्रश्न है। यदि आम नागरिकों को यह महसूस होने लगे कि उनके वोट का कोई महत्व नहीं है, तो लोकतंत्र का सम्पूर्ण ढांचा निरर्थक बनकर रह जाएगा। समिति द्वारा अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिए एक निर्धारित समय-सीमा है। इस रिपोर्ट के माध्यम से बांग्लादेश की राजनीतिक व्यवस्था की पारदर्शिता, न्यायसंगतता और लोकतांत्रिक मानकों की वास्तविक जांच की जानी है।