'आयरन लेडी' आंग सान सू की, फोटो (सो. सोशल मीडिया)
हम आज बात कर रहे हैं म्यांमार की उस महिला नेता की, जिसे मानवाधिकारों की आवाज़ और संघर्ष की प्रतीक माना जाता है आंग सान सू की। उनका जीवन संघर्षों से भरा रहा है। बहुत कम उम्र में ही उन्होंने दूसरों के अधिकारों के लिए अपनी जान जोखिम में डालनी शुरू कर दी थी। आज वे जेल में बंद हैं, लेकिन बावजूद इसके, जहां एक ओर उनके विचारों को लेकर कुछ लोग उनकी आलोचना करते हैं, वहीं दूसरी ओर उनकी विचारधारा और साहस के लाखों समर्थक आज भी मौजूद हैं।
आंग सान सू की का जन्म 19 जून 1945 को रंगून (अब यांगून) में हुआ था। उनका परिवार शुरू से ही म्यांमार की सेवा और स्वतंत्रता संग्राम में लगा रहा। उनके पिता आंग सान ने आधुनिक बर्मी सेना की स्थापना की थी और द्वितीय विश्व युद्ध के समय उन्होंने अमेरिका का समर्थन किया था। आंग सान बर्मा की आज़ादी के प्रबल पक्षधर थे, इसी कारण उनके विरोधियों ने उनकी हत्या कर दी। उस दौर में म्यांमार को बर्मा के नाम से जाना जाता था।
म्यांमार की ‘आयरन लेडी’ कही जाने वाली इस नेत्री ने देशवासियों के अधिकारों की रक्षा के लिए निरंतर अपनी आवाज उठाई। वह कभी भी अन्याय के सामने झुकी नहीं और अपने संघर्ष को डटकर जारी रखा, जिसके लिए उन्हें 1991 में नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया। हालांकि, लोकतंत्र के कुछ नाराज पदाधिकारियों ने उन्हें बार-बार प्रताड़ित किया और उन पर अत्याचार करने का कोई मौका नहीं छोड़ा।
आंग सान सू की
आंग सान के पिता का निधन उस वक्त हुआ जब वह सिर्फ दो साल की थीं। इसके बाद उनकी परवरिश उनकी मां ने की, जो खुद भी म्यांमार की राजनीति में एक प्रभावशाली हस्ती थीं। वर्ष 1960 में आंग सान की मां भारत और नेपाल में बर्मा की राजदूत नियुक्त की गईं। उसी समय आंग सान की पढ़ाई दिल्ली के लेडी श्रीराम कॉलेज में हुई, जहां उन्होंने 1964 में राजनीति विज्ञान में स्नातक की डिग्री प्राप्त की। इसके बाद उन्होंने उच्च शिक्षा के लिए ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय का रुख किया, जहां उन्होंने दर्शनशास्त्र, राजनीति शास्त्र और अर्थशास्त्र की पढ़ाई की।
अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद आंग सान ने न्यूयॉर्क में तीन वर्षों तक संयुक्त राष्ट्र में कार्य किया। इसी दौरान, 1972 में, उनकी मुलाकात तिब्बती संस्कृति के विशेषज्ञ और भूटान में रहने वाले डॉ. माइकल ऐरिस से हुई, जिनसे उन्होंने विवाह किया। इस दंपत्ति के दो बेटे हुए।
2010 में म्यांमार में आम चुनाव हुए, और उसके छह दिन बाद ही आंग सान सू की को कैद से मुक्त कर दिया गया। रिहा होने के बाद, 2012 में वह यूरोप गईं और वहाँ जाकर उन्होंने 1991 में प्राप्त नोबेल शांति पुरस्कार को आधिकारिक तौर पर स्वीकार किया। 2015 में, उन्होंने म्यांमार में 25 वर्षों बाद हुए पहले राष्ट्रीय चुनाव में नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी (एनएलडी) का नेतृत्व किया और पार्टी को ऐतिहासिक जीत दिलाई। हालांकि, देश के संविधान में एक विशेष प्रावधान के चलते वे राष्ट्रपति पद ग्रहण नहीं कर सकीं। इसके बावजूद उनकी पार्टी ने सरकार बनाई और सू की को विदेश मंत्री का पद सौंपा गया।
साल 2020 के आम चुनावों में आंग सान सू की की पार्टी ने भारी बहुमत से जीत हासिल की, लेकिन म्यांमार की सेना ने चुनाव में गड़बड़ी के आरोप लगाए और संसद के पहले ही दिन सू की समेत कई अन्य नेताओं को हिरासत में ले लिया। सेना ने उन पर चुनावी धोखाधड़ी, भ्रष्टाचार और कोविड-19 प्रोटोकॉल के उल्लंघन जैसे कई आरोप लगाए।
दिसंबर 2021 में उन्हें इन आरोपों में चार साल की सजा सुनाई गई। इसके बाद जनवरी 2022 में एक और सुनवाई में उन्हें फिर से चार साल की अतिरिक्त सजा दी गई। दिसंबर 2022 तक, विभिन्न मामलों में आंग सान सू की को कुल मिलाकर 32 साल की सजा सुनाई जा चुकी थी।