आसिम मुनीर, फोटो (सो. सोशल मीडिया)
Pakistan News In Hindi: पाकिस्तान के सेना प्रमुख फील्ड मार्शल आसिम मुनीर हाल के महीनों में अपने भाषणों में बार-बार अल्लाह, कुरान की आयतों और दैवीय हस्तक्षेप (Divine Intervention) का जिक्र करते नजर आ रहे हैं। उनकी एक हालिया स्पीच सोशल मीडिया पर वायरल हो रही है, जिसमें उन्होंने ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भारतीय सेना के दबाव का जिक्र करते हुए कहा कि पाकिस्तानी सेना को ‘अल्लाह की मदद’ से बचाया गया।
मुनीर ने कुरान की एक आयत का हवाला देते हुए कहा कि अगर अल्लाह तुम्हारी मदद करे, तो कोई तुम्हें हरा नहीं सकता। उनके इस बयान को सैन्य टकराव के दौरान पाकिस्तान को मिली कथित सफलता से जोड़कर देखा जा रहा है। लेकिन विशेषज्ञ मानते हैं कि यह सिर्फ धार्मिक आस्था का मामला नहीं बल्कि इसके पीछे गहरी राजनीतिक और रणनीतिक सोच छिपी है।
ऑपरेशन सिंदूर के बाद पाकिस्तानी सेना को कई मोर्चों पर आलोचना का सामना करना पड़ा है। सैन्य विफलताओं, आंतरिक सुरक्षा संकट, बलूचिस्तान और खैबर पख्तूनख्वा में बढ़ते आतंकवाद ने सेना की छवि को नुकसान पहुंचाया है। ऐसे में धार्मिक भाषा का सहारा लेकर मुनीर आलोचनाओं से ध्यान हटाने और सेना को ‘ईश्वरीय संरक्षण’ में दिखाने की कोशिश कर रहे हैं।
डॉन अखबार की रिपोर्ट के मुताबिक, एक भाषण में मुनीर ने कहा था कि यह सेना अल्लाह की सेना है और हमारे सैनिक उसी के नाम पर लड़ते हैं। उन्होंने यह भी दावा किया कि जब कोई मुसलमान अल्लाह पर भरोसा करता है तो दुश्मन की मिट्टी भी मिसाइल बन जाती है। इस तरह की भाषा सेना को धार्मिक रूप से श्रेष्ठ और आलोचना से परे दिखाने का प्रयास मानी जा रही है।
पाकिस्तान एक मुस्लिम बहुल देश है जहां धार्मिक भावनाओं का राजनीति पर गहरा असर है। एक रिपोर्ट के अनुसार, पाकिस्तान के करीब 84% लोग शरिया कानून का समर्थन करते हैं। ऐसे माहौल में धार्मिक अपील जनता को प्रभावित करने का सबसे प्रभावी जरिया बन जाती है।
साथ ही, तहरीक-ए-लब्बैक और टीटीपी जैसे कट्टरपंथी संगठनों का बढ़ता प्रभाव भी सेना के लिए चुनौती है। धार्मिक भाषा अपनाकर मुनीर इन संगठनों के प्रभाव को संतुलित करने और धार्मिक वोटबैंक को अपने पक्ष में बनाए रखने की कोशिश कर रहे हैं।
पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान की गिरफ्तारी के बाद सेना पर राजनीतिक हस्तक्षेप के आरोप लगे हैं। इसके अलावा गाजा में पाकिस्तानी सैनिकों की संभावित तैनाती को लेकर अमेरिका का दबाव और घरेलू विरोध भी मुनीर की मुश्किलें बढ़ा रहा है। ऐसे में धार्मिक नैरेटिव के जरिए सेना को ‘ईमान की राह पर चलने वाली संस्था’ के रूप में पेश करना उनके लिए एक ढाल बन रहा है।
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पाकिस्तान में सेना लंबे समय से धर्म का इस्तेमाल सत्ता को जायज ठहराने के लिए करती आई है। जनरल जिया-उल-हक के दौर में सेना को ‘अल्लाह की सेना’ बताया गया। आज आसिम मुनीर भी उसी राह पर चलते दिखते हैं जहां धर्म, राष्ट्रवाद और सेना को एक साथ जोड़कर विरोध को कमजोर किया जाता है।
कुल मिलाकर आसिम मुनीर के धार्मिक भाषण केवल आस्था की अभिव्यक्ति नहीं बल्कि पाकिस्तान की आंतरिक राजनीति, सैन्य दबाव और सत्ता संतुलन से जुड़ी एक सुनियोजित रणनीति का हिस्सा नजर आते हैं।