
Asim Munir को आजीवन छूट 'हराम' पाकिस्तानी मौलाना ने उठाए सवाल (सोर्स-सोशल मीडिया)
General Asim Munir Controversy: पाकिस्तान में सेना और सरकार के बीच का गठबंधन एक बार फिर बड़े विवादों के घेरे में है। 27वें संविधान संशोधन के जरिए फील्ड मार्शल आसिम मुनीर को मिली आजीवन कानूनी इम्युनिटी पर अब धार्मिक गुरुओं ने मोर्चा खोल दिया है।
प्रख्यात इस्लामी विद्वान मुफ्ती तकी उस्मानी ने इस प्रावधान को सीधे तौर पर कुरान और सुन्नत के सिद्धांतों के खिलाफ बताते हुए ‘हराम’ करार दिया है। यह विरोध पाकिस्तान के सैन्य वर्चस्व वाली हाइब्रिड शासन व्यवस्था के लिए एक बड़ी चुनौती बनकर उभरा है।
जमीयत उलेमा-ए-इस्लाम (फजल) से जुड़े वरिष्ठ मौलाना मुफ्ती तकी उस्मानी ने पाकिस्तान के मौजूदा सैन्य ढांचे पर सीधा प्रहार किया है। उन्होंने सार्वजनिक रूप से यह तर्क दिया है कि इस्लाम की नजर में कोई भी खलीफा, जनरल या शासक जवाबदेही से ऊपर नहीं हो सकता।
उस्मानी का कहना है कि किसी भी व्यक्ति को उसके जीवनभर के फैसलों के लिए कानूनी सुरक्षा देना इस्लामी कानून के मूल ढांचे का उल्लंघन है। उनके इस बयान ने पाकिस्तान के धार्मिक और राजनीतिक हलकों में खलबली मचा दी है, क्योंकि जब विरोध का आधार धर्म बनता है, तो सेना के लिए उसे नजरअंदाज करना कठिन हो जाता है।
विवाद की असली जड़ 27 दिसंबर को आसिम मुनीर द्वारा पाकिस्तान के पहले चीफ ऑफ डिफेंस फोर्सेज (CDF) के रूप में कार्यभार संभालना है। संविधान में किए गए नए संशोधन के तहत मुनीर को उनके कार्यकाल के दौरान लिए गए किसी भी फैसले के लिए आजीवन कानूनी सुरक्षा प्रदान की गई है।
इसका अर्थ है कि उन पर पाकिस्तान का कोई भी सामान्य कानून लागू नहीं होगा। राजनीतिक विशेषज्ञों ने इसे ‘संवैधानिक तानाशाही’ का नाम दिया है। विपक्षी दलों का आरोप है कि नागरिक सरकार केवल एक मुखौटा है और देश की असली कमान अब पूरी तरह से रावलपिंडी के सैन्य मुख्यालय के पास चली गई है।
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मुफ्ती तकी उस्मानी जैसे प्रभावशाली चेहरे की असहमति पाकिस्तान के हाइब्रिड शासन के लिए एक खतरे की घंटी है। देवबंदी विचारधारा से जुड़े कई अन्य मौलवी भी अब JUI-F नेतृत्व पर दबाव बना रहे हैं कि वे सरकार के इस गैर-इस्लामी कदम का हिस्सा न बनें।
जानकारों का मानना है कि यदि धार्मिक नेतृत्व और राजनीतिक दल इस मुद्दे पर एक साथ आते हैं, तो पाकिस्तान की आंतरिक स्थिरता और अधिक कमजोर हो सकती है। यह विवाद केवल एक कानून तक सीमित नहीं है, बल्कि यह पाकिस्तान के लोकतंत्र और जवाबदेही के भविष्य की एक बड़ी लड़ाई बन गया है।






