अलीगढ़ में फिर मिला मंदिर
अलीगढ़: जहां इस समय UP के अलीगढ़ में प्राचीन मंदिरों के मिलने का सिलसिला लगातार जारी है। वहीं बीते बुधवार को यहां बन्नादेवी थाना क्षेत्र के सराय रहमान में शिव मंदिर मिला था। जिसके अगले ही दिन यानी बीते गुरुवार को दिल्ली गेट थाना क्षेत्र के घनी मुस्लिम आबादी वाले इलाके सराय मिलां में एक और बंद पड़ा मंदिर मिला है।
इस बाबत भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेताओं और हिंदू संगठनों ने दावा किया कि अलीगढ़ के दिल्ली गेट थाना क्षेत्र के एक मुस्लिम बहुल इलाके में लंबे समय से बंद पड़ा एक और शिव मंदिर ढूंढ निकाला गया है। उन्होंने इस बाबत बताया कि बीते गुरुवार शाम को सराय मियां इलाके में स्थित यह मंदिर ढूंढ निकाला गया। वहीं 36 घंटे पहले बन्नादेवी थाना क्षेत्र के अंतर्गत सराय रहमान इलाके में भी इसी तरह का एक और बंद मंदिर मिला था।
इस बाबत भारतीय जनता पार्टी युवा मोर्चा (भाजयुमो) की शहर इकाई के सचिव हर्षद, बजरंग दल के नेता अंकुर शिवाजी कई अन्य लोगों के साथ मौके पर पहुंचे और बताया कि बंद मंदिर परिसर पूरी तरह से अव्यवस्थित था और मूर्तियां मलबे में दबी हुई थीं। उन्होंने कहा कि पुलिस की मौजूदगी में गेट पर लगे ताले तोड़े गए और धार्मिक नारों के बीच मंदिर की सफाई और शुद्धिकरण किया गया।
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मामले पर पुलिस अधीक्षक मृगांक शेखर पाठक ने बीते गुरुवार देर रात संवाददाताओं को बताया कि, इन इलाकों में शांति समितियों की बैठक आयोजित की जा रही हैं ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि इन मंदिरों को पूरी तरह से बहाल किया जाए और यहां शांतिपूर्ण तरीके से पूजा की जाए।
उन्होंने बताया कि, “अब तक दोनों इलाकों से किसी भी अप्रिय घटना की कोई सूचना नहीं मिली है।” सराय मियां के स्थानीय निवासियों के अनुसार, बाबरी मस्जिद ढहाये जाने से पहले और बाद में शहर में सांप्रदायिक दंगे हुए, जिसके कारण हिंदुओं और मुसलमानों का पलायन हुआ।
इस बाबत उन्होंने बताया कि इस जनसांख्यिकीय बदलाव के कारण बस्तियों के साथ-साथ नई कॉलोनियों का निर्माण भी हुआ। स्थानीय निवासी मोहम्मद अकील कुरैशी ने बताया कि पिछले कई वर्ष से मंदिर में किसी प्रकार की कोई पूजा नहीं हो रही थी और कोई भी व्यक्ति परिसर में नहीं जाता था।
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पुलिस अधीक्षक मृगांक शेखर पाठक ने यह भी बताया कि मुस्लिम निवासियों ने मंदिर की जमीन पर अतिक्रमण को रोकने के लिए पहल करते हुए एक चारदीवारी बनाई। हालांकि, अधिकांश लोगों का मानना है कि इस मंदिर में तीन या चार दशक तक किसी प्रकार की पूजा नहीं की गई क्योंकि यहां रहने हिंदू समुदाय के लोग सांप्रदायिक दंगों के बाद पलायन कर गए थे। (एजेंसी इनपुट के साथ)