अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी
नई दिल्ली: जहां एक तरफ सुप्रीम कोर्ट ने बीते शुक्रवार को अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के अल्पसंख्यक दर्जे संबंधी मामले को नयी पीठ के पास भेजने का निर्णय लिया और 1967 के फैसले को खारिज कर दिया जिसमें कहा गया था कि विश्वविद्यालय को अल्पसंख्यक संस्थान नहीं माना जा सकता क्योंकि इसकी स्थापना केंद्रीय कानून के तहत की गई थी। वहीं इस मामले पर अब शिया पर्सनल लॉ बोर्ड और AMU प्रशासन का बयान भी आ गया है।
आज इस बाबत ऑल इंडिया शिया पर्सनल लॉ बोर्ड के प्रवक्ता और महासचिव यासूब अब्बास ने फ़ैसले पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा, “यह बहुत ही अच्छा फ़ैसला है। मैं इस फ़ैसले का तहे दिल से स्वागत करता हूं। इसलिए कि जो तीन जजों की बेंच है, ऐसी उम्मीद है कि वह हक़ में फ़ैसला देगी। अल्पसंख्यक दर्जे की अपनी अहमियत और ताकत होती है क्योंकि उसमें किसी की भिी दख़लअंदाज़ी नहीं होती है। जहां तक तीन जजों की बेंच का सवाल है तो मेरे हिसाब से वह भी आगे बहुत अच्छा फ़ैसला लेगी और वे भी अल्पसंख्यक दर्जे को बरकरार रखने का फ़ैसला ही करेगी।”
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वहीं सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले पर अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी की वाइस चांसलर नईमा ख़ातून ने प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि, “हम सभी इस फ़ैसले का सम्मान करते हैं। हम इंतज़ार करेंगे और अपने लिगल एक्सपर्ट्स से बात करेंगे कि मामले पर आगे क्या किया जाए। हमारे पास क़ानूनी सलाहकारों की टीम मौजुद है।मेरे पास इससे ज्यादे इस मुद्दे पर कुछ भी कहने को नहीं है और इसीलिए फिलहाल मैं इस पर कोई भी टिप्पणी नहीं करना चाहूंगी।”
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जानकारी दें कि, CJI डी वाई चंद्रचूड़ ने बहुमत का फैसला सुनाते हुए AMU के अल्पसंख्यक दर्जे के मुद्दे पर विचार के लिए मानदंड निर्धारित किए। सुप्रीम कोर्ट ने 4:3 के बहुमत में कहा कि मामले के न्यायिक रिकॉर्ड को प्रधान न्यायाधीश के समक्ष प्रस्तुत किया जाना चाहिए ताकि 2006 के इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले की वैधता पर निर्णय करने के लिए एक नयी पीठ गठित की जा सके। जनवरी 2006 में हाई कोर्ट ने 1981 के कानून के उस प्रावधान को रद्द कर दिया था जिसके तहत AMU को अल्पसंख्यक का दर्जा दिया गया था। (एजेंसी इनपुट के साथ)