इलाहाबाद उच्च न्यायालय (सोर्स- सोशल मीडिया)
Allahabad High Court: इलाहाबाद हाई कोर्ट ने धर्मांतर के बाद भी शेड्यूल कास्ट का दर्जा बनाए रखने को ‘संविधान के साथ धोखाधड़ी’ के समान बताया है। उच्च न्यायालय ने यूपी के संपूर्ण प्रशासनिक तंत्र को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि धर्मांतरण के बाद ईसाई बनने वाले व्यक्ति SC के तहत मिलने वाले लाभ न उठा पाए।
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने अल्पसंख्यक कल्याण विभाग के प्रमुख सचिव को यह सुनिश्चित करने के लिए उचित कदम उठाने का निर्देश दिया कि अल्पसंख्यक दर्जा और अनुसूचित जाति के दर्जे के बीच अंतर को सख्ती से लागू किया जाए।
न्यायालय ने साथ ही प्रदेश में सभी जिलाधिकारियों के लिए ऐसे मामलों की पहचान कर उनकी रोकथाम के लिए कानून के मुताबिक कार्रवाई करने के लिए चार महीने की समय सीमा निर्धारित की। जस्टिस प्रवीण कुमार गिरि ने जितेंद्र साहनी नाम के व्यक्ति द्वारा दायर याचिका को खारिज करते हुए यह निर्देश दिया।
साहनी पर हिंदू देवी-देवताओं का मजाक उड़ाने और दुश्मनी बढ़ाने का आरोप है। साहनी ने इस आधार पर चार्जशीट रद्द करने की मांग की थी कि उन्होंने अपनी जमीन पर ईसा मसीह की शिक्षाओं का प्रचार करने के लिए संबंधित अधिकारियों से इजाजत मांगी थी और उन्हें इस मामले में झूठा फंसाया गया था।
21 नवंबर को सुनवाई के दौरान कोर्ट ने याचिका के सपोर्ट में फाइल किए गए एफिडेविट की जांच की और पाया कि याचिकाकर्ता ने एफिडेविट में अपना धर्म हिंदू बताया था, भले ही उसने ईसाई धर्म अपना लिया था। कोर्ट को बताया गया कि धर्म बदलने से पहले, याचिकाकर्ता अनुसूचित जाति समुदाय से था और उसने एफिडेविट में अपना धर्म हिंदू बताया था।
इस बीच एक अहम आदेश में हाई कोर्ट ने पुलिस अधिकारियों को उत्तर प्रदेश बार काउंसिल में रजिस्टर्ड वकीलों के खिलाफ पेंडिंग क्रिमिनल केस की पूरी लिस्ट जल्द से जल्द देने का निर्देश दिया। जस्टिस विनोद दिवाकर ने इटावा के एक वकील मोहम्मद कफील की फाइल की गई क्रिमिनल याचिका पर सुनवाई करते हुए यह आदेश दिया।
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कफील ने एक डिस्ट्रिक्ट कोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी थी जिसमें एक मामले में पुलिस अधिकारियों को समन जारी करने की उनकी रिक्वेस्ट को खारिज कर दिया गया था। रिकॉर्ड और एफिडेविट की जांच करने के बाद, कोर्ट ने कहा, “एफिडेविट के अनुसार, पिटीशनर तीन क्रिमिनल केस में फंसा है, और उसके सभी भाइयों को खतरनाक क्रिमिनल बताया गया है। ऐसे हालात में, यह सोचना ज़रूरी है कि ऐसे क्रिमिनल मामलों में पिटीशनर का शामिल होना उसकी प्रोफेशनल ईमानदारी पर कितना असर डाल सकता है।”