मौलाना बरेलवी, फोटो- सोशल मीडिया
Maulana Barelvi’s Statement on New Year’s Celebrations: ऑल इंडिया मुस्लिम जमात के अध्यक्ष मौलाना मुफ्ती शहाबुद्दीन रजवी बरेलवी ने 1 जनवरी के जश्न को ‘फिजूलखर्ची’ और गैर-इस्लामी बताया है। उन्होंने युवाओं से यूरोपीय संस्कृति और फूहड़ता से दूर रहने की अपील की है।
देशभर में नए साल के स्वागत की तैयारियां चल रही हैं, लेकिन इसी बीच बरेली के मौलाना मुफ्ती शहाबुद्दीन रजवी बरेलवी का एक बयान सुर्खियों में है। उन्होंने मुसलमानों, विशेषकर युवाओं को 1 जनवरी का जश्न न मनाने की हिदायत देते हुए इसे शरीयत और इस्लामी सिद्धांतों के खिलाफ बताया है। ऑल इंडिया मुस्लिम जमात के राष्ट्रीय अध्यक्ष मौलाना मुफ्ती शहाबुद्दीन रजवी बरेलवी ने स्पष्ट किया कि शरीयत-ए-इस्लामिया की रोशनी में नए साल का जश्न मनाना जायज नहीं है।
मौलाना का तर्क है कि प्रत्येक धर्म का अपना कैलेंडर होता है; जैसे इस्लामी कैलेंडर के अनुसार नया साल मुहर्रम माह से शुरू होता है और हिंदू कैलेंडर में यह चैत्र मास से आरंभ होता है। उन्होंने कहा कि 1 जनवरी को मनाया जाने वाला नया साल पूरी तरह यूरोपीय संस्कृति से प्रेरित है और ईसाई समुदाय से जुड़ा हुआ है।
मौलाना ने 31 दिसंबर की रात होने वाले आयोजनों को ‘फिजूलखर्ची’ करार दिया है। उन्होंने जश्न के मौजूदा तरीकों पर सवाल उठाते हुए कहा कि इस रात फूहड़ता, हंगामा, शोर-शराबा और नाच-गाना होता है, जिसकी इस्लाम में कतई इजाजत नहीं है। मौलाना ने मुस्लिम नौजवान लड़के और लड़कियों से गुजारिश की है कि वे ऐसे आयोजनों का हिस्सा न बनें। उन्होंने यह भी चेतावनी दी कि यदि कहीं से मुस्लिम युवाओं द्वारा जश्न मनाने की खबर मिलती है, तो उलमा-ए-किराम उन्हें सख्ती से रोकेंगे।
मौलाना बरेलवी ने इस्लाम की बुनियादी शिक्षाओं का हवाला देते हुए कहा कि यह मजहब अपने उसूलों पर मजबूती से कायम है। उनके अनुसार, इस्लाम में केवल एक खुदा की इबादत का प्रावधान है। उन्होंने अन्य सांस्कृतिक या धार्मिक प्रचलनों जैसे सूर्य नमस्कार, धरती, नदी और पेड़-पौधों की पूजा करने को शरीयत में ‘हराम’ बताया है।
यह भी पढ़ें: निकाय चुनाव से ठीक पहले चाचा-भतीजा ने मिलाया हाथ, साथ आई शरद पवार और अजित पवार की ‘पावर’ जोड़ी
मौलाना का यह बयान सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रहा है। उनका मानना है कि मुस्लिम समाज के लोगों को अपनी धार्मिक पहचान और सिद्धांतों के प्रति सजग रहना चाहिए और ऐसी किसी भी गतिविधि में शामिल नहीं होना चाहिए जो उनके मजहबी उसूलों के विपरीत हो। यह बयान ऐसे समय में आया है जब पूरी दुनिया 2026 के स्वागत के लिए उत्साहित है।