iPhone को लेकर चीन और अमेरिका को चिंता। (सौ. Pixabay)
भारत में एप्पल के iPhone प्रोडक्शन की रफ्तार तेज होने से चीन और अमेरिका दोनों की चिंताएं गहराती जा रही हैं। हाल ही में फॉक्सकॉन के भारतीय प्लांट से 300 चीनी इंजीनियरों को वापस बुलाया गया, जिससे चीन की नाराजगी खुलकर सामने आई है। यह घटनाक्रम इस बात का संकेत है कि भारत अब एप्पल के लिए केवल एक उत्पादन केंद्र नहीं, बल्कि एक रणनीतिक शक्ति बनता जा रहा है।
एप्पल के लिए iPhone बनाने वाली फॉक्सकॉन ने चेन्नई के पास 1.5 अरब डॉलर की लागत से डिस्प्ले मॉड्यूल फैक्ट्री शुरू की है। “इस प्रोजेक्ट से करीब 14,000 नई नौकरियां पैदा होने की उम्मीद है।” तमिलनाडु सरकार ने इस योजना को पिछले साल अक्टूबर में मंजूरी दी थी, और अब यह भारत के लिए रोजगार का बड़ा स्रोत बनता जा रहा है।
एप्पल ने इस साल मई में कहा था कि वह 2026 तक अमेरिका में बिकने वाले सभी iPhone भारत में ही बनाना चाहता है। “2024 में भारत पहले ही iPhone प्रोडक्शन का 18% हिस्सा बन चुका है और 2025 तक यह बढ़कर 32% तक पहुंच सकता है।” मार्च से मई के बीच भारत से 3.2 अरब डॉलर के iPhone अमेरिका निर्यात हुए।
भारत में एप्पल का उत्पादन बढ़ता देख चीन ने न केवल इंजीनियर वापस बुलाए, बल्कि विशेष मशीनरी और तकनीकी सपोर्ट पर भी रोक लगा दी। “ये इंजीनियर भारतीय कर्मियों को प्रिसिजन असेंबली लाइन चलाना सिखा रहे थे।” चीन को डर है कि इसका प्रभाव उसके अन्य उद्योगों जैसे इलेक्ट्रिक वाहन, सौर पैनल और रेयर अर्थ मिनरल्स पर भी पड़ेगा।
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भी नाराजगी जताते हुए मई 2025 में कहा: “हमने तुम्हारे चीन के प्लांट्स को सहा, लेकिन हमें भारत में प्लांट लगाने में कोई दिलचस्पी नहीं है।” ट्रंप की अमेरिका फर्स्ट नीति चाहती है कि एप्पल की नौकरियां केवल अमेरिकियों को मिलें, लेकिन उच्च लागत और ट्रेनिंग स्टाफ की कमी के चलते यह संभव नहीं।
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भारत में इलेक्ट्रॉनिक्स उत्पादन अब तेज़ी से बढ़ रहा है। “एक दशक पहले भारत का फोन एक्सपोर्ट 250 मिलियन डॉलर था, जो अब 22 अरब डॉलर से अधिक हो चुका है।” कॉर्निंग और टाटा इलेक्ट्रॉनिक्स जैसी कंपनियां भारत में निवेश कर रही हैं, जिससे भारत केवल असेंबली नहीं, बल्कि डिज़ाइन और मैन्युफैक्चरिंग में भी आत्मनिर्भर बन रहा है।
कोविड महामारी के बाद एप्पल ने चीन पर निर्भरता घटाने का फैसला लिया और भारत में नई संभावनाएं देखीं। अगर भारत इस मौके का सही उपयोग करता है, तो वह ग्लोबल ट्रेड में एक निर्णायक ताकत बन सकता है। यही बात चीन और अमेरिका को परेशान कर रही है।