लखनऊ के सबसे बड़े बर्तन बाजार यहियागंज के कारोबारी सुधांशु बताते हैं कि धनतेरस के दिन सबसे ज्यादा मांग तांबे के बर्तनों की रही है। लोगों ने शगुन के लिए भले ही स्टील के छोटे-मोटे बर्तन खरीदे हैं पर बड़ी खरीद तो तांबे और उसके बाद पीतल व फूल के बर्तनों की ही हुई है। उनका कहना है कि तांबे की मांग बीते कई सालों से बाजार में बढ़ रही है जिसके चलते अब इसके बर्तन नयी व आधुनिक डिजाइन में उपलब्ध हैं।
अमीनाबाद के बर्तन कारोबारी हकीम अहमद के अनुसार नॉन स्टिक बर्तन पहले की ही तरह मांग में रहे हैं और इस बार कास्ट आयरन के बर्तनों की भी पूछ काफी रही है। उच्च आय वर्ग के लोगों में जर्मन सिल्वर और लक्जरी ब्रास के बर्तनों की भी खासी मांग रही है। पीतल की थाली-कटोरी और चम्मच का एक सेट 2400 में रूपये में होने के बाद भी धनतेरस के दिन खूब बिका और शाम होते तक बाजार से गायब हो गया।
सबसे ज्यादा मांग में रहने वाले आइटमों की जनकारी देते हुए हकीम ने बताया कि लोगों ने 500 रुपये में बिकने वाली कॉपर की फ्रिज बोतल, 1500 से 3000 रुपये की कॉपर की सुराही, 250 से 400 रुपये की पूजा की थाली और 800 रुपये से 1200 रुपये की फूल की थाली को धनतेरस के दिन जमकर खरीदा है।
व्यवसायी हकीम का कहना है कि बीते कुछ सालों से मिट्टी के तवे, भगोने और हांडी की मांग बढ़ रही है। हालांकि धनतेरस में शगुन के लिए धातुओं की खरीद होती है पर साथ में उनकी भी बिक्री चमकी है।
कारोबारियों का कहना है कि अकेले लखनऊ से ही धनतेरस के दिन 2500 करोड़ रुपये के बर्तनों की बिक्री हो जाने का अनुमान है जोकि बीते साल के मुकाबले 50 फीसदी अधिक रहेगा। पिछले साल के मुकाबले इस बाजार में दुकानें भी कहीं ज्यादा सजी हैं और नए स्टॉल भी लगे हैं।
देशी पटाखों की बढ़ी मांग, गांवों में हो रहा निर्माण
बीते कई सालों से देशी माल को बाजार के करीब करीब बाहर कर चुके चीनी व फैक्ट्री मेड पटाखों को इस बार मात खानी पड़ी है। दिवाली के लिए सजे पटाखों की बाजार में सबसे ज्यादा मांग में पारंपरिक देशी पटाखों की है। तेज आवाज के देशी बम हों या लंबे समय तक जलने वाली फुलझड़ी व अनार हों इन सबकी बिक्री में जबरदस्त तेजी दिख रही है।
जाने माने आतिशबाज मुस्तफा का कहना है कि युवा पीढ़ी का रुझान इस बार देशी पटाखों की ओर है। लखनऊ के आसपास के गावों जैसे नगराम, कल्ली पश्चिम वगैरा में तैयार होने वाले देशी अनार, महताब और फुलझड़ी के लिए जबरदस्त मांग है। मुस्तफा कहते हैं कि गांवों में बीते एक महीने से दिन-रात काम कर ग्रामीण पटाखे बना रहे हैं फिर भी मांग पूरी नहीं हो पा रही है।