अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक दिवस (फोटो- सोशल मीडिया)
आज यानी 23 जून 2025 को दुनिया अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक दिवस मना रही है। ओलंपिक खेल की दुनिया का एक ऐसा महाकुंभ है, जिससे जुड़ने का सपना हर एथलीट का होता है। वहीं, अगर कोई खिलाड़ी यहां पर मेडल जीत जाता है, तो फिर क्या ही कहने। मौजूदा वक्त में बड़ी शान के साथ ओलंपिक का आयोजन होता है, लेकिन एक वक्त ऐसा भी था।, जब कई वर्षों के लिए ओलंपिक पर बैन लगा दिया गया था।
यदि ओलंपिक खेलों के शुरुआत की बात करें तो 776 ईसा पूर्व में ग्रीस के ओलंपिया नाम के स्थान पर आयोजित किया गया था। ओलंपिया नाम के कारण ही इसका नया नाम ओलंपिक रखा गया। इसके बाद एक नई परंपरा ने जन्म लिया, जिसमें हर चार के साल के बाद इसका आयोजन किया जाने लगा। ऐसा लगातार 12 शताब्दियों तक होता रहा।
मीडिया रिपोर्ट्स में छपी खबरों के मुताबिक ओलंपिक खेल का पहला आयोजन 1200 साल पहले योद्धाओं और खिलाड़ियों के बीच किया गया था। फिर 776 ईसा पूर्व ओलंपिक का पहला ऑफिशियल आयोजन किया गया। आखिरी बार 394 ईस्वी में इसका आयोजन किया गया था। लेकिन फिर रोमन शासक सम्राट थियोडोसियस प्रथम ने ओलंपिक पर धार्मिक कारणों के चलते ग्रीक ओलंपिक के चलते प्रतिबंध लगा दिया था। उनका मानना था कि इसमें मूर्तिपूजा की जाती है और उसने मूर्ति पूजा वाले सभी धार्मिक त्योहार प्रतिबंधित कर दिए थे। इसके बाद एक हिसाब से ओलंपिक खत्म सा हो गया।
रोमन शासक के द्वारा ओलंपिक में प्रतिबंध लगाए जाने के बाद 19वीं शताब्दि में एक बार फिर से इसका आयोजन किया गया। इसे दोबारा शुरू करने का श्रेय फ्रांस के बैरों पियरे डी कुवर्तेन को जाता है। उन्होंने इसकी शुरुआत के साथ दो बड़े लक्ष्य निर्धारित किए। उनका पहला लक्ष्य खेलों को अपने देश में लोकप्रिय बनाना और दूसरा ये कि सभी देशों को एक शांतिपूर्ण प्रतियोगिता के लिए एकत्रित करना था। कुवर्तेन की इस शानदार पहल के बाद ग्रीस की राजधानी एथेंस में पहली बार साल 1896 में आधुनिक ओलंपिक खेलों का आयोजन किया गया।
आज 23 जून को ही क्यों मनाया जाता अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक दिवस, क्या है इसका इतिहास और महत्व
23 जून 1894 को इंटरनेशनल ओलंपिक समिति का गठन किया गया। वहीं, 1948 में आयोजित आईओसी के 42वें सत्र के दौरान इसे मंजूरी मिल गई। इसके साथ ओलंपिक दिवस पहली बार 23 जून 1948 मनाया गया। इस साल ग्रीस, पुर्तगाल, ऑस्ट्रिया, स्विट्जरलैंड, ग्रेट, ब्रिटेन, कनाडा, वेनेजुएला, उरुग्वे और बेल्जियम ने अपने-अपने देश इस खास दिन का आयोजन किया था।