गुजरात के वडोदरा में पानी पुरी को लेकर धरना (सौ. डिजाइन फोटो)
नवभारत डिजिटल डेस्क: पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘निशानेबाज, महात्मा गांधी ने देशवासियों को अपनी मांग को लेकर धरना देना सिखाया था।तब आजादी, स्वदेशी, शराबबंदी जैसे मुद्दों पर धरना दिया जाता था।यह अहिंसक आंदोलन या सत्याग्रह का प्रभावशाली शस्त्र था।आज भी यह तरीका आजमाया जाता है।गुजरात के वडोदरा में एक महिला इस बात को लेकर धरने पर बैठ गई क्योंकि पानी पूरी वाले ने उसे 6 की बजाय 4 पानी पूरी दी।सिर्फ 2 पानी पूरी कम होने की वजह से वह आंदोलनकारी बन गई.’
हमने कहा, ‘जहां अन्याय हो या हक मारा जाए वहां लोग बीच सड़क पर बैठकर धरना देने लगते हैं।गोलगप्पा या पानी पूरी का चटपटा, खट्टा-मीठा स्वाद किसे नहीं ललचाता! उसके नाम से ही मुंह में पानी आ जाता है।आपने देखा होगा कि लोग सपरिवार कार से उतरकर फुटपाथ पर बड़े शौक से चटखारे लेकर पानी पूरी खाते हैं।ठेलेवाला उसे फोड़कर चना, उबला हुआ आलू भरकर मसालेदार पुदीने व जलजीरे वाले पानी में डुबोकर ग्राहक की प्लेट में रखता चला जाता है।खानेवाले ने एक पानी पूरी मुंह में डाली कि उतने में दूसरी तैयार हो जाती है।असली स्वाद उसके पानी का होता है।नागपुर की पानी पूरी का स्वाद तीखा-चटपटा होता है जबकि पुणे में पानी में गुड़ या शक्कर घोल दी जाती है।
ये भी पढ़ें– नवभारत विशेष के लेख पढ़ने के लिए क्लिक करें
अपना-अपना टेस्ट है! कुछ लोग दही पूरी पसंद करते हैं।जब तक ग्राहक ‘बस हो गया’ नहीं कहता पानी पूरी देने का सिलसिला निरंतर जारी रहता है।बाद में ग्राहक 2 सूखी पूरी खाकर संतुष्ट हो जाता है.’ पड़ोसी ने कहा, ‘हमें पानी पूरी की लोकप्रियता मालूम है।यह लोगों को रोजगार देने का बड़ा जरिया है।वैसे तो लोग घर में भी पानी पूरी बना सकते हैं लेकिन उसका असली मजा ठेले पर खाने में है।जब पानी पूरीवाले ने भ्रष्टाचार करते हुए 6 की बजाय सिर्फ 4 पानी पूरी दी तो महिला का जी नहीं भरा।उसने विरोध प्रदर्शन करते हुए वहीं धरना देने की ठान ली क्योंकि मुद्दा सिर्फ 2 पानी पूरी कम देने का नहीं था बल्कि सिद्धांत का सवाल था।अब हर पानी पूरी विक्रेता सावधान हो जाए।महिलाएं गिनती में पक्की होती हैं।पानी पूरी के कोटे में कटौती की तो वहीं धरने पर बैठ जाएंगी।’
भाषा एजेंसी के द्वारा