वक्फ कानून रहेगा या जाएगा ?(फाइल फोटो)
नवभारत डिजिटल डेस्क: हाल ही में गठित वक्फ (संशोधन) कानून पर सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना, न्यायाधीश संजय कुमार व न्यायाधीश केवी विश्वनाथन की खंडपीठ ने महत्वपूर्ण प्रश्न उठाए, जैसे क्या सरकार हिन्दू ट्रस्ट्स में मुस्लिमों को शामिल होने की अनुमति देगी ? उनसे स्पष्ट हो गया था कि अदालत इस कानून पर रोक लगाने के लिए अंतरिम आदेश जारी करने जा रही है। विशेषकर इसलिए कि इस नए कानून के कुछ प्रावधानों पर सुप्रीम कोर्ट को स्पष्टीकरण चाहिए था। इस कानून के खिलाफ 150 से अधिक याचिकाएं दायर की गईं हैं, उनका जवाब देने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को एक सप्ताह का समय दिया है।अगली सुनवाई 5 मई को होगी। चूंकि मुख्य न्यायाधीश खन्ना 13 मई को रिटायर हो रहे हैं, इसलिए यह देखना होगा कि वह याचिकाओं पर सुनवाई करेंगे या किसी अन्य खंडपीठ को यह काम सौंप देंगे।
सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को आश्वासन दिया है कि वह सेंट्रल वक्फ काउंसिल व औकाफ बोर्ड्स में कोई नियुक्ति नहीं करेगी और अगर राज्य अगले दो सप्ताह के भीतर कोई नियुक्तियां करते हैं, तो वह रिक्त (वोयड) मानी जाएंगी. सरकार ने यह भी आश्वासन दिया है कि वह ‘वक्फ बाई यूजर’ संपत्तियों सहित वक्फ पर यथास्थिति बनाए रखेगी। इसका अर्थ यह है कि इस प्रकार की संपत्तियों पर दोबारा गौर नहीं होगा, उन मामलों में भी, जिनमें विवाद है कि वह सरकारी संपत्ति है। दूसरी ओर वक्फ कानून की वैधता को चुनौती देने वाले याचिकाकर्ताओं से सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि वह पांच याचिकाओं का चयन लीड याचिकाओं के तौर पर कर लें और एक नोडल वकील का भी चयन कर लें। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह इस स्थिति को बदलने के पक्ष में नहीं है कि संसद कानून बनाए, एग्जीक्यूटिव फैसले लें और न्यायपालिका व्याख्या करे. सुप्रीम कोर्ट का ख्याल यह है कि अतीत या इतिहास को फिर से नहीं लिखा जा सकता और अब पुरानी वक्फ संपत्तियों को फिर से नहीं खोला जा सकता है. सुप्रीम कोर्ट का यह भी सवाल है कि शताब्दियों पुराने वक्फ एसेट्स का सबूत कोई कहां से लेकर आयेगा ?
पिछले तीन वर्ष से सेंट्रल वक्फ काउंसिल मृत पड़ी है. इसलिए इस आश्वासन का कोई अर्थ नहीं है कि इसमें कोई नियुक्तियां नहीं की जाएंगी। संशोधित कानून में प्रावधान है कि काउंसिल व बोर्ड्स में दो गैर-मुस्लिम नियुक्त किए जाएंगे। याचिकाकर्ता इसे मुस्लिम समुदाय के मौलिक अधिकारों में हस्तक्षेप मानते हैं, जो उन्हें अनुच्छेद 26 के तहत प्राप्त हैं. इसी पर सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से सवाल किया था कि क्या वह हिन्दू ट्रस्ट्स में मुस्लिमों को सदस्य बनने देगी? इसमें कोई दो राय नहीं है कि वक्फ (संशोधन) कानून, 2024 की गहन न्यायिक समीक्षा की जानी चाहिए, जो कि सुप्रीम कोर्ट की खंडपीठ ही कर सकती है। पहली ही नजर में जाहिर होता है कि यह कानून अनुच्छेद 25 व 26 का उल्लंघन करता है, विशेषकर अनुच्छेद 26 का, जो न केवल अपने धर्म का स्वतंत्रता से स्वीकार, पालन व प्रसार की अनुमति देता है, बल्कि धार्मिक मामलों के आत्म-प्रबंधन का अधिकार भी देता है।
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अगर पूरा बोर्ड सरकार का ही विस्तार बनकर रह जाएगा तो संस्थागत स्वायत्तता कहां रह पाएगी? संशोधित वक्फ कानून में यह चिंताजनक आशंका है कि वक्फ बोर्ड के 11 सदस्यों में से न्यूनतम 3 ही मुस्लिम रह सकते हैं. क्या आप ऐसे हिन्दू मंदिर बोर्ड या सिख गुरुद्वारा कमेटी की कल्पना कर सकते हैं, जिसके बहुसंख्य सदस्य गैर-हिन्दू या गैर-सिख हों? यह अनुच्छेद 26 के तहत उपलब्ध धार्मिक आत्म-प्रबंधन के विचार का घोर उल्लंघन है। यह संवैधानिक समता व सामुदायिक सम्मान का भी उल्लंघन है. कानून सिर्फ टेक्स्ट में ही बराबर का नहीं होना चाहिए, बल्कि स्पिरिट व एप्लीकेशन में भी बराबर का होना चाहिए। यह न्याय नहीं है कि एक हाथ से अधिकार छीन लिए जाएं और दूसरे से दिखाया जाए कि समता लागू की जा रही है। संशोधित वक्फ कानून में वक्फ बोर्ड के सदस्यों को यह अधिकार नहीं है कि वह अविश्वास प्रस्ताव के माध्यम से बोर्ड के अध्यक्ष को हटा सकें। यह आंतरिक लोकतंत्र व संस्थागत जवाबदेही का खुला उल्लंघन है।बिना जवाबदेही के स्वायत्तता बेकार की बात है, लेकिन बिना स्वायत्तता के जवाबदेही तानाशाही है।
लेख- नौशाबा परवीन के द्वारा