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नवभारत डिजिटल डेस्क: अमेरिका के राष्ट्रपति बनते ही डोनल्ड ट्रम्प ने अपने बयानों से जिस तरह से पूरी दुनिया में भूचाल ला दिया है. उस की एक लहर भारत को भी अपनी चपेट में ले चुकी है. ट्रम्प के सहयोगी मस्क ने अपने नेतृत्व वाले ‘डिपार्टमेंट ऑफ गवर्नमेंट एफिशिएंसी’ (डीओजीई) के तहत भारत की दी जाने वाली 182 करोड़ रुपये की फंडिंग रद्द कर दी. अपने ही अंदाज से हमला करते हुए अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प ने कहा, हम भारत को 182 करोड़ रुपये क्यों दे रहे हैं?
इस खबर के फ्लैश होते ही भाजपा के कई प्रवक्ता और विपक्ष विशेषकर राहुल गांधी पर टूट पड़े. भाजपा के प्रवक्ता गौरव भाटिया ने कहा कि यह पैसे कांग्रेस और राहुल गांधी को मिले, जो भारत के दुश्मनों के साथ हैं. भाटिया के मुताबिक, राहुल देश को कमजोर करना चाहते हैं, उन्होंने चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के साथ एक एमओयू पर हस्ताक्षर भी किए हैं और अमेरिकी अरबपति जार्ज सोरोस के साथ भी उनका नाम जुड़ा है जबकि भाजपा के झारखंड से सांसद निशिकांत दुबे ने तो यहां तक कह दिया कि देश में जितने भी भारत विरोधी आंदोलन हुए हैं, चाहे वो अग्निवीर भर्ती विरोध रहा हो, चाहे देश में जातीय जनगणना की मांग रही हो या नक्सलाइट मूवमेंट, सबके पीछे यूएस एड का हाथ है।
हकीकत यह है कि भारत में यूएस एड आज से नहीं 1961 से आ रही है, जब अमेरिकी राष्ट्रपति जॉन एफ कनेडी द्वारा शीतयुद्ध के दौरान यूएस एजेंसी फॉर डेवलपमेंट या यूएस एड की स्थापना की थी ताकि उस समय सोवियत संघ के बढ़ते प्रभाव को रोका जा सके. चाहे केंद्र में किसी भी पार्टी की सरकार रही हो, यूएस एड से आनेवाले डॉलर किसी ने नहीं ठुकराये. भारत सरकार चाहे तो बकायदा इस पर श्वेतपत्र निकाल सकती है और सांसद में जेपीसी गठित करके दूध का दूध और पानी का पानी भी कर सकती है कि कब, किस संगठन, मंत्रालय या एनजीओ को यूएस एड के जरिये सहायता मिली है?
इस सदी में ही यानी सन 2000 के बाद से अब तक हिंदुस्तान को यूएस एड से 3 बिलियन डॉलर की फंडिंग हो चुकी है. 6 मिलियन डॉलर तो कोरोना महामारी से निपटने और उसके बाद के प्रभाव से लड़ने के लिए ही भारत सरकार को मिल चुके हैं और अभी 2023 में ही भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर और अमेरिका में यूएस एड की प्रमुख सामंथा पावर के बीच मुलाकात इस एड के सिलसिले में ही हुई थी. तो डोनल्ड ट्रम्प भले इस भारत में ‘मतदान बढ़ाने के नाम पर’ रिश्वतखोरी की मदद करार दे रहे हों, लेकिन हकीकत यह है कि जब से अमेरिका ने यूएस एड की फंडिंग करनी शुरू की है, तब से अब तक भारत को करीब 14 बिलियन की मदद मिल चुकी है. जिस तरह से भाजपा और कांग्रेस दोनों एक दूसरे पर इस ऐड को लेकर हमलावर हैं, यह ऐड कब किसे मिलती रही है और उससे क्या होता रहा है? वास्तव इसे जानना बहुत आसान है।
भारत में जो भी पैसा विदेश से आता है, चाहे वह किसी भी रास्ते से आता हो, उसका बकायदा चिन्हित रूट होता है और एक-एक बात स्पष्ट होती है कि वह कहां से आया, किसको मिला और किस काम के लिए मिला. फॉरेन कंट्रीब्यूशन रेगुलेशन एक्ट एफसीआरए) की बकायदा निगरानी होती है. इसका आना बकायदा सरकार की जानकारी में होता है. इसलिए इस समय देश में अमेरिका से मिले 21 मिलियन डॉलर को लेकर जो हंगामा है, वह बिल्कुल गैरजरूरी और उन लोगों को भरमाने के लिए है जो नहीं जानते कि यह सब सहायता कैसे आती है।
भाजपा के प्रवक्ता और सांसद आश्चर्य भरे आरोप लगा रहे हैं, उन्हें ऐसे अनुमान लगाने की जरूरत नहीं है वो सरकार से कहें और सरकार एक एक तथ्य उजागर कर सकती है कि यूएस एड कब कब, किस किस वजह से आयी और किस किस संगठन, संस्थान, एनजीओ, थिंक टैक्स या प्रोजेक्ट्स के खाते में गयी. भारत सरकार चाहे तो ऐसी सहायता पाने वाली किसी भी संस्था, संगठन या थिंक टैक का पलभर में खाता फ्रीज कर दे और जिस भी तरह की जांच पड़ताल करना चाहे, सब कर ले।
आरबीआई और ईडी की जांच के जरिये भी इस तरह की धनराशि के बैंक ट्रांजेक्शन की ट्रैकिंग की जा सकती है. भारत में विदेशी फंड कुछ निश्चित खातो में ही आते हैं और इसके लिए कुछ निश्चित बैंक ही अधिकृत हैं. इसलिए इसे छुपाना या इस पर पर्दा डालना आसान नहीं है. इसके बावजूद अगर हंगामा खड़ा किया जा रहा है तो यह फूं-फां तो नासमझ लोगों पर इम्प्रेशन जमाने के लिए किया जा रहा है कि हम तो पाक साफ हैं, शक की सारी सुई सामने वाले पर है।
लेख- लोकमित्र गौतम के द्वारा