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नवभारत डेस्क: कनाडा का हिन्दू समुदाय 3 नवंबर को ब्राम्पटन में गोर रोड स्थित हिन्दूसभा मंदिर में पूजा व जश्न मनाने के लिए एकत्र हुआ था। वहीं मंदिर के सहयोग से भारतीय उच्चायोग वरिष्ठ नागरिकों (दोनों कनाडाई व भारतीयों) के लिए काउंसलर सेवाएं उपलब्ध करा रहा था। तभी वहां खालिस्तान समर्थक गुटों की भीड़ आ पहुंची और उसने अकारण ही श्रद्धालुओं, जिनमें महिलाएं व बच्चे भी थे, पर हिंसक हमला कर दिया। इस घटना के जो वीडियोज सामने आये हैं, उनमें देखा जा सकता है कि हमलावर खालिस्तानी झंडे उठाये हुए थे।
ब्राम्पटन में हिन्दू मंदिर पर हमला काउंसलर कैंप पर हमले के तौर पर देखा जा रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस घटना की कड़े शब्दों में निंदा की है, जबकि भारत सरकार ने अपने वक्तव्य में कहा है कि भारतीय काउंसलर अधिकारी जो भारतीय व कनाडाई नागरिकों को सेवाएं उपलब्ध करा रहे हैं, वह धमकी, उत्पीड़न व हिंसा के डर से पीछे हटने वाले नहीं हैं।
कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने भी इस अवसर पर हिंसा को ‘अस्वीकार्य’ कहा है। ट्रूडो ने अपने बयान में न तो खालिस्तानी तत्वों का ज़िक्र किया और न ही उनकी निंदा की। इससे एक आशंका यह उभरती है कि कहीं पर्दे के पीछे खालिस्तानियों को उकसाने में कनाडा और अमेरिका तो नहीं हैं? भारत की दो टूक से दोनो को बहुत परेशानी है।
हाल के वर्षों में ऐसी अनेक घटनाएं हुई हैं। विंडसर में एक हिन्दू मंदिर पर भारत विरोधी नारे लिखे गए थे। इसी तरह से मिस्सिस्सौगा व ब्राम्पटन में मंदिरों को टारगेट किया गया था। पिछले साल दिसम्बर में सर्रे में लक्ष्मी नारायण मंदिर के अध्यक्ष सतीश कुमार के बेटे के घर पर गोलियां चलायी गईं थीं।
खालिस्तानी तत्वों ने हाल के वर्षों में इसी तरह से ऑस्ट्रेलिया में भी हिन्दू मंदिरों को निशाना बनाया है। कनाडा में भारतीय डिप्लोमेट्स और खालिस्तानियों के बीच टकराव लम्बे समय से चल रहा है, जो पिछले साल वैंकोवर में खालिस्तान समर्थक हरदीप सिंह निज्जर की हत्या के बाद अधिक तीव्र हो गया है। निज्जर की हत्या के लिए जस्टिन ट्रूडो भारतीय एजेंट्स को ज़िम्मेदार ठहराते हैं, लेकिन उन्होंने अभी तक कोई ठोस साक्ष्य उपलब्ध नहीं कराए हैं।
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इस विवाद के चलते भारत ने अपने उच्चायुक्त व अन्य राजनयिकों को वापस बुला लिया था और कनाडा के डिप्लोमेट्स को वापस जाने का आदेश दिया था। भारत व कनाडा के व्यापार संबंध भी इस कारण से खराब हुए हैं। सवाल यह है कि क्या यह हमला पूर्वनियोजित था?
शायद! सिख फॉर जस्टिस से संबंधित खालिस्तानी समर्थक गुरपतवंत सिंह पन्नु, जिसके पास अमेरिका व कनाडा की दोहरी नागरिकता है, ने हिन्दुओं को दिवाली न मनाने की धमकी दी थी कि मंदिरों पर हंगामा किया जायेगा। पन्नु को दोनों अमेरिका व कनाडा सरकारों का संरक्षण प्राप्त है। पिछले साल उसने एक वीडियो रिलीज़ किया था, जिसमें कनाडा के हिन्दुओं से कहा गया था ‘गो बैक टू इंडिया’।
पन्नु अपनी बेतुकी बयानबाज़ी से कनाडा में हिन्दुओं के खिलाफ नफरत फैला रहा है। अमेरिकन एजेंसीज ने भारत के पूर्व इंटेलिजेंस अधिकारी पर आरोप लगाया है कि उसने पन्नु की हत्या करने की साज़िश रची थी। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की दुहाई देते हुए दोनों अमेरिका व कनाडा ने पन्नु को भारत व हिन्दुओं के खिलाफ धमकियां जारी करने की खुली छूट दी हुई है, जबकि वह एयरलाइंस व भारतीय संसद को बम से उड़ाने की धमकी देता है।
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हिंसा की धमकी देना व हिंसा के लिए उकसाना अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में कैसे आ सकता है? पन्नु, जिसे भारत ने आतंकवादी घोषित किया हुआ है, विभिन्न देशों में तथाकथित खालिस्तानी जनमत संग्रह आयोजित कराता है। कनाडा के सांसद आर्य चन्द्रा का कहना है कि खालिस्तानियों ने कनाडाई पुलिस में घुसपैठ कर ली है।
उनका कहना है कि कनाडाई पुलिस हिन्दुओं से भेदभाव करती है और हिंसक खालिस्तानी प्रदर्शनकारियों से नरमी से पेश आती है। आर्य की बात सही भी हो सकती है। हिन्दूसभा मंदिर में हिंसा के बाद के एक वीडियो में देखा जा सकता है कि पुलिस ने एक हिन्दू युवक को पिन डाउन करने के बाद हथकड़ी लगाई। ब्राम्पटन की घटना पूर्णतः निंदनीय है। यह एक समुदाय विशेष के खिलाफ नफ़रत फैलाने का एजेंडा है जिस पर तुरंत विराम लगना चाहिए।
लेख- नरेंद्र शर्मा द्वारा