(डिजाइन फोटो)
नवभारत डेक्स: पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘‘निशानेबाज, न्याय की देवी इतने वर्षों से आंखों पर पट्टी बांध कर गांधारी बनी हुई थी लेकिन सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस ने उसकी आंखों की पट्टी हटाकर उसका पूरी तरह मेकओवर कर दिया। उसके हाथ में तलवार की जगह संविधान है। वह साड़ी पहने और मुकुट धारण किए हुए है। दाहिने हाथ में पहले के समान न्याय का तराजू है। इस नई प्रतिमा को लेकर बार एसोसिएशन ने आपत्ति जताई है कि यह परिवर्तन करते समय उसकी राय नहीं ली गई।’’
हमने कहा, ‘‘अच्छा काम झटपट करना चाहिए। इसमें राय लेने की क्या जरूरत है! आजादी के बाद से इतने चीफ जस्टिस हुए लेकिन यह आदर्श कदम आखिर न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने उठाया जिसकी सराहना की जानी चाहिए।’’
पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, आंख पर काली पट्टी बंधी रहने का अर्थ यह था कि न्याय की देवी के लिए सभी समान हैं चाहे वह अमीर-गरीब, राजा-रंक कोई भी हों। वह समान भाव से न्याय करती थी। यह रोमन काल की जस्टिसिया देवी की मूर्ति थी। वैसे इस मूर्ति की आंखों पर पट्टी बांधने की प्रथा 16वीं सदी में शुरू हुई।’’
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हमने कहा, आंखों पर पट्टी बांधने से नुकसान ही होता है। गांधार (अफगानिस्तान) की राजकुमारी गांधारी का जब जन्म से अंधे धृतराष्ट्र से विवाह हुआ तो गांधारी ने भी आंखों पर पट्टी बांध ली। जब माता-पिता दोनों नहीं देख सकते थे तो कौरव अन्यायी, अत्याचारी, घमंडी और उच्छृंखल हो गए। उनकी अनीतियों की वजह से ही महाभारत हुआ जिसमें समूचा कौरव वंश समाप्त हो गया। अश्वत्थामा और कृपाचार्य को छोड़कर कौरवों के मित्र व सहयोगी भी जीवित नहीं बचे। यदि गांधारी आंखों पर पट्टी नहीं बांधती तो अपने 100 पुत्रों को अच्छे संस्कार देकर बिगड़ने से बचा सकती थी।’’
पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, गांधारी का तो पता नहीं लेकिन आज की राजनीति में पुत्र या पुत्री मोह में डूबे कितने ही धृतराष्ट्र मिल जाएंगे।’’ हमने कहा, ‘‘गांधारी और धृतराष्ट्र की चर्चा छोड़कर महाराष्ट्र के चुनाव पर ध्यान दीजिए। यह भी किसी महाभारत से कम नहीं है।’’
लेख- चंद्रमोहन द्विवेदी द्वारा