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नवभारत डिजिटल डेस्क: आखिरकार 21 माह की हिंसा के बाद मणिपुर के मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया. राज्यपाल ने उनका इस्तीफा स्वीकार करते हुए उनसे वैकल्पिक व्यवस्था होने तक पद पर बने रहने के लिए कहा है. विधानसभा को स्थगित कर दिया गया है. मणिपुर में हिंसा 3 मई 2023 से चल रही है, जिसमें अभी तक 250 से अधिक लोग मारे जा चुके हैं, हजारों की संख्या में लोग घायल हुए हैं और करोड़ों की सम्पत्ति जलकर राख हो गई है।
बलात्कार व अन्य यौन हिंसा की भी अनगिनत वारदातें हुई हैं. बीरेन सिंह हिंसा को रोकने में नाकाम रहे हैं. विपक्ष लम्बे समय से उनके इस्तीफे की मांग कर रहा था, लेकिन केंद्र सरकार ने उन पर अपना विश्वास बनाये रखा और वह पद पर बने रहे. इसलिए सवाल है कि अब उन्होंने त्यागपत्र क्यों दिया? इसके अनेक प्रमुख कारण हैं।
हजारों हथियार लूटे गए:
मणिपुर में जब से हिंसा शुरू हुई है, तब से 5,000 से अधिक हथियारों की लूट का अनुमान है. वैसे इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि पड़ोसी म्यांमार की स्थिति ने भी बीरेन सिंह के इस्तीफे में कोई भूमिका अदा की होगी. विद्रोही अरकान आर्मी ने हाल के महीनों में लगभग पूरे रखीन राज्य पर कब्जा कर लिया है. इससे दिल्ली को एहसास हुआ होगा कि अब म्यांमार जुटा पर सीमा को सुरक्षित रखने का भरोसा नहीं किया जा सकता और न ही मणिपुर व मिजोरम में मिलिटेंट्स व हथियारों को आने से जुटा रोक पायेगीइसलिए बीरेन सिंह को जाना ही था।
मणिपुर में 3 मई 2023 को हिंसा इस धारणा के चलते भड़की थी कि गैर-आदिवासी मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिया जा रहा है, जिसके विरोध में आल ट्राइबल स्टूडेंट्स यूनियन मणिपुर (एटीएसयूएम) ने आदिवासी एकता मार्च का आयोजन किया था।
मणिपुर में जब हिंसा शुरू के हुई तो कानून व्यवस्था को पुनः स्थापित करने की मुख्य जिम्मेदारी बीरेन सिंह पर ही थी. लेकिन है उनके सार्वजनिक आचरण ने स्थिति को बदतर कर दिया. बीरेन सिंह का इस्तीफा मणिपुर संकट के समाधान के लिए मार्ग प्रशस्त करता है. लेकिन जो देरी हुई है उससे रास्ता कठिन अवश्य हो गया है. इस समय राज्य के कुकी व मैतेई समुदायों के बीच पूर्ण अलगाव है. दोनों पक्षों ने खुद को हथियारों से लैस किया हुआ है. राजनीतिक,समाधान का अर्थ बहुत बड़ा समझौता होगा. मैतेई राज्य के विभाजन को स्वीकार नहीं करेंगे, जबकि कुकी निश्चितरूप से अधिक स्वायतत्ता के लिए दबाव बनायेंगे. दिल्ली को समझौता कराने के लिए बहुत होशियारी से फूंक- फूंककर कदम रखना होगा।
इससे एक महत्वपूर्ण बिंदु उभरता है कि दोनों पक्षों से हथियार लेने होंगे. दोनों कुकी व मैतेई गैंगों ने मणिपुर में सुरक्षा बलों की शस्त्रगाह पर धावा बोलकर हथियार लूटे हैं. इसके अतिरिक्त मणिपुर पुलिस पर आरोप है कि उसने पक्षपात से काम लिया. जब तक लूटे गए हथियार वापस नहीं लिए जाते हैं और मणिपुर पुलिस को सुधारा नहीं जाता है, तब तक वार्ता व समझौता प्रयासों के नतीजे सकारात्मक निकलना कठिन है. जिस तरह से पूर्व गृह सचिव अजय भल्ला को दिसम्बर 2024 में मणिपुर का राज्यपाल नियुक्त किया गया, उससे यही प्रतीत होता है कि कुछ समय के लिए मणिपुर में केंद्र का ही शासन रहेगा।
हिंसा में सीएम की भूमिका का आरोप
पहली बात तो यह है कि मणिपुर राज्य बीजेपी के भीतर ही बीरेन सिंह का विरोध निरंतर बढ़ता जा रहा था और नेतृत्व परिवर्तन की मांग तीव्र हो गई थी. विपक्ष बीरेन सिंह के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने वाला था और सुगबुगाहट यह थी कि बीजेपी के ही विधायक बीरेन सिंह की सरकार गिरा देते. इस आशंकित शर्मनाक स्थिति से बचने के लिए बेहतर समझा गया कि बीरेन सिंह इस्तीफा दे दें और विधानसभा को स्थगित कर दिया जाये। दूसरा यह कि एक नया विवाद खड़ा हो गया है. जो ऑडियो क्लिप्स लीक हुई थीं, जिनसे देशज हिंसा में बीरेन सिंह की तथाकथित भूमिका जाहिर होती है. उनकी विश्वसनीयता से संबंधित फोरेंसिक रिपोर्ट को सुप्रीम कोर्ट ने सील बंद लिफाफे में मांगा है।
इन टेप्स में बीरेन सिंह की तथाकथित वार्ता है, जिसमें वह सुझाव दे रहे हैं कि मैतेई समूहों को राज्य सरकार से हथियार व गोला बारूद लूटने दिया जाये. गौरतलब है कि मणिपुर में हथियारों की लूट अभी तक जारी है. 8 फरवरी 2025 की रात को भी मणिपुर के यौबल जिले में इंडिया रिजर्व बटालियन (आईआरबी) की आउटपोस्ट से 6 एसएलआर, 3 एके सीरीज राइफल्स और बड़ी मात्रा में गोलियां अज्ञात लोगों ने लूटीं।
लेख- डॉ. अनिता राठौर के द्वारा