
प्रतीकात्मक तस्वीर ( सोर्स : सोशल मीडिया )
Navbharat Digital Desk: ड़ोसी ने हमसे कहा, ‘निशानेबाज, जमाना कितना निष्ठुर हो गया है। कोई माया-ममता रह ही नहीं गई। जनजीवन से लेकर राजनीति तक यही हाल है। ऐसा लगता है कि यह वक्त की बदली चाल है जिसने कुछ नेताओं को बेहाल कर दिया है।’ हमने कहा, ‘यह बात सही है कि यूपी में मायावती बुरी तरह मात खा चुकी हैं।
योगी आदित्यनाथ के योग बल से बसपा की माया का सफाया हो गया। सपा की ताकत भी कमजोर हो गई। जिस प्रदेश से कांग्रेस ने अनेक प्रधानमंत्री दिए उस पार्टी का कचूमर निकल चुका है।
आपको ‘म’ अक्षर से इतना प्रेम है तो अपनी मानसिकता बदलकर माया-ममता की बजाय मोदी का नाम लीजिए। महामहिम राष्ट्रपति का नाम भी मुर्मू है।’ पड़ोसी ने कहा, एसआईआर या ‘सर’ के असर से वोटरों के नाम काटे-छांटे जा रहे हैं।
इससे विपक्षी पार्टियां नाराज हैं लेकिन साथ ही योगी आदित्यनाथ ने भी कहा कि उत्तरप्रदेश में मतदाता सूची के गहन पुनरीक्षण या ‘सर’ से बीजेपी के वोट भी काटे जा रहे हैं, जिससे 2027 के विधानसभा चुनाव चुनाव में पार्टी को नुकसान हो सकता है।’ हमने कहा, ‘जहां जिसकी सत्ता है, वह पार्टी अफसरशाही पर पूरा कंट्रोल रखती है, जो उसे चुनाव जीतने में सहायता करती है।
इसलिए योगी को फिक्र करने की आवश्यकता नहीं है। यूपी में हिंदुत्व का कार्ड काम करता है।’ हमने कहा, ‘बीजेपी के अश्वमेध का घोड़ा अब 2026 में होने वाले बंगाल और तमिलनाडु विधानसभा चुनाव की ओर जाएगा।’ पड़ोसी ने कहा, ‘निशानेबाज, यह इतना आसान नहीं है।
तमिलनाडु में डीएमके का वर्चस्व है। जयललिता के निधन के बाद उनकी पार्टी एआईएडीएमके कमजोर हो चुकी है। बीजेपी वहां कैसे कदम जमाएगी?’ हमने कहा, ‘प्रधानमंत्री ने तमिलों का मन जीतने के लिए तमिल संगमम का आयोजन करवाया।
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चोल राजाओं का राजदंड ‘संगोल’ लाकर संसद में स्थापित किया। यदि किस्मत ने साथ दिया तो बीजेपी तमिलनाडु में लुंगी डान्स करेगी। जहां तक बंगाल का मामला है, वहां ममता से मुकाबला रोमांचक होगा।’
लेख-चंद्रमोहन द्विवेदी के द्वारा






