गरीबी व भूख मानवाधिकारों का है उल्लंघन (सौ. डिजाइन फोटो)
नवभारत डिजिटल डेस्क: 17 अक्टूबर 1987 को पेरिस के ट्रोकैडरो में 1,00,000 से अधिक लोग एकत्र हुए थे।गरीबी, हिंसा व भूख के पीड़तिों का सम्मान करने के लिए और इस तथ्य पर बल देने की गरीबी वास्तव में मानवाधिकारों का उल्लंघन है।संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 22 दिसंबर 1992 को आधिकारिक तौर पर तय किया कि हर साल 17 अक्टूबर को विश्व गरीबी उन्मूलन दिवस मनाया जाएगा, जिसका आधिकारिक नाम ‘गरीबी उन्मूलन के लिए अंतरराष्ट्रीय दिवस’ है।गरीबी का अर्थ केवल आय का कम होना या अभाव ही नहीं है, बल्कि बुनियादी क्षमताओं का न होना, दैनिक जीवन की जरूरतों का पूरा न होना, न्याय के लिए अदालत में दस्तक न दे पाना, राजनीतिक सत्ता में कोई भागीदारी न होना आदि भी गरीबी ही है।
इस दिवस का उद्देश्य गरीबी के प्रति समाज को जागरूक करने के अतिरिक्त उन लोगों की कोशिशों को हाईलाइट भी करना है, जो गरीबी के विरुद्ध लड़ रहे हैं।इस दिवस के लिए हर साल एक नए थीम का चयन किया जाता है, जैसे असमता, समता, मानवाधिकार, सामाजिक न्याय आदि।वर्ष 2025 के लिए यह थीम है- ‘सामाजिक और संस्थागत दुर्व्यवहार को समाप्त करना गरीबी में रहने वाले परिवारों के लिए सम्मान और प्रभावी सहायता सुनिश्चित करना’।यह अंतरराष्ट्रीय दिवस गरीबी में रहने वाले लोगों को सामने आने, अपनी आवाज उठाने एक महत्वपूर्ण अवसर प्रदान करता है।गरीबी में रहने वाले लोग इसलिए भी सशक्त होते हैं, क्योंकि यह अंतरराष्ट्रीय दिवस सामुदायिक विकास कार्यक्रमों में उनकी भागीदारी और सहभागिता के माध्यम से उन्हें समुदाय में अपनेपन का एहसास दिलाता है।
यह सही है कि 17 अक्टूबर, गरीबी उन्मूलन का अंतरराष्ट्रीय दिवस, समझ और एकजुटता का दिन है।सवाल यह है कि इसके बावजूद गरीबी क्यों बनी रहती है और माता-पिता द्वारा किए गए सभी प्रयासों के बावजूद, उनके बच्चे उसी अभाव का अनुभव क्यों करते हैं? दरअसल, हमें गरीबी के छुपे हुए आयामों को उजागर करना आवश्यक है।गरीबी ग्लोबल महामारी है, जो दुनियाभर में करोड़ों लोगों को प्रभावित करती है।कुछ हद तक दोष गरीबी में रह रहे लोगों का भी है, जो सामाजिक व आर्थिक भेदभाव को अपनी किस्मत मानकर संतोष करके बैठ जाते हैं और गरीबी के दलदल से निकलने का प्रयास ही नहीं करते हैं।ग्लोबल गरीबी उन्मूलन के लिए यह भी आवश्यक है कि सरकारें अपनी संस्थाओं व व्यवस्थाओं को वह आकार साकार दें, जिसमें लोगों को प्राथमिकता दी जाए।उचित कामों में निवेश को को वरीयता दी जाए, जिनमें सीखने व सामाजिक सुरक्षा के ऐसे अवसर हों, जो गरीबी से निकलने की सीढ़ी प्रदान करते हों।एक सभ्य समाज वही होता है, जिसमें कोई पीछे न रह जाए और यह तभी मुमकिन है, जब गरीबी का उन्मूलन हो जाएगा.
शिक्षा व स्किल्स का अभाव (जिसकी वजह से लोगों को अर्थपूर्ण रोजगार नहीं मिलता और वह अर्थव्यवस्था में योगदान नहीं कर पाते), बेरोजगारी (अपर्याप्त जॉब अवसर से आय में कमी आती है और रोटी, कपड़ा, मकान व हेल्थकेयर का मिलना मुश्किल हो जाता है), भ्रष्टाचार व कुशासन (भ्रष्ट प्रथाएं व अप्रभावी सरकारी नीतियां संसाधनों के वितरण में बाधाएं उत्पन्न करती हैं और गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम प्रभावी ढंग से लागू नहीं हो पाते), संसाधनों का असमान वितरण (सामाजिक व आर्थिक असमता, असमान संसाधनों व अवसरों का वितरण गरीबी के मुख्य कारण हैं), स्वास्थ्य मुद्दे (अच्छे व सस्ते हेल्थकेयर के उपलब्ध न होने से मृत्यु दर में वृद्धि होती है और क्रोनिक बीमारी व काम न करने की वजह से गरीबी बढ़ती है) और इनके अतिरिक्त प्राकृतिक आपदाएं, युद्ध, राजनीतिक अस्थिरता आदि भी सामाजिक व आर्थिक ताने-बाने को गड़बड़ा देते हैं, जिससे व्यापक गरीबी में इजाफा होता है।
ये भी पढ़ें– नवभारत विशेष के लेख पढ़ने के लिए क्लिक करें
गरीबी दूर करने के लिए बहुआयामी दृष्टिकोण अपनाने की जरूरत होती है, जैसे शिक्षा व हेल्थकेयर में अच्छा निवेश किया जाए, रोजगार के अवसर बढ़ाए जाएं, शासन बेहतर किया जाए व भ्रष्टाचार को कम किया जाए, संसाधनों, अवसरों आदि के जरिए कमजोर वर्गों का सशक्तिकरण किया जाए।इंफ्रास्ट्रक्चर विकसित किया जाए और ग्रामीण विकास को प्रोत्साहित किया जाए.
लेख- नरेंद्र शर्मा के द्वारा