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नवभारत डेस्क: केंद्र सरकार एमएसएमई (सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम मंत्रालय) सेक्टर को भारतीय अर्थव्यवस्था का आधार बनाने की बात कर रही है, इसीलिए इस बार के बजट में सरकार ने एमएसएमई सेक्टर के लिए कई प्रोत्साहनों और स्कीमों की घोषणा की है। अगर गहराई से देखें तो एमएसएमई की राहें अभी भी आसान नहीं है। औद्योगिक प्लॉट, पूंजी, तकनीक, मशीनरी, प्रशिक्षण, कच्चे माल की आपूर्ति, बिजली, परिवहन, मार्केट आर्डर तथा विदेशी उद्योग से मिलने वाली प्रतिस्पर्धा ये तमाम बाधाएं किसी भी छोटे कारोबारी के लिए बड़े कारोबारी से ज्यादा कठिन होती हैं। देश के अनेक छोटे उद्यमी कुछ वर्षों तक व्यवसाय करने के बाद इन बाधाओं के आगे घुटने टेक देते हैं।
देश की बहुत बड़ी आबादी में युवाओं की करीब दो तिहाई हिस्सेदारी है। बेरोजगारों को कौशल विकास व इंटर्नशिप प्रदान कर निजी क्षेत्र को रोजगार देने के लिए प्रोत्साहित करने में इनकी भूमिका बड़ी मानी जा रही है। लघु मध्यम उद्योग को लेकर हो रहे विमर्श में अब कई नये पहलू जुड़ गए हैं। मसलन स्वरोजगार, स्टार्ट अप, कौशल विकास, सहकारी क्षेत्र उद्यमी, खाद्य प्रसंस्करण, रुफ टौप सोलर पैनल, हथकरघा, स्व-सहायता समूह व लखपति दीदी, आदिवासी ग्राम विकास योजना, पीएम विश्वकर्मा, आवास विकास योजना इत्यादि कई शब्दावलियां, स्कीमें व वित्तीय योजना एमएसएमई में समाहित कर दी गई है।
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सरकार द्वारा एमएसएमई का दायरा काफी विस्तृत कर दिया गया है जैसे कि छोटे उद्योग के तहत निवेश सीमा मौजूदा 1 करोड़ से बढ़ाकर 5 करोड़, लघु उद्योग की निवेश सीमा मौजूदा 10 करोड़ से बढ़ाकर 50 करोड़ तथा मध्यम उद्योग की निवेश सीमा मौजूदा 50 करोड़ से बढ़ाकर 250 करोड़ कर दी गयी है। सेवा और विनिर्माण उद्योग को उनकी निवेश सीमा के मुताबिक पूरे तौर पर एमएसएमई के मातहत रख दिया गया है जिसकी सारी सुविधाएं इन्हें प्रदान की जायेंगी।
एमएसएमई सेक्टर को दिये गए सभी सप्लाई आर्डर का भुगतान 15 दिन तथा अधिकतम 45 दिन के अंदर करना होगा अन्यथा आर्डर देने वाले फर्म की टीडीएस कर देनदारी जब्त कर ली जाएगी। किसी मैन्यूफैक्चरिंग एमएसएमई को मशीनरी खरीदने के लिए क्रेडिट गारंटी लोन बिना किसी कोलेटरल या थर्ड पार्टी की गारंटी के प्राप्त होंगी। मुद्रा लोन योजना में दी जाने वाली अधिकतम ऋण सीमा दस लाख से बढ़ाकर बीस लाख कर दी गई है।
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राज्य सरकारों की भी अपनी संस्थाएं और स्कीमें अलग हैं। ऐसे में एमएसएमई में पंजीयन से लेकर तमाम सरकारी सहयोग व सुविधाओं का एक विंडो बनाया जाना बेहद महत्वपूर्ण है। यदि हम देश में छोटे, लघु व मध्यम उद्योग की एक पूरी तस्वीर का अवलोकन करें तो देश में पंजीकृत एमएसएमई उद्योगों की कुल संख्या 3.64 करोड़ है जिनसे करीब 16 करोड़ लोगों की आजीविका चल रही है और यह हमारी कुल श्रमशक्ति का करीब 40 फीसदी है। इनमें देश के मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र के कुल उत्पादन का 38 फीसदी तथा निर्यात क्षेत्र का 45 फीसदी योगदान है। सकल घरेलू उत्पाद में इसका कुल योगदान देखें तो यह 30 फीसदी है।
नई आर्थिक नीति के उपरांत उद्योगों में जिस इन्सपेक्टर राज का बारंबार जिक्र किया जाता था, कहीं न कहीं देश के लघु मध्यम उद्योग ही उसके ज्यादा भुक्तभोगी बनते थे। ये स्थिति अभी भी पूरे तौर पर समाप्त नहीं हुई है। आज भी अनेकानेक सेवा उद्योग में अलग-अलग एजेंसियों की रूलिंग व दिशा निर्देशों की भरमार कायम हैं, बहुस्तरीय लाइसेंसिंग प्रणाली मौजूद है और इंसपेक्टर राज के साथ स्थानीय पुलिस की हफ्तावसूली भी बदस्तूर कायम है।
जब सरकार ने रियल इस्टेट क्षेत्र को लेकर ये स्पष्ट आदेश दिया है कि इसमें पुलिस की दखलंदाजी निषिद्ध होगी तब जाकर यह क्षेत्र उत्पीड़न से बचा। पिछले तीन दशक में लघु मध्यम उद्योग पहली बार सरकार की प्राथमिकता में अपनी महत्ता हासिल कर रहे है। उम्मीद है कि इस बार की बजट घोषणा में एमएसएमई सेक्टर को लेकर की गईं नई कानूनी व नीतिगत पहल भारत की अर्थव्यवस्था में इसे एक नया स्वरूप प्रदान करने में मददगार साबित होगी।