(डिजाइन फोटो)
पड़ोसी ने हमसे कहा, “निशानेबाज, क्या आप ऐसे काल्पनिक या अस्तित्वहीन गांव की कल्पना कर सकते हैं जिसके विकास के नाम पर 58,00,000 रुपए की रकम सरकारी खजाने से निकाली गई! ऐसा गोरखधंधा तमिलनाडु में हुआ। मिलीभगत से यह फ्राड किया। उन्होंने राजधानी चेन्नई की सीमा पर स्थित कीरापक्कम पंचायत के सभापति, उपसभापति और पंचायत सहायक ने खनन गतिविधियों से प्रभावित गांव के पुनर्वास के नाम पर खनन संसाधन कोष से यह रकम निकाली लेकिन न तो गांव का अस्तित्व था, न उसके विकास का! उसे आप भूतिया गांव या फैटम विलेज कह सकते हैं।”
हमने कहा, “धूर्त और बेईमान लोग जो न करें वो थोड़ा! ऐसे भ्रष्टाचारी हमेशा मौके की ताक में रहते हैं कि सरकारी फंड पर कैसे हाथ मारा जाए। कितने ही घोटालों का लंबे समय तक पर्दाफाश भी नहीं हो पाता। ऐसे में लोग चिढ़कर बोलते हैं- कैसा मेरा हिंदुस्तान, 10 में 9 बेईमान !”
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पड़ोसी ने कहा, “निशानेबाज, उस काल्पनिक गांव में स्ट्रीटलाइट और पेयजल के लिए नल लगाने के नाम पर बोगस बिल पास कराए गए। बगैर जांच पड़ताल के चेक जारी किए गए। जब कुछ वर्ष बाद स्पेशल ऑडिट हुआ तब इस घोटाले का पता चला। इस मामले में कलेक्टर ने ‘दिल्लीबाबू’ नाम के पंचायत असिस्टेंट को निलंबित कर दिया। इस तरह के काम के लिए न तो पंचायत में प्रस्ताव पास हुआ था न तकनीकी मंजूरी हासिल की गई थी। जांच में पता चला कि ऐसा कोई गांव ही नहीं था फिर भी उसके नाम पर पैसे की बंदरबांट हो गई।”
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हमने कहा, “कुछ वर्ष पूर्व एक मराठी फिल्म आई थी जिसमें एक किसान उसे बार-बार मिल रहे नोटिस और अधिकारियों के दबाव से परेशान होकर पुलिस में शिकायत दर्ज कराता है कि उसका कुआं चोरी हो गया। इससे सभी चकरा जाते हैं हैं कि कुआं कैसे चुराया जा सकता है! सरकारी रिकार्ड में बताया गया था उसके खेत में कुआं खोदा गया और उसका खर्च मांगा जा रहा था। वास्तव में वहां कुआं था ही नहीं। कुआं खोदने के नाम पर अधिकारियों ने भ्रष्टाचार किया था। सारे दस्तावेज तैयार थे जिनमें खेत का नक्शा, कुएं की लोकेशन, खुदाई व निर्माण का निरीक्षण, मजदूरों को भुगतान, काम पूरा हो जाने की रिपोर्ट की फाइल तैयार थी। कुआं था लेकिन सिर्फ कागज पर !”