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आज का विशेष: चुनावी खैरात पर सुप्रीम कोर्ट का सख्त रुख, मुफ्त की सुविधाओं पर किया तीखा प्रहार

फ्रीबीज के चुनावी वादों से होने वाले नुकसान का उल्लेख रहे हुए जस्टिस गवई ने कहा कि वह खुद किसान परिवार से हैं चुनाव से पहले घोषित होनेवाली मुफ्त की योजनाओं जैसे कि लड़की बहिण व अन्य की वजह से लोग काम करने को तैयार नहीं।

  • By दीपिका पाल
Updated On: Feb 14, 2025 | 04:10 PM

चुनावी खैरात पर सुप्रीम कोर्ट का रूख (सौ.डिजाइन फोटो))

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नवभारत डिजिटल डेस्क: चुनाव के पहले मुफ्त दी जाने वाली सुविधाओं को लेकर सुप्रीम कोर्ट का यह सवाल तीखा और संयुक्तिक है कि राष्ट्रीय विकास के लिए लोगों को मुख्य धारा में लाने की बजाय क्या हम परजीवियों का एक वर्ग नहीं बना रहे हैं? जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस एजी मसीह की पीठ ने साफ शब्दों में कहा कि लोग मुफ्त सुविधाओं के चलते काम नहीं करना चाहते. फ्रीबीज के चुनावी वादों से होने वाले नुकसान का उल्लेख रहे हुए जस्टिस गवई ने कहा कि वह खुद किसान परिवार से हैं चुनाव से पहले घोषित होनेवाली मुफ्त की योजनाओं जैसे कि लड़की बहिण व अन्य की वजह से लोग काम करने को तैयार नहीं है, किसानों को कृषि कार्य के लिए मजदूर नहीं मिल रहे हैं।

हर कहीं मुफ्तखोरी का कल्चर

सभी राजनीतिक दल चुनाव जीतने के उद्देश्य से कल्याणकारी योजना के नाम पर धन और सुविधाएं खैरात में देने में प्रतिस्पर्धा करते देखे गए हैं. कई वर्षों से किसानों का बिजली बिल माफ करने या कर्जवसूली स्थगित करने जैसी घोषणाएं होती आ रही थीं. इस वजह से बिल भरने या कर्ज लौटाने में सक्षम किसान भी समझ गए कि रकम भरना फिजूल है क्योंकि चुनाव निकट आते ही कर्ज माफी का एलान हो जाएगा. महाराष्ट्र, कर्नाटक, तेलंगाना, आंध्रप्रदेश, राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, ओडिश, हरियाणा जैसे राज्यों ने चुनावी वादों पर दिल खोलकर खर्च किया. इसमें जीडीपी की 1.1 प्रतिशत से लेकर 2.2 प्रतिशत तक रकम खर्च की गई. चाहे राज्य का खजाना खाली होने लगे या उनका कर्ज का बोझ बढ़ जाए वह फ्रीबीज देता ही रहता है, यदि नहीं देता तो उसका राजनीतिक नुकसान उठाना पड़ सकता है।

दक्षिण से शुरु हुआ सिलसिला

तमिलनाडु में एम करुणानिधि और जयललिता के समय से चुनाव जीतने के लिए जनता को गिप्ट देने की प्रतिस्पर्धा चला करती थी. तब मुफ्त टीवी, वाशिंग मशन, साइकिल देने का वादा किया जाता था. डीएमके और एआईएडीएमके दोनों के बीच लगी होड़ में जयललिता अपनी अम्मा कैटीन, अम्मा लैपटाप, अम्मा फार्मेसी, क्रेडल किट जैसी योजनाओं से भारी पड़ती देखी जाती थीं. जयललिता ने डिग्री पूरी करनेवाली युवतियों को 50,000 रुपए नकद और शादी के लिए स्वर्ण देने की घोषणा भी की थी. छत्तीसगढ़ में बीजेपी के तत्कालीन मुख्यमंत्री रमनसिंह ने मुफ्त चावल देने की योजना शुरू की तो वहां के मजदूरों ने काम करने के लिए महाराष्ट्र आना बंद कर दिया था।

वे मुफ्त मिलनेवाला आधा राशन खुद के लिए रखते और आधा बेचकर नकद पैसे जुटा लिया करते थे इस तरह की योजनाओं से निठल्लापन बढ़ता है और लोग अकर्मण्य या आलसी हो जाते हैं. केवल कुछ ही गरीब अपने भविष्य के बारे में सोचते हैं, आज पेट भर जाए तो कल की चिंता क्यों करें जैसा उनका रवैया रहता है।

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एक बार लगी आदत छूटती नहीं

देश में 80 करोड़ लोगों को केंद्र सरकार मुफ्त अनाज दे रही है. जब तक अनाज सरप्लस में है यह योजना चल सकती है और किसी वर्ष बरसात न होने पर मौसम की खराबी से फसल नहीं हुई तो यह योजना कैसे जारी रहेगी. यदि अनाज दिया जा रहा है तो लोगों से काम भी लिया जाए, सड़क निर्माण, कुआं, तालाब खुदाई, नहर निर्माण का काम ऐसे लोगों से कराया जा सकता है. वोट लेने के लिए हिल्याहियों की जांच पड़ताल किए बगैर ही मुफ्तखोरी की योजनाएं लागू कर दी जाती हैं. लाड़की बहिण योजना में वही हुआ. कई किस्तों में रकम देने के बाद अब अपात्रों के नाम काटे जा रहे हैं. जिनके घर में फोर व्हीलर है ऐसी महिलाएं भी मुफ्त की रकम पाने के लिए लाड़की बहिण बन गई. इससे महाराष्ट्र सरकार की तिजोरी खाली हो रही है लेकिन मुद्दा राजनीतिक बन गया है. शरद पत्थर की एक के महाराष्ट्र प्रदेश अध्यक्ष जयंत पाटिल को सरकार चुनौती दी कि आपने योजना के नाम पर बहनों का वोट लिया अब देखता हूं कि योजना कैसे बंद करते हो।

लेख- चंद्रमोहन द्विवेदी के द्वारा

Supreme court takes tough stand on election donations

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Published On: Feb 14, 2025 | 04:10 PM

Topics:  

  • Elections
  • Supreme Court

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