
सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) का यह फैसला निश्चित रूप से स्वागतयोग्य है कि किसी भी महिला को नौकरी से केवल इस कारण से नहीं निकाला जा सकता कि उसने शादी कर ली है। हालांकि शादी करना या न करना इंसान की अपनी मर्जी पर निर्भर करता है, लेकिन किसी भी बालिग व्यक्ति को ऐसे नियम व कानून बनाकर शादी करने से नहीं रोका जा सकता कि अगर वह शादी करेगा तो उसे नौकरी से निकाल दिया जाएगा या उसे सरकारी सुविधाओं से वंचित कर दिया जाएगा। किसी महिला को विवाह कर लेने की वजह से नौकरी से हटा देना लैंगिक भेदभाव है।
लेफ्टिनेंट सेलिना जॉन मिलिट्री नर्सिंग सर्विस में स्थायी कमीशंड ऑफिसर थीं, जॉब पर रहते हुए उन्होंने शादी कर लो और ऐसा करने के लिए उन्हें 1977 के सेना अनुदेश नंबर 61 ‘सैन्य नर्सिंग सेवा में स्थायी कमीशन प्रदान करने के नियम व शर्तें’ के तहत 1988 में नौकरी से निकाल दिया गया। वह अपनी बर्खास्तगी के विरुद्ध अदालत में चली गई। मुकदमे के दौरान ही 1995 में इस बेतुके नियम नंबर-61 को वापस ले लिया गया था। सशस्त्र बल ट्रिब्यूनल ने सेलिना जॉन की बहाली का आदेश भी दिया था, जिसे केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी और उन्हें वापस नौकरी पर नहीं लिया गया।
अब 20 फरवरी 2024 को सुप्रीम कोर्ट ने एक अति महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि जो भी कानून महिला कर्मचारियों और उनकी घरेलू जिम्मेदारियों को उन्हें नौकरी से निकालने का आधार बनाता है, वह असंवैधानिक है। साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को आदेश दिया है कि वह सेलिना जॉन को एकमुश्त सेटलमेंट के तौर पर 60 लाख रुपये दे, क्योंकि उन्हें नौकरी से गलत व अबैध रूप से निकाला गया था। अब सेलिना जॉन की आयु सेना में नौकरी करने की नहीं है, इसलिए अदालत ने उन्हें नौकरी पर वापस भेजने की बजाय एकमुश्त सेटलमेंट को वरीयता दी।
न्यायाधीश संजीव खन्ना और न्यायाधीश दीपांकर दत्ता की खंडपीठ ने कहा कि ऐसा नियम मनमाना है। किसी महिला को शादी करने की वजह से नौकरी से निकाला जाना लिंग भेदभाव व असमानता का मामला है। ऐसे पितृसत्तात्मक नियम को स्वीकार करना मानव सम्मान, गैर-भेदभाव अधिकार और उचित व्यवहार को नष्ट करना होगा। लिंग-आधारित भेदभाव वाले नियम-कानून संवैधानिक तौर पर अनुचित हैं। संबंधित मामले में सेलिना जॉन का 1982 में मिलिट्री नर्सिंग सर्विस के नियमों के अनुरूप चयन हुआ था और उन्होंने आर्मी हॉस्पिटल, दिल्ली में टेनी के तौर पर अपनी नौकरी शुरू की।
उन्हें 1985 में कमीशन प्रदान की गई और उन्होंने लेफ्टिनेंट की रैंक के साथ मिलिट्री हॉस्पिटल, सिकंदराबाद ज्वाइन किया। 1988 में एक सैन्य अधिकारी से उन्होंने शादी कर ली, इस कारण 27 अगस्त 1988 के आदेश के तहत उन्हें सेना से रिलीज कर दिया गया। जवकि वह लेफ्टिनेंट की रैंक पर काम कर रही थीं और उन्हें अपनी बातकहने का अवसर दिए बिना नौकरी से निकाल दिया गया। अपनी बखर्खास्तगी के विरुद्ध सेलिना जॉन ने इलाहाबाद हाई कोर्ट में याचिका दाखिल की।
न्यायाधीश संजीव खन्ना और न्यायाधीश दीपांकर दत्ता की खंडपीठ ने कहा कि ऐसा नियम मनमाना है। किसी महिला को शादी करने की वजह से नौकरी से निकाला जाना लिंग भेदभाव व असमानता का मामला है।






