(डिजाइन फोटो)
प्रधानमंत्री मोदी का यह कथन कि भारत अपने यहां अनेक सिंगापुर बनाना चाहता है, अतिशयोक्ति नहीं बल्कि चौतरफा विकास की भारत की आकांक्षा और क्षमता को दर्शाता है। अपनी सिंगापुर यात्रा में उन्होंने कहा कि सिंगापुर ने विकास का एक मॉडल पेश किया है जिसे भारत अपने यहां दोहराना चाहता है। यहां उल्लेखनीय है कि 1949 में तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू अपनी पहली अमेरिका यात्रा पर गए थे।
तब अमेरिका ने भारत के प्रति ठंडा रुख दिखाया था और जापान, सिंगापुर व दक्षिण कोरिया को विकास के लिए भरपूर मदद दी थी जो कि भारत की तुलना में काफी छोटे देश थे। इतना अवश्य है कि सिंगापुर बहुत अच्छे और सुनियोजित तरीके से विकसित हुआ। वहां की जनता ने समान उद्देश्य रखकर तरक्की की दिशा में कदम उठाए।
वास्तव में सिंगापुर शहरी विकास का उन्नत मॉडल पेश करता है जो वहां की सैर करने गए भारतीयों को आकर्षित करता है। वहां के लोगों में स्वच्छता को लेकर सिविक सेन्स है। कोई भी सड़क पर थूकता या कचरा फेंकता नजर नहीं आएगा। यातायात भी अनुशासित और व्यवस्थित है। यदि प्रधानमंत्री अनेक सिंगापुर बनाने की बात करते हैं तो वे ऐसा कदम भारत की जरूरतों को देखते हुए उठाएंगे।
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कुछ ऐसा करना होगा जिसमें भारत की संस्कृति व परंपराओं की झलक दिखे और हमारे नए शहर पश्चिमी मॉडल के न बनकर रह जाएं। सिंगापुर में काफी समय से बसे अंतरराष्ट्रीय समुदाय के विकास लक्ष्यों के अनुरूप वहां की तरक्की हुई। भारत के शहरों का विकास मॉडल कई जगह परेशानी पैदा करनेवाला रहा है। अतिक्रमण और असंतुलित विकास से नई समस्याएं पैदा हुईं।
पानी की निकासी अवरुद्ध होने से कितने ही शहरों में बाढ़ का खतरा बढ़ गया है। भूस्खलन वाले इलाके ज्यादा आबादी व यातायात का बोझ नहीं उठा पाते। मुंबई के विकास के पीछे धारावी जैसी एशिया की सबसे बड़ी झोपड़ा बस्ती का काला सच नहीं छिपता। विकास के लिए सिंगापुर, हांगकांग या चीन के नए शहरों के मॉडल अपनाने हैं तो उन्हें भारत की स्थितियों और आवश्यकताओं के मुताबिक ढालना होगा।
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यहां तो लोग पार्किंग की जगह में भी दूकानें बना लेते हैं। बड़ी इमारतें तो बना लेते हैं लेकिन जलापूर्ति और सीवर लाइन वैसी ही बनी रहती है। विकास का महत्व तभी है जब वह आकर्षक के साथ उपयोगी, संतुलित व आदर्श भी हो। देश के कितने ही शहरों में टाऊनप्लानिंग फेल हुई है। वहां सारी एजेंसियां समन्वय से काम न करते हुए एक दूसरे पर दोषारोपण करती हैं।
लेख- चंद्रमोहन द्विवेदी द्वारा